कुश्ती गुरु स्वर्गीय चन्दगीराम की 9वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा व विशाल भंडारा आयोजित





 दिल्ली। यमुना  किनारे, सिविल लाइन स्थित  चन्दगीराम अखाड़े के कार्यालय पर देश के विख्यात पहलवान रहे पद्मश्री स्वर्गीय मास्टर चन्दगीराम  की 9वीं पुण्यतिथि पर सामूहिक प्रार्थना, श्रद्धांजलि सभा, हवन-पूजन के साथ ही एक गोष्ठी व भंडारे का भी आयोजन किया गया । श्रद्धांजलि सभा व गोष्ठी की अध्यक्षता चन्दगीराम स्पोर्ट्स वेलफेयर चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रताप सिंह ने की । सर्वप्रथम राजेन्द्र प्रताप सिंह और उनके वरिष्ठ शिष्य रहे अर्जुन पुरस्कार विजेता  जगरूप सिंह राठी ने स्वर्गीय चन्दगीराम  के चित्र पर माल्यार्पण करके  श्रद्धासुमन अर्पित किये । इस दौरान स्वर्गीय चन्दगीराम के शिष्य रहे पूर्व पहलवान व उत्तर दिल्ली के महापौर  अवतार सिंह विशेष रूप से उपस्थित थे  वहीं देश के विभिन्न भागों से आए उस्ताद खलीफा और पहलवानों ने चन्दगीराम  को श्रद्धासुमन अर्पित किया जहाँ पर चन्दगीराम जी की धर्मपत्नी  माता फूलवती पुत्र भारत केसरी पहलवान जगदीश कालीरामण, पुत्रवधु पूनम कालीरामण के साथ स्व. चन्दगीराम  के पोता-पोती अंशुमन कालीरामण और चिरागसी कालीरामण व बेटे ओम कालीरमण भी मौजूद थे | श्रद्धासुमन अर्पण और हवन पूजा समारोह के बाद भंडारा भी आयोजित किया गया था ।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए चन्दगीराम स्पोर्ट्स वेलफेयर चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष  राजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि चंदगी राम भारत के प्रसिद्ध पहलवान थे उन्होंने कहा हरियाणा के जिला हिसार के सिसाई गांव में 9 नवम्बर 1937 में जन्मे चंदगीराम शुरू में कुछ समय के लिए भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में सिपाही रहे और बाद में स्कूल टीचर होने के कारण उनको 'मास्टर चंदगीराम' भी कहा जाने लगा था। सत्तर के दशक के सर्वश्रेष्ठ पहलवान मास्टर जी को 1969 में अर्जुन पुरस्कार और 1971 में पदमश्री अवार्ड से नवाजा गया ।

गुरु जी के शिष्य रहे पूर्व पहलवान वह वर्तमान में उत्तर दिल्ली के महापौर अवतार सिंह ने उनके जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरुजी ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किए है, गुरूजी के हाथ की पकड़ बहुत मजबूत थी दुनिया का कोई भी प्रतिद्वंद्वी पहलवान उनकी पकड में आ जाता था, तो उसे वह चीं बुलाकर ही दम लेते थे । उन्होंने कहा बीस साल की उम्र के बाद कुश्ती में हाथ आजमाना शुरू करने वाले मास्टर जी ने 1961 में राष्ट्रीय चैम्पियन बनने के बाद से देश का ऐसा कोई कुश्ती का खिताब नहीं रहा जो उन्होंने नहीं जीता हो । इसमें राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के अलावा हिंद केसरी, भारत केसरी, भारत भीम और रूस्तम-ए-हिंद आदि भी खिताब शामिल हैं । 

 

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए  गुरु जी के शिष्य अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित कृपाशंकर बिश्नोई ने अपने गुरु को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए बताया की गुरु जी ने ईरान के विश्व चैम्पियन अबुफजी को हराकर बैंकाक एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था यह उनका सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन आज भी माना जाता है । उन्होंने 1972 म्युनिख ओलम्पिक में देश का नेतृत्व किया और दो फिल्मों 'वीर घटोत्कच' और 'टारजन' में काम किया व साथ ही कुश्ती खेल पर पुस्तकें भी लिखी ।

इस अवसर पर जगरूप सिंह राठी (अर्जुन अवार्डी), सत्यवान कादयान (अर्जुन अवार्डी), ओमवीर सिंह, भारत केसरी सुरेश कादयान, रहमान, राजकुमार यादव, सुमेर पहलवान, गुरु अशोक विशिष्ठ,  साहिल सर्राफ , ध्यानचंद पुरस्कार ज्ञान सिंह, राजकुमार बेसला, अर्जुन पुरस्कार शोकिन्द्र तोमर कोच रेलवे, भूपेश कोच, भारतीय कुश्ती पत्रिका से लियाकत हुसैन, चौधरी आर्यन खत्री बहादुरगड, रतन कालीरमण, विजय पहलवान, भूप सिंह सुल्तानपुर डबास, कोच सहदेव बाल्यान, कोच विवेक चौधरी, कोच कृष्ण पहलवान, खलीफा लेखराम, पहलवान मोहर सिंह, असलम पहलवान, खलीफा कामिल, रिजवान पहलवान, गुलाम साबिर सहित भारी मात्रा में उनके शिष्यों ने आकर अपने गुरु को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए याद किया |