मास्टर प्लान: प्रॉपर्टी विभाग के कई अफसरों पर गिर सकती है गाज
गाजियाबाद। महानगर स्थित आईएमटी के कब्जे में अतिरिक्त 11503 वर्गगज जमीन को लेकर अब घमासान लखनऊ में मचा हुआ है। क्योंकि प्रमुख सचिव आवास के सामने जीडीए और आईएमटी ने जब गत दिनों अपने अपने पक्ष रखे तो कुछ मतलब परस्त दलीलों को लेकर शीर्ष अधिकारी हैरत में पड़ गए। दरअसल, आईएमटी का कहना है कि वह बकाया 1.95 लाख को मय ब्याज के अदा कर सकता है, लेकिन जीडीए का कहना है कि उन्हें इस जमीन के 60 करोड़ रुपये चाहिए। 

हालांकि, इस मामले में पिटिशनर राजेंद्र त्यागी का कुछ और ही कहना है। उनका कहना है कि अतिरिक्त जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दो मामले तय किये थे। इनमें एक मामला कविनगर में एक मकान के बगल में अतिरिक्त जमीन को लेकर था और दूसरा मामला एक स्थानीय अखबार के कार्यालय के पास अतिरिक्त जमीन के आवंटन को लेकर था। तब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जीडीए टू-बिड सिस्टम के तहत जमीन को सेल करे। इसी के चलते राजनगर और कविनगर में जीडीए ने अतिरिक्त जमीन को बेचकर मोटी कमाई की, लेकिन  आईएमटी वाले मामले में जीडीए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही ठेंगा दिखा रहा है।

 

वहीं, जीडीए वीसी कंचन वर्मा का कहना है कि 1999 में एक शासनादेश इस संबंध में आया था। जिसके अनुसार, अगर किसी भी जमीन का रि-आवंटन छह महीने से ज्यादा हो तो उस जमीन की कीमत जीडीए मार्केट रेट से वसूलेगा। इसी के तहत जीडीए आईएमटी की अतिरिक्त 11503 वर्ग गज जमीन की कीमत वर्तमान सर्किल रेट के हिसाब से 60 करोड़ रुपये चाहता है। वहीं, इस मामले में पिटिशनर राजेंद्र त्यागी का कहना है कि पहले यह तय हो कि जिस जमीन पर आईएमटी का कब्जा है, वह उसे आवंटित है या नहीं। इस मामले में उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी। उनके अनुसार, हाईकोर्ट ने इस पर जिरह स्वीकार कर ली है। इस मामले में जीडीए वीसी का कहना है कि यह मामला इंटरनल है। इस मामले से जीडीए का कोई लेना-देना नहीं है। 

 

उधर, एक और गंभीर सवाल पिटिशनर श्री त्यागी ने उठाया है। उनका कहना है कि जो अतिरिक्त जमीन आईएमटी को आवंटित थी ही नहीं, उस पर जीडीए ने बिल्डिंग बनाने का नक्शा पास कैसे कर दिया। इस सवाल का जवाब जीडीए को देते नहीं बन रहा है। अभी भी इस मामले में जीडीए ने उन अफसरों को लिस्टिंग ही नहीं किया जिन्होंने 11503 वर्ग गज जमीन पर अवैध कब्जे के बावजूद उस पर बिल्डिंग बनाने का नक्शा पास कर दिया। 

 

यही वजह है कि अगर इस मामले की जांच हुई और हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया तो इस मामले में जीडीए के मास्टर प्लान और प्रॉपर्टी विभाग के कई अफसरों का फंसना तय है। शायद जीडीए इसीलिए अतिरिक्त जमीन के कब्जे का मामला इंटरनल बताकर कार्रवाई का चैप्टर क्लॉज करने की कोशिश में है।