इंसाफ के तराजू के उलझे पलड़े






राकेश रमण)

इस बात में कोई शक-सुबहा नहीं हो सकता है कि संविधान के आधार पर चलनेवाली भारतीय न्याय व्यवस्था के तराजू के एक पलड़े का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता करते हैं तो दूसरे पलड़े के तौर पर पुलिस-प्रशासन की पहचान है। इन दोनों पलड़ों के बीच संतुलन आवश्यक भी है और अनिवार्य भी। इनमें से किसी एक को दूसरे पर हावी होने की इजाजत देने का मतलब होगा न्याय के साथ समझौता करना। यही वजह है कि इन दोनों पलड़ों के बीच परस्पर सामन्जस्य की ही अपेक्षा रहती है। लेकिन दुर्भाग्य से इन दोनों के बीच गाहे-बगाहे टकराव होता ही रहता है। ऐसा ही मामला बीते शनिवार को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में सामने आया जहां पार्किंग के विवाद को लेकर पुलिस और वकीलों के बीच शुरू हुई तनातनी ने हिंसक रूप ले लिया और उसमें जहां एक ओर वकीलों की पिटाई से दो दर्जन से अधिक पुलिसवाले घायल बताये जा रहे हैं वहीं पुलिस के बल प्रयोग से कई वकीलों के घायल होने के अलावा पुलिस की गोली से एक वकील के बुरी तरह घायल होने की भी खबर है जो अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहा है। तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों के बीच हुए झगड़े की शुरुआत का जो सीसीटीवी फुटेज सामने आया है उसमें साफ दिखाई पड़ रहा है कि पहले एक वकील पुलिस वैन के बगल में अपनी कार लगा देता है। बाद में एक पुलिसकर्मी उसके पास जाता है और वहां से कार हटाने को कहता है। दोनों के बीच पहले बहस होती है और फिर हाथापाई। इसके बाद पुलिसवाला वकील को लॉकअप में डाल देता है। हालांकि कुछ देर बाद वकील को लॉकअप से छोड़ दिया जाता है और वो वहां से चला जाता है। लेकिन कुछ देर बाद वकील अपने साथी वकीलों के साथ पुलिस के पास पहुंचता है और वहां से मारपीट की शुरुआत होती है। इस मामले का संज्ञान हाईकोर्ट ने भी लिया है और बार काउंसिल ने भी। हाईकोर्ट ने रविवार को मामले की न्यायिक जांच का आदेश देते हुए दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित और दो को स्थानांतरित भी कर दिया है। दूसरी ओर दिल्ली बार काउंसिल ने इस मामले को दुखद करार देते हुए माना है कि जिस तरह से इसके विरोध में दिल्ली की विभिन्न अदालतों में वकीलों ने हुड़दंग मचाया है और लोगों से मारपीट व तोड़फोड़ की है उससे वकीलों के प्रति सहानुभूति कम हुई है। दूसरी ओर आज पुलिस ने भी सड़क पर उतर कर संघर्ष करने की राह पकड़ी और सैकड़ों की तादाद में दिल्ली पुलिस के जवानों ने पुलिस मुख्यालय पर धरना दिया। पुलिस के आला अधिकारी भी अपने मातहतों के प्रति नरम दिखे और दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने पुलिसवालों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए याद दिलाया कि सरकार और जनता को उनसे काफी उम्मीदें हैं। पटनायक ने साफ शब्दों में कहा कि हमारे लिए परीक्षा, अपेक्षा और प्रतीक्षा की घड़ी है जिसमें हमें अनुशासन बनाए रखना है। आला अधिकारियों ने धरना कर रहे पुलिसकर्मियों से कहा कि वह इस झड़प में घायल पुलिसकर्मियों का इलाज कराएंगे साथ ही इलाज के लिए 25 हजार रुपये की मदद भी देंगें। दूसरी ओर पुलिसकर्मियों ने तीस हजारी झड़प प्रकरण में शामिल वकीलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किये जाने की मांग की है और वे यह भी चाहते हैं कि तीस हजारी प्रकरण में जिन पुलिसकर्मियों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज की गयी है, उसे रद्द किया जाए। साथ ही हाईकोर्ट द्वारा पुलिसकर्मियों के निलंबन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिये जाने की मांग भी की जा रही है। फिलहाल यह विवाद थमता नहीं दिख रहा है जिसने अब राजनीतिक रंग भी ले लिया है। विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा है जबकि सरकार की ओर से स्पष्ट शब्दों में कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। हालांकि पूर्व गृह राज्यमंत्री व मौजूदा केंद्रीय खेल व युवा मामलों के मंत्री किरन रिजीजू ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि पुलिस में होना थैंकलेस है। वो वाहवाही के लिए काम नहीं करते। वे रोजाना अपनी जिंदगी को दांव पर लगाते हैं। अगर वे काम करते हैं तो उनकी निंदा होती है और नहीं करते हैं तो भी निंदा होती है। इस पुलिस विरोधी रवैये के बीच हम ये बात भूल जाते हैं कि जब वे ड्यूटी कर रहे होते हैं तो उनका भी घर, उनका परिवार होता है। हालांकि रिजीजू ने यह ट्वीट बाद में अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से हटा दिया। यानी पहले ट्वीट करना और बाद में उसे वापस ले लेना यह बताने के लिये काफी है पुलिस और वकीलों के बीच जारी टकराव किस कदर सरकार के लिये गले की हड्डी बन गई है। वास्तव में यह सरकार ही नहीं बल्कि समाज के लिये भी ऐसी उलझन है जिसमें किसी एक पक्ष के पीछे खड़े होकर दूसरे की मजम्मत नहीं की जा सकती। दोनों ही समाज के लिये उतने ही उपयोगी हैं और दोनों की समाज को एक बराबर ही जरूरत है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि दोनों की कार्यप्रणाली से समाज एक बराबर ही त्रस्त है। अधिकांश वकीलों ने न्याय दिलाने के पेशे को मुनाफा कमाने का धंधा बना लिया है जबकि पुलिस के कामकाज से आम लोगों का असंतोष जगतविदित है। लेकिन यह भी सच है कि अगर ये दोनों ना हों तो न्याय की उम्मीद करना और चैन से जीवन यापन कर पाना निहायत ही नामुमकिन है। लिहाजा बेहतर होगा कि इन दोनों के बीच तीस हजारी से आरंभ होकर पूरे देश में फैल रहे टकराव की स्थिति पर काबू पाया जाये और दोनों पक्षों में मौजूद उपद्रवियों की पहचान करके उन्हें कड़ी सजा दी जाये। ना तो वकील पर गोली चलानेवाले पुलिसवाले को बख्शा जाये और ना ही पुलिस पर हाथ उठानेवालों को किसी कीमत पर छोड़ा जाये। जरूरत है कि दोनों ही पक्ष जिम्मेवार बनें और एक दूसरे की गरिमा व मर्यादा का सम्मान करें।