बाल अधिकारों की सुरक्षा या खिलवाड़

( बाल मुकुन्द ओझा)


बच्चों के अधिकारों को लेकर हम आये दिन चर्चा करते है। हर कोई बच्चों पर अपना अधिकार जमाना चाहता है। बच्चों के खेलने कूदने और शिक्षा से लेकर उसके भरण-पोषण तक हर जगह बच्चों के अधिकारों को अनदेखा किया जाता है। बच्चों के अधिकार क्या हैं और कैसे हो इनकी सुरक्षा इस  पर गंभीरता से मंथन की जरूरत है। आवश्यकता इस बात की है की हम कागजी कारवाही और भाषणबाजी से ऊपर उठकर धरातल पर आकर यथार्त में  बच्चों के विकास की योजनाओं को अमली जमा पहनाएं ताकि उनके चेहरे पर मुस्कान आ सके।
अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस 20 नवंबर को भारत सहित दुनियाभर में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने 1954 में की थी। बाल अधिकार के तहत जीवन का अधिकार, पहचान, भोजन, पोषण, स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा ,मनोरंजन, नाम, राष्ट्रीयता, परिवार और पारिवारिक पर्यावरण, उपेक्षा, बदसलूकी, दुर्व्यवहार, बच्चों का गैर-कानूनी व्यापार आदि से सुरक्षा शामिल है। 
यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता, बच्चों के प्रति जागरूकता और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। इस दिन हमें बच्चों की वास्तविक स्थिति की जानकारी लेनी चाहिए तभी बाल अधिकारों पर सार्थक चर्चा होगी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 21 करोड़ से अधिक बच्चों से मजदूरी करवायी जाती है, जिनमें से 1.7 करोड़ बाल श्रमिक भारत में हैं। जनगणना 2011 के आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे भारत में 5 से 14 साल के बच्चों की कुल संख्या 25.96 करोड़ है। इनमें से 1.01 करोड़ बच्चे बाल मजदूर हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 43.53 लाख बच्चे मुख्य कामगार के रूप में, 19 लाख बच्चे तीन माह के कामगार के रूप में और 38.75 लाख बच्चे 3 से 6 माह की दिहाड़ी में काम करते हैं। हमारे देश में  85 प्रतिशत बच्चे  असंगठित क्षेत्रों में  काम करते हैं  वहीँ 80 प्रतिशत  बच्चे  कृषि कार्यों से जुड़े हैं। भारत में गरीबी कुपोषण ,अशिक्षा ,अंधविश्वास ,सामाजिक कुरीति ,बाल विवाह और बॉल मजदूरी बचपन के सबसे बड़े दुश्मन है। 
बच्चों के सर्वांगीण विकास को मद्देनजर रखते हुए सबसे पहले बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना होगा। सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाने में अव्वल रहता है। मगर गरीब बच्चे सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। जिसके फलस्वरूप वे पिछड़ जाते हैं। आगे की पढ़ाई भी नहीं कर पाते और गरीब अभिभावक ऐसी स्थिति में अपने बच्चों को मजदूरी में जोत देते हैं। ऐसे बच्चे आगे जाकर अपराधों में फंसकर अपना भविष्य खराब कर लेते हैं। बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा समान स्तर पर मिलनी जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बेहद गरीब 120 करोड़ लोगों में से लगभग एक तिहाई बच्चे हमारे देश के हैं। 
बच्चों में अपराध और बाल मजदूरी के मामले में भी हमारा देश आगे है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि बाल मजदूरी में अपेक्षाकृत काफी कमी आई है। सरकार ने बाल श्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाये हैं और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है मगर असल में आज भी लाखों बच्चे कल-कारखानों से लेकर विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे हैं। चाय की दुकानों पर, फल-सब्जी से लेकर मोटर गाड़ियों में हवा भरने, होटल, रेस्टोरेंटों में और छोटे-मोटे उद्योग धंधों में बाल मजदूर सामान्य तौर पर देखने को मिल जाते हैं। ये बच्चे गरीबी के कारण स्कूलों का मुंह नहीं देखते और परिवार पोषण के नाम पर मजदूरी में धकेल दिये जाते हैं।
बच्चों को पढ़ने लिखने और खेलने कूदने से वंचित करना सबसे बड़ा अपराध है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वह हर जतन करना चाहिये जिससे बच्चे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके।  सरकार के साथ साथ समाज का भी यह दायित्व है कि वह बचपन को सुरक्षित रखने का हर प्रयास करे जिससे हमारा देश प्रगति और विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सके। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को धरातली स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं।