प्रधानमंत्री ने दिखाया दर्पण




सत्रहवीं लोकसभा के पहले सत्र में प्रस्तुत राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर दो दिनों तक चली चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सही मायने में सबको दर्पण दिखाने का ही काम किया है। दपर्ण उन्होंने सिर्फ विपक्ष को ही नहीं दिखाया बल्कि अपने दल के भीतर मौजूद संकीर्ण सोच वालों से लेकर देश के उन आम नागरिकों को भी दिखाया है जिन्हें यह तो बखूबी पता है कि उनके अधिकार क्या हैं लेकिन यह जानने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि देश व समाज के प्रति उनका कुछ कर्तव्य भी बनता है। हालांकि दो दिनों की चर्चा के दौरान समूचे विपक्ष ने अपने सीधे निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी को ही रखा लिहाजा स्वाभाविक था कि प्रधानमंत्री भी अपने संबोधन में विरोधियों को अच्छी तरह दर्पण दिखाने से कैसे परहेज बरत सकते थे। लिहाजा उन्होंने सटीक व गरिमापूर्ण तरीके से विरोधियों की जमकर खबर ली। खास तौर से कांग्रेस को उन्होंने अपने सीधे निशाने पर लेते हुए उसकी आलोचना भी की, गलतियां भी गिनाईं और भविष्य के लिए नसीहतें देते हुए उससे सकारात्मक कामों में रचनात्मक सहयोग की अपील भी की। अव्वल तो कांग्रेसियों द्वारा ऐतिहासिक ऊंचाइयों का बारंबार जिक्र किये जाने को लेकर तंज कसते हुए मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी की उस कविता को बिना पढ़े उसका भावार्थ बता दिया जिसमें ऊंचाई की नीरवता, नीरसता और एकाकीपन का जिक्र है। साथ ही ऊंचाई कांग्रेस को ही मुबारक बताते हुए उन्होंने अपनी सोच के जमीनी विस्तार और फैलाव को बेहतर बताया। कांग्रेस की परिवारवादी सोच का उदाहरण देते हुए कांग्रेसियों द्वारा किसी अन्य प्रधानमंत्री या नेता उल्लेख नहीं किये जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने तुलनात्मक तरीके से बताया कि किस तरह उन्होंने लालकिले की प्राचीर से दो बार यह बताया है कि भारत की मौजूदा तस्वीर के निर्माण में सबका बराबर का योगदान है। उन्होंने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए सूबे की स्थापना की स्वर्णजयंति के मौके पर कांग्रेसी राज्यपालों के भाषणों का संकलन प्रकाशित करने के अपने कदम का भी बखान किया और पंडित नेहरू से लेकर लालबहादुर शास्त्री तक के योगदानों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेसियों द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को किसी बात के लिये याद नहीं किया तो समझ में आता है लेकिन डाॅ. मनमोहन सिंह से लेकर नरसिम्हा राव तक को याद नहीं करना परिवारवादी मानसिकता की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। उन्होंने कांग्रेस के कार्यकाल में कामकाज के तौर तरीकों का वर्णन करते हुए सरदार सरोवर परियोजना का उल्लेख करते हुए करते हुए याद दिलाया कि किस तरह वर्ष 1961 में ही इस परियोजना का शिलान्यास कर दिया गया लेकिन एक दशक तक उस पर कोई काम ही नहीं किया गया। बाद में स्थिति यहां तक पहुंची संप्रग सरकार के कार्यकाल में गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी को इस परियोजना की बाधाएं दूर कराने के लिये अनशन पर भी बैठना पड़ा। लेकिन आखिरकार यह परियोजना साकार तब हुई जब मोदी खुद प्रधानमंत्री बने और सरदार बल्लभ भाई पटेल के इस सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाया। मोदी के मुताबिक महज छह हजार करोड़ की अनुमानित लागत वाली यह परियोजना जब पूरी हुई तो इसका वास्तविक खर्च सत्तर हजार करोड़ से भी अधिक पहुंच चुका था और यह पूरा खर्च इस लिये बढ़ा क्योंकि इसे पूरा करने में कांग्रेस ने कभी दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। कांग्रेसनीत संप्रग के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था के वैश्विक सूची में ग्यारहवें स्थान पर पहुंचने पर मनाए गए जश्न और दर्शाए गए उत्याह की याद दिलाते हुए मोदी ने इस बात पर गहरा अफसोस जाहिर किया कि बीते दिनों जब भारत की अर्थव्यवस्था ने ऊंची छलांग लगाते हुए छठे पायदान पर कब्जा जमाया तो ऐसे दर्शाया गया कि कुछ हुआ ही ना हो। मोदी के मुताबिक कांग्रेस की सोच पूरी तरह जमीन से कट चुकी है और उसे आम लोगों की दुख-तकलीफें दिखाई ही नहीं देती हैं। कांगे्रस द्वारा विभिन्न कामों को गिनाते हुए बार बार यह याद दिलाने को लेकर मोदी ने करारा व्यंग्य किया कि सब किया तो कांग्रेस ने किया। उन्होंने कहा आज ही के दिन कांग्रेस ने लोकतंत्र का गला घोंटने का काम किया था ताकि उसकी सत्ता बरकरार रहे। उन्होंने कहा कि आज की तारीख को याद रखने की जरूरत है ताकि भविष्य में कोई दूसरा ऐसा करने के बारे में सोचने की हिम्मत भी ना करे। घोटाले के आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने के कांग्रसियों के तंज पर भी मोदी ने मजाकिया लहजे में कहा कि किसी की गिरफ्तारी या रिहाई का आदेश जारी करने का अधिकार सिर्फ अदालत को ही है और अगर कानून में यह इंतजाम है कि जमानत लेकर आजाद रहा जा सकता है तो इस अधिकार का इस्तेमाल करने में कोई हर्ज नहीं है। प्रधानमंत्री ने अपने संकीर्ण सोच वाले समर्थकों को भी दर्पण दिखाते हुए सीख दी कि अधिकारों पर कर्तव्य को प्राथमिकता देनेे की बात महात्मा गांधी ने ही नहीं बल्कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी की थी जिसका आदर व अनुकरण होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने तीन तलाक के विधेयक पर भी कांग्रेस से रचनात्मक सहयोग के लिये आह्वान किया और देश की आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ और महात्मा गांधी की डेढ़ सौवीं जयंती को ठीक उसी तरह मनाने के लिये कांग्रेस से सहयोग मांगा जिस तरह का माहौल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर वर्ष 1947 में मिली आजादी के बीच बन गया था। प्रधानमंत्री ने आम नागरिकों को भी दर्पण दिखाते हुए अधिकारों तक ही अपनी सोच को सीमित रखने के बजाय कर्तव्यों पर भी उतना ही ध्यान देने की नसीहत दी। उन्होंने भारत पर मर मिटने के आजादी के दीवानों की याद दिलाते हुए अपील की कि आज की पीढ़ी को भारत के लिये जीने का जज्बा जगाना होगा ताकि वे जो कुछ भी करें तो उसमें देश का हित अवश्य निहित हो। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री ने वक्त की जरूरत के मुताबिक जिस तरह से सबको यह बताने में कोई कोताही नहीं बरती कि पन्ने पलटे जाएंगे तो कोई भी दूध का धुला नहीं निकलेगा उससे यह भी संकेत निकलता है कि बीते दिनों की सकारात्मक बातों को साथ लेकर आगे बढ़ा जाए और सब मिलजुलकर आपसी विश्वास और भरोसे की भावना को मजबूती देते हुए नए भारत के निर्माण में पूरे प्राण-पण से जुट जाएं तो प्रधानमंत्री के शब्दों में इसमें ही सबका भला है।