सड़कों ने उधेड़ी विकास की परत

(  बाल मुकुन्द ओझा)


सड़कों का देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। सड़कों का आधारभूत ढांचा हमारी अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ आधार है। राजस्थान में आजादी के बाद तेजी से परिवहन मार्गों का निर्माण और विकास हुआ है। राज्य निर्माण के दौरान प्रदेश में सड़क तंत्र बहुत कमजोर था। रेल परिवहन भी चुनिन्दा मार्गों पर था। वर्ष 1949 में राज्य में केवल साढ़े तेरह हजार किमी. लम्बाई की सड़कें थीं। राज्य में वर्ष 2017 तक कुल सड़को की लम्बाई 2,17,707 कि.मी. हो गई।
प्रदेश में सड़कों के वर्तमान नेटवर्क पर एक नजर दौड़ाई जाये तो पता चलेगा राज्य में सड़कों की स्थिति बेहद खराब और दोषपूर्ण है। इस वर्ष मानसून में हुई भारी वर्षा ने राज्य के सम्पूर्ण सड़क नेटवर्क को क्षत विक्षत करके रख दिया।  दूसरा एक कारण घटिया सड़कों का निर्माण और कमीशन बाजी है। राष्ट्रीय उच्च मार्गों की सड़कों को छोड़ दें तो प्रदेश के नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें क्षत-विक्षत हैं। प्रदेशभर में सड़कों पर चल रहा पेचवर्क का कार्य भी बेहद धीमा है। राजधानी जयपुर में मुख्य सड़कों को छोड़कर कालोनियों और अन्य सड़कों लीपापोती की स्थिति जग जाहिर है। राजधानी की यह स्थिति है तो जिला, नगरीय और ग्रामीण सड़कों का सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है। वर्षात की बात एक बारगी छोड़ भी दें तो भी आये दिन किसी न किसी विभाग की खुदाई ने सड़कों को तहस नहस कर रखा है। नगरों और महानगरों की सड़कों पर अतिक्रमण किसी से छिपा  नहीं है। यूनेस्को द्वारा घोषित राजधानी जयपुर की वर्ल्ड हेरिटेज सीटी का हाल भी सही नहीं कहा जा सकता जहाँ बाजारों में सरेआम सड़क मार्गों पर हुए अतिक्रमणों ने लोगों का जीना हराम कर रखा है। 
सड़कें हमारे परिवहन का मुख्य साधन हैं। जहाँ हर रोज हमारे लाखों व्यवसायिक और निजी वाहन सरपट सड़कों पर दौड़ते हैं। सड़क परिवहन ने सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कम एवं मध्यम दूरियाँ के लिए यह यातायात का सर्वाधिक सुगम एवं सस्ता साधन भी हैं। वास्तव में यह सेवा परिवहन के अन्य साधनों की सहायक है, क्योकि इसकी विश्वसनीयता, शीघ्रता, लचीलापन एवं दरवाजे तक प्रदान की जाने वाली सुविधा काफी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान राज्य सरकार ने शासन व्यवस्था सम्भालते ही यह घोषणा की थी कि सड़कों की प्राथमिकता से सार संभाल की जायेगी और जन भावनाओं के अनुरूप निर्माण और जीर्णोद्धार का कार्य हाथ में लेकर सर्वसाधारण को राहत दी जायेगी। मगर आज भी आप भी राज्य के किसी भी शहरी-ग्रामीण मार्ग पर चले जाइये आपको सड़कों की वास्तविकता का ज्ञान हो जायेगा। जयपुर प्रदेश की राजधानी है। यहाँ हजारों वाहन सड़कों पर प्रतिदिन विचरण करते हैं। इन सड़क मार्गों पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री और अन्य वी.आई.पी. लगभग रोज ही आते-जाते हैं मगर सड़कों की कराह सुनने वाला कोई नहीं है। यहाँ छोटी-मोटी मिलाकर हजारों सड़कें हैं जो समुचित देख-रेख के अभाव में घायल अवस्था में पड़ी हैं। जे.डी.ए. और नगर निगम के सड़क मरम्मत के वाहन कहीं-कहीं देखने को मिल जायेंगे मगर गुणवत्ता के अभाव में इनके लगाये पैबंदों की स्थिति कुछ ही दिनों में पुरानी स्थिति में लौट आती है। राजधानी की सड़कों की यह स्थिति है तो प्रदेश की जिला, नगर और ग्रामीण सड़कों का सहज ही अन्दाज लगाया जा सकता है।
प्रदेश में सड़कों की बदहाल स्थिति में अतिक्रमण, अवैध कब्जों और यातायात की बिगड़ी व्यवस्था ने कोढ़ में खाज का काम किया है। विशेषकर प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में सड़कें अतिक्रमण के कारण सिकुड़ कर रह गई हैं। राजधानी जयपुर सहित इस समय प्रदेश के सभी मेट्रो सिटी यातायात की सुचारू व्यवस्था नहीं होने से आम आदमी परेशानी को झेल रहा है। राजधानी में परकोटे की स्थिति सबसे खराब है। परकोटे के मुख्य बाजारों किशनपोल, त्रिपोलिया, जौहरी बाजार, रामगंज बाजार, छोटी-बड़ी चैपड़ की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। वाहनों के बढ़ जाने के कारण और सड़कों पर अतिक्रमण के फलस्वरूप यहाँ ट्रैफिक की व्यवस्था बुरी तरह बिगड़ गई है। अतिक्रमण और अवैध कब्जों ने इन बाजारों की शांति का जैसे किसी ने हरण कर लिया है। आॅपरेशन पिंक के दौरान अवैध कब्जे और अतिक्रमण को हटाकर आम नागरिक को राहत दी गई थी मगर अब फिर से अतिक्रमण की पुरानी स्थिति बहाल होने से आम आदमी आहत है। एक बार फिर राजधानी अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। लोग चार पहिया वाहन लेकर जाने में डरने लगे हैं।