प्रदूषण की राजधानी बनता दिल्ली




( देवानंद राय)

दिल्ली अब दिल वालों की नहीं प्रदूषण की राजधानी बन रही है जिससे आम से लेकर खास तक सब परेशान हैं और इस परेशानी में भी राजनीति और मीडिया स्टंट का मजा अलग ही लेवल का दिख रहा है जिसको हर राजनैतिक और सेलिब्रिटी मौका नहीं छोड़ना चाहते बात बात पर एक यूआई एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्क्रीनशॉट साझा कर रहे हैं पर इन से अगर यह कहा जाए कि स्क्रीनशॉट शेयर करने के बजाए अपनी गाड़ियों की संख्या कम करें ऐसी कम करें तो इनका पर्यावरण ज्ञान भूल जाता है पेड़ों को काटकर हर क्षण पर्यावरण को नुकसान पहुंचा कर पूरे पृथ्वी के हेल्थ को इमरजेंसी में पहुंचाकर लोग अब दिल्ली में खुद के हेल्थ की इमरजेंसी घोषित कर बैठे हैं यह कुछ वैसा ही है कि पेड़ काटकर पेड़ की छांव तलाशने के लिए भटकना दिल्ली में प्रदूषण के उच्चतम स्तर पहुंचने का मुख्य कारण पराली जलाना बताया जा रहा है बात-बात पर हरियाणा और पंजाब के किसानों को परेशान किया जा रहा है उन पर केस किए जा रहे हैं लगता है कि हरियाणा और पंजाब में किसान ना हो तो दिल्ली किसान बच्ची होती तो क्यों ना दिल्ली में जिस तरह हेल्थ इमरजेंसी लगी है वैसे ही इन राज्यों में फार्म इमरजेंसी लगाकर खेतीकिसानी रोक दी जाए ताकि हवा में सांस ले और बाकी देश भूखा पेट रहे कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक जो खुद को चार चार सीट एसी में बैठ कर ऐसे बेफिजूल का ज्ञान बांटते हैं और यह बताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि पराली जलाने से हो से ही दिल्ली सांस नहीं ले पा रही है पर यह ज्ञानी भूल जाते हैं कि पराली तो मात्र 35% हिस्सा है बाकी 65% प्रदूषण तो इन तथाकथित और हाई प्रोफाइल लोग जिनके बाथरूम से लेकर रूम तक में चार चार ऐसी लगे हुए हैं और जो सब्जी लाने में भी चार पहिए का प्रयोग करते हैं और फिर एफबी पर ज्ञान देते नजर आते हैं जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 100 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है तो वहीं दिल्ली में यह इंडेक्स 5 साल से 6:30 सौ के आंकड़े को छू रहा है जो यह बताने के लिए काफी है कि दिल्ली में हवा की स्थिति क्या है और लोग किस तरीके से वहां पर रह रहे हैं इस वर्ष पूरे भारत में आवश्यक से अधिक हाल के महीनों में बारिश हुई है परंतु दिल्ली में यह बारिश औसत से कम हुई है जो यह बताने के लिए काफी है कि दिल्ली की पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही ही दिल्ली में पर्यावरण और बारिश का अनुपात बिल्कुल बिगड़ चुका है दिल्ली सरकार एतिहाद के कदम उठा रही है मस्त बांट रही ऑफिस का समय बदल रही है स्कूल बंद कर रही है निर्माण कार्य पर रोक लगा रही हैं और भी उपाय कर रही है पर यह उपाय पोस्ट कम राजनीतिक ज्यादा लग रहे हैं केंद्र सरकार भी स्थिति पर नजर बनाए हैं पर कदम उठाने से कतराए है क्योंकि अगले कुछ महीनों में चुनाव आए हैं इसलिए काम हम करें और क्रेडिट कोई और ले चक्कर में दिल्ली की जनता पिस रही है वरना तो सांस ले पा रही है ना ही किसी पर दबाव बना पा रही है यूं समझ लीजिए कि पर्यावरण और हवा के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद भी हमारा देश सीरियस नहीं सेंसलेस होकर खूब राजनैतिक और टीवी डिबेट पर मजाक चला रहा है सोचिए जिस किसान के फसल बर्बाद होने की खबर महीनों बाद तहसील तक नहीं पहुंच पाती आज उस किसान के डंठल जलाने से निकला धुआं 2 दिन में दिल्ली की सांस रोक दे रहा है ऐसा क्या है कि पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश बंगाल के सब दिल्ली जाकर ही इकट्ठा हो रहे हैं यह सब अपनी अपनी जिम्मेदारियों से भागने के अलावा और कुछ नहीं है ना तो राज्य ना केंद्र प्रदूषण पर ठोस कदम उठाना चाहते हैं पर दोनों जम कर इस मुद्दे पर फुटबॉल खेलते नजर आ रहे हैं यहां पर यह जान लेना जरूरी है कि पर्यावरण प्रदूषण से शहरों की रक्षा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है यह 365/ 24×7 हम सब की ड्यूटी है क्योंकि इस पर प्रदूषण की मार से अगर कोई सर्वाधिक प्रभावित होता है तो वह है आम आदमी जो आंखों में जलन लिए सांसो में रुकावट में भी काम पर जा रहा है बाकी पर्यावरण पर ज्ञान देने वाले एसी में बैठकर एयर प्यूरीफायर से हवा साफ कर पर्यावरण रक्षा का ज्ञान दे रहे हैं अगर पराली जलाने से प्रदूषण हो रहा है तो वह प्रदूषण मात्र पंद्रह दिन का है पर दिल्ली में तो हर महीने प्रदूषण से दो-चार हो रहा है दिल्ली का प्रदूषण अब कोई मौसमी समस्या नहीं रहा एक सवाल यह है कि जब किसान पराली नहीं जलाता तो दिल्ली की आबोहवा को कौन नुकसान पहुंचाता है पराली तब जलाया जाता है जब खरीफ मतलब धान की फसल कटकर रवि की फसल अर्थात गेहूं की फसल लगाने की तैयारी करते हैं दिल्ली का 40% प्रदूषण वाहनों से होता है इस पर कोई कुछ नहीं बोलता पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश का पश्चिमी इलाका जहां पर हरित क्रांति ने सबसे ज्यादा फसलों में क्रांति ला दी इस कारण इन राज्यों में अन्य राज्यों से साल में एक अधिक फसल ली जाती है जहां आमतौर पर साल में अधिकतर जगह दो फसल ली जाती है वहीं राज्यों में तीन फसल ली जाती है खरीफ की फसल के बाद रवि की बुवाई का समय आ जाता है तीन फसल होने के कारण इन दोनों के बीच ज्यादा समय नहीं होता इसलिए किसान धान की फसल के खेत में बचे हुए हिस्से को जला देते हैं ताकि अगली फसल तैयार करने के लिए खेद जल्दी से तैयार हो जाए इस कारण फसल कटाई की मशीन में सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम यानी पौधों को नीचे से काटने वाले मशीन के लिए सरकार 50% तक सब्सिडी दे रही है पर यह लगाने के लिए किसान को पचास हजार से ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं यानी दिल्ली के लोग साथ में इसके लिए किसान अपनी जेब हल्की करे जबकि किसानों की आय की स्थिति किसी से छिपी नहीं है आखिर किसान को कौन सा आयोग वेतन दे रहा है ?कब उसका आय सातवां वेतन आयोग छठवां वेतन आयोग के हिसाब से बढ़ रहा है इस पर सभी चुप हैं पर्यावरण सुरक्षा हम सब की जिम्मेदारी है पर यहां जिम्मेदारी किसान उठाएं और दिल्ली वाले चार चार गाड़ियों और चार चार ऐसी उसे प्रदूषण बढ़ाएं जैसा रवैया बना रखा है उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण रोकथाम एवं नियंत्रण अब क्यों जगा है क्या उसे पता नहीं था कि दिल्ली के प्रदूषण का स्तर हर महीने बढ़ता ही जा रहा है  अगर उन्होंने पहले ही बढ़ते हुए प्रदूषण को लेकर इन्वायरमेंट हेल्थ इमरजेंसी लगाकर दिल्ली के प्रदूषण को रोका होता तो आज पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी लगाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती गैस चेंबर बन चुकी दिल्ली में प्रदूषण का दबाव कम करने के ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे बनवाया गया ताकि ट्रकों की आवाजाही दिल्ली में कम हो और दिल्ली के पर्यावरण पर दबाव कम हो जिससे प्रदूषण भी कम होगा इस तरह के ठोस उपाय करके दिल्ली के पर्यावरण को बचाया जा सकता था तभी दिल्ली का कवच कहे जाने वाले अरावली पर्वत आज खत्म होने की स्थिति पर पहुंच चुका है जो कभी दिल्ली का फेफड़ा कहलाता था और पूरे दिल्ली के लिए एयर प्यूरीफायर का काम करता था पर अब दिल्ली में फॉरेस्ट कवर मात्र 11.8% रह चुका है जबकि वैज्ञानिक रूप से यह औसत 33% होना चाहिए और हमारी फॉरेस्ट पॉलिसी भी यही कहती है ताकि पर्यावरण का संतुलन बना रहे और लोगों को साफ हवा मिल सके पर दिल्ली एनसीआर में विकास के नाम पर फॉरेस्ट कवर नाम मात्र का बच्चा है एक आंकड़ा देखें तो गाजियाबाद में 33% के जगह मात्र 1.89% फरीदाबाद में 4.32% गुरुग्राम में 8.35% और गौतम बुध नगर में 2.443% ही बचा हुआ है अब ऐसे हालात में हम कैसे स्वच्छ पर्यावरण पा सकते हैं जब हमने पर्यावरण को तहस-नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है अब समय यह है कि दिल्ली के पर्यावरण की स्थिति सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ पौधे लगाए जाएं फॉरेस्ट कवर को और बढ़ाया जाए तथा गाड़ियों के बोझ को कम किया जाए और जहां तक संभव हो सके इस पर राजनीति बंद की जाए।