बाल यौन उत्पीड़न: समस्या और समाधान

(रश्मि अग्रवाल)


आज भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में बाल यौन उत्पीड़न की समस्या किसी सुरसा के मुँह की तरह विस्तार लेती जा रही है। हमारे देश में इस तरह की घटनाएँ झकझोर कर रख देती हैं। इन घटनाओं की विभत्सता देखी नहीं जाती है। अपराधी को बालकों पर जरा भी दया नहीं आती और पकड़े जाने पर उन्हें कोई विशेष पछतावा भी नहीं होता। यह वास्तव में एक बड़ी और विचारणीय समस्या है तभी तेा बालकों के प्रति होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए सरकार कड़े कदम उठा रही है।
     बालकों के यौन उत्पीड़न के मामलों में यह मायने नहीं रखता कि पीड़ि़त बालक है या फिर बालिका। दोनों ही ऐसे अबोध हेाते हैं जिन्हें अपराध अथवा यौन मामलों की तनिक भी जानकारी नहीं होती है। चाॅकलेट के लिए मचलने वाले बालक इस प्रकार के अपराधों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार के अपराधों में प्रायः देखा गया है कि अपराधी या तो रिश्तेदार सम्बन्धी पड़ोसी या घरेलू नौकर होता है। यह वे लोग होते हैं जिन्हें बालक अच्छी तरह जानते हैं और उन पर विश्वास भी करते हैं। बालकों को नहीं पता होता है कि वह जिन्हें अंकल/आंटी, भैय्या कहकर सम्बोधित कर रहे हैं, उनकी मंशा आखिर है क्या? यही नहीं विद्यालय भी आज ऐसे अपराधियों से सुरक्षित नहीं रह गए हैं। आए दिन विद्यालयों से भी बाल यौन अपराधों की खबरें आती रहती हैं। शिक्षा के मन्दिर में भी अपराधी न डरते हैं और न ही उनकी नैतिकता ही जागती है।
     बाल यौन शोषण जितनी गम्भीर समस्या है उतने ही गम्भीर है उनके अभिभावकों द्वारा बरती जा रही लापरवाही। कई मामलों में देखा गया है कि अभिभावक अपने बालकों को रिश्तेदार/सम्बन्धी नौकर या फिर पड़ोसी के हवाले कर बेफिक्र हो जाते हैं। यह सरासर गलत है। अबोध बालक को एकाएक किसी भी व्यक्ति के पास छोड़ना सर्वथा उचित नहीं होता है।
     हालांकि सरकार बाल यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कटिबद्ध है। पुलिस हर और ऐसे मामलों में चैकन्नी नजर आती है। अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान भी है परंतु क्या अकेली सरकार ऐसे अपराधों को रोक पायेगी? यह बड़ा सवाल हो सकता है क्योंकि इस प्रकार के मामलों में देखा गया है कि पेशेवर अपराधी पर तो पुलिस की निगाहें होती हैं जबकि मानसिक और यौनपिपासु अपराधियों पर निगाह रखना बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसे में आवश्यक यह है कि अभिभावकों से जितना भी हो सके ध्यान रखें कि उनका बालक दिन में घटी किसी घटना को सुना रहा है तो उसे सुनें! बालकों से रात्रि अथवा जब भी अवसर मिले आसपास के लोगों के बारे में बात की जाए। कौन-कौन उन्हें गोदी में लेकर खिलाता है और कौन उन्हें चीज देकर दूर से खिलाता है इस पर भी बात की जाए। बालकों से ऐसे व्यक्तियों के बारे में भी जानने का प्रयास किया जाए कि कौन उन्हें एकांत खिलाना चाहता है और कौन उन्हें सार्वजनिक रूप से? ऐसा कामकाजी दम्पत्ति  ही अधिक करते हैं जबकि होना यह चाहिए कि जब तक बालक कम से कम बारह साल का न हो जाए तब तक उनकी देखभाल किसी भी सूरत में स्वयं करें। अपने आसपास लोगों से बात करते समय उनकी आदतों, दिनचर्या और उनके शौक पर ध्यान दें। विपरीत सेक्स के बार में रूचि लेकर बात करने वालों और अश्लील मूवी देखने वालों अथवा किसी भी प्रकार का नशा करने वालों से जितना जल्दी बच सकते हैं बचा जाना चाहिए। अपराधी वृति वाले लोगों के बारे में पुलिस को जानकारी अवश्य दें। एक प्रमुख कारण ये भी है कि आज के बच्चे सुसंस्कार व अध्यात्म से बहुत दूर हैं, उनमें पाश्चात्य सभ्यता को ओढ़ने की आदत सी पड़ती जा रही है। सेक्स शिक्षा का अभाव, बेरोजगारी व बच्चों में एकाकीपन भी अपराधी बनाने में सहायक होते हैं।
     वस्तुतः कारण कोई भी हो पर भारत जैसे सुसंस्कृत देश में बाल यौन शोषण पर लगाम लगनी ही चाहिए। अपराधी का मुकदमा लड़ने हेतु कोई भी वकील खड़ा ना हो, सजा तुरंत मिले ताकि अपराधी प्रवृति के लोगों को कुछ तो भय हो। इसलिए ये समस्या अकेली सरकार नहीं निपटा सकती, इसमें देश के प्रत्येक जनवासी को जागरुकता दिखानी होगी। यही सावधानियां बालकों को उनके प्रति होने वाले यौन अपराधों से बचा सकती हैं।