टोल टैक्स पर सियासी घमासान

(बाल मुकुन्द ओझा)


राजस्थान में स्टेट हाईवे पर एक नवम्बर 2019 से एक बार फिर टोल टैक्स वसूली को लेकर सियासी घमासान मच गया है। भाजपा के शासन में 18 माह पूर्व स्टेट हाईवे को टोल फ्री किया गया था। राज्य में इस समय कांग्रेस की सरकार है जो वित्तीय संकट से गुजर रही है। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश के 143  नाकों पर निजी वाहनों से टोल वसूली के राज्य सरकार के निर्णय पर कहा की कार चलाने वाले लोग टोल चुकाने में सक्षम है। दूसरी तरफ भाजपा ने प्रदेशभर में धरना, प्रदर्शन कर इसे जन विरोधी बताते हुए टोल टैक्स वसूली को वापस लेने की मांग की है। टोल वसूली को लेकर पक्ष और विपक्ष में बयानबाजी तेज हो गयी है। इसी बीच नगर निकायों के चुनावों की घोषणा हो गयी है। दोनों पक्ष चुनाव में इसे अपने अपने पक्ष में भुनाने की रणनीति तैयार की है। बताया जाता है स्टेट हाईवे से रोज दो लाख से अधिक वाहन गुजरते है जिन्हें अब टोल चुकाना होगा। सरकार का मांनना है टोल वसूली से होने वाली आय से सड़कों की दशा सुधारने  में मदद मिलेगी वहीँ भाजपा आरोप लगा रही है कि 300 करोड़ के राजस्व को हासिल करने के लिए प्रति 50 किलोमीटर क्षेत्र में ढाई लाख लोगों को परेशान कर आर्थिक लूट मचाने की योजना सरकार ने बनायीं है।
परस्पर दावों -प्रतिदावों के बीच यह गौरतलब है सड़क मार्गों को वाहन फ्रेंडली बनाने के लिए टोल वसूली की योजना अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए भाजपा सरकार ने शुरू की थी। टोल लागू करते समय भाजपा सरकार ने कहा था देशभर में सुगम यातायात के साथ चैड़ी और बेहतर सड़कें बनेंगी और इसमें जितनी राशि का निवेश किया जाएगा, टोल टैक्स में उतनी राशि वसूल किए जाने के बाद उस हाईवे को टोल फ्री कर दिया जाएगा। उसके बाद कई सरकारें आयी मगर टोल फ्री का सपना साकार नहीं हुआ। केंद्र ने नेशनल हाईवे और राज्यों ने स्टेट हाइवे पर टोल लेना शुरू कर दिया जो बदस्तूर जारी है। मोदी सरकार ने अच्छी सड़कों के नाम पर टोल जारी रखा है। नेशनल हाईवे की सड़कें अपेक्षाकृत गुणवत्तायुक्त कही जा सकती है मगर स्टेट हाइवे की सड़कें खराब है। खराब सड़कों पर टोल की वसूली से लोग गाहे बगाहे आंदोलन करते रहते है। कहा जा रहा है मोदी सरकार नेशनल हाईवे का विस्तार तो कर रही है मगर दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण सरकारी राजस्व में उतनी वृद्धि नहीं हो रही है जितनी होनी चाहिए थी। देशभर में लगभग 400 से अधिक टोल प्लाजा हैं। सरकार इनकी भली भांति निगरानी नहीं कर पा रही है जिससे वास्तविक स्थिति का भान नहीं होता है। जो आंकड़े इनसे मिलते है उसे ही मानकर चलते है। सरकारी आंकड़ों का अध्ययन करें तो 2018-19 में 22 हजार करोड़ रुपये की टोल टैक्स वसूली हुई है। देश में करीब 22 करोड़ वाहन हैं। जिनमें व्यावसायिक वाहन भी शामिल है। टोल विश्लेषक मानते है टोल कंपनियों और अधिकारियों की मिलीभगत से 35 फीसदी टोल टैक्स की चोरी होती है। इसे सुधार कर राजस्व वसूली बढ़ाई  जा सकती है। 
सड़कों का निर्माण और विकास निजी हाथों में सौंपने के कारण सरकार ने टोल टैक्स वसूली की व्यवस्था कायम की। विभिन्न कम्पनियों को अलग-अलग परिवहन मार्गों की जिम्मेदारी सौंपी गई। सड़कों की गुणवत्ता युक्त व्यवस्था और सुचारू परिवहन के नाम पर टोल टैक्स लागू किया गया। टोल टैक्स की वसूली के लिए स्थान-स्थान पर नाके स्थापित किये गये। अनेक कम्पनियों ने मिली-भगत कर अनुबंधों का पालन नहीं किया। जितना टैक्स वसूला जाना था, उससे अधिक टैक्स वसूलने की शिकायतें मीडिया में आई। किस टोल नाके से कितनी वसूली जायज है और उसका कितना भार आम जनता पर पड़ रहा है, उसका कोई लेखा जोखा नहीं है। अनेक स्थानों से यह खबरें भी आईं कि कम्पनियों ने पर्याप्त टैक्स वसूलने के बाद भी नाकों को टोल मुक्त नहीं किया। जिन सड़क मार्गों पर टोल लागू है वे मार्ग भी सही नहीं हैं।
 टोल टैक्स पर इस समय देशव्यापी बहस चल रही है। टोल नाकों पर अनियमितता और भ्रष्टाचार की शिकायतें आम बात है। टोल की वसूली को लेकर लोगों में गहरी नाराजगी है। लोग चाहते हैं टोल समाप्त हो और इसके लिए कोई सर्वसम्मत हल निकले। सरकार भी चाहती है टोल नीति में आमूलचूल परिवर्तन हो और लोगों की नाराजगी दूर कर उन्हें राहत दी जाए। न्यायालय भी वर्तमान व्यवस्था पर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुका है। कहने का तात्पर्य है सरकार, न्यायालय और आम आदमी तीनों चाहते हैं कि वर्तमान में टोल की जो स्थिति है, उसमें सुधार हो। टोल नाकों पर जोर-जबरदस्ती और मारपीट की घटनाएँ भी सामने आई हैं। टोल नाकों पर अनियमितता और भ्रष्टाचार की शिकायतें भी मिली। सरकार को राजस्व का चूना लगाकर अपनी जेबें भरने के समाचार भी सुर्खियों में आये।