*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी*






          (डाँ० दीपा शुक्ला)

          यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

          अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। 

          परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम् ।

          धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।

श्रीमद्भगवतगीता में वर्णित इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं के अवतार का रहस्य बताया है । भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि - " हे भारत ! संसार में जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ जाता है तब तब धर्म की पुनर्स्थापना के लिए में स्वयं को रचता हूँ अर्थात् जन्म लेता हूँ । सज्जनों की रक्षा एवम दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं विभिन्न कालों में अवतरित होता हूँ । 

      भगवतपुराण के अनुसार द्वापर युग में क्षत्रियों की शक्ति से पृथ्वी पर उथल पुथल मची हुईं थी । उसी समय कंस ने भी जन्म लेकर हाहाकार मचा रखा था। भगवान श्रीकृष्ण का परम शत्रु कंस जो पूर्व जन्म में हिरण्यकश्यप था,बडा ही क्रूर एवम अत्याचारी था। उसके अत्याचार पूर्ण शासन से प्रजा व साधु -संत बहुत ही व्यग्र थे ।कंस की एक बहन देवकी का विवाह 'वसुदेव' जी से हुआ।उसी समय आकाशवाणी हुई-अरे कंस! इसी देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुआ बालक तेरा सर्वनाश करेगा "। इस पर पहले तो कंस ने देवकी का वध करना चाहा, परन्तु वसुदेव जी के अनुनय- विनय करने पर उसने दोनों को मथुरा के एक बन्दीगृह मेँ बन्द कर दिया और वहाँ पर कडा पहरा बिठा दिया जब भी देवकी के गर्भ से बालक जन्म लेता था कंस उसे जन्म होते ही मार देता था । इस प्रकार उसने देवकी के सात पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया। माता देवकी की आठवीं सन्तान ने श्रीकृष्ण जी के रूप में अवतार लिया। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि मे अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए लिया था।चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए अतःइस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी कृष्णभक्ति के रँगों मे सराबोर हो उठती है।जन्माष्टमी का पर्व केवल भारत मे ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर भगवान कृष्ण की मोहक छवि देखने के लिए भारी सँख्या मे श्रद्धालु मथुरा पहुँचते हैं। भगवान के जन्मोत्सव पर मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया जाता है, झाँकियाँ लगायी जाती हैं और कान्हा जी को झूला झुलाया जाता है तथा इस शुभ अवसर पर रासलीला का आयोजन भी किया जाता है । जन्माष्टमी के पर्व को लोग पूरे उत्साह के साथ बडी धूमधाम से मनाते हैं। पूजा और व्रत रखकर  दिन घरों में भी श्रीकृष्ण के जन्म की झाँकियाँ सजाई जाती हैं, इन झाँकियों मे कान्हा जी की बाल लीलाओं से लेकर पूरे जीवन काल के दृष्टांत देखने को मिलते हैं। चूँकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था इसलिए विशेषत:आज भी पुलिस लाइन्स मे भगवान की सुन्दर झाँकियां सजाई जाती हैं।

        चूंकि तिथि के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्ण  की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था इसीलिये घरों और मन्दिरों मे मध्य रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जी का जन्मोत्सव मनाते है। रात्रि में जन्म के उपरांत दूध से लड्डू गोपाल की मूर्ति को स्नानादि कराने के बाद सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से कान्हा जी का श्रँगार किया जाता है, फिर पालने में रखकर पूजा अर्चना के उपरांत चरणामृत, पँजीरी,ताजे फल ,पंचमेवा, माखन-मिश्री का भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है। जन्मोत्सव मनाने की सबसे लोकप्रिय परम्पराओं मे से ही एक परम्परा दही हाँडी फोडऩे की भी है।इस परम्परा को बडे ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग अपने गली मोहल्ले में दही हाँडी प्रतियोगिता  रखते हैं फिर समूह के लोग मिलकर मटकी फोड कार्यक्रम करते हैं। खासतौर पर यह परम्परा भारत में गुजरात और महाराष्ट्र में मुख्यतः देखने को मिलती है।

         वहीं दूसरी ओर ब्रज मंडल में जन्माष्टमी के अगले दिन भाद्रपद कृष्ण नवमी मे "नन्द महोत्सव"अर्थात "दधिकाँधौ " श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्ष्य मे बडे ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्री विग्रह पर हल्दी, दही,घी,मक्खन, मिश्री, केसर, गुलाबजल, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडका करते हैं । इस अवसर पर वाद्ययंत्रों से मंगलध्वनि बजायी जाती है और भक्तगण आपस मे मिठाई बाँटकर मंगलमोद मनाते है।

  नि:सन्देह श्रीकृष्ण जन्मोत्सव सम्पूर्ण विश्व के लिए कल्याण और आनन्द मंगल का संदेश देता है और साथ ही जनमानस मे उत्साह एवं स्फूर्ति का संचार करता है।