संकट के दौर में रखें सकारात्मक सोच

(गोपाल मोहन मिश्र)


बड़ा सत्य है कि जीवन कहीं ठहरता नहीं है और सब कुछ कभी खत्म नहीं होता। जबकि कोरोना वायरस जैसे संकटों से जीवन में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं, जब लगता है मानो सब खत्म हो रहा है।  जीवन कितना भी निरर्थक क्यों न लगे, उसमें अंतर्निहित अर्थ को खोज कर मनुष्य सारे कष्टों को सहन कर बाहर निकल सकता है। विपरीत परिस्थितियों में यह जानना महत्वपूर्ण नहीं है कि हमें जीवन से क्या अपेक्षा है, बल्कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि इस समय जीवन को हमसे क्या अपेक्षा है। जो समस्या हमें दी गई है, उसका सही जवाब पाने की जिम्मेदारी हमारी ही है। मानवता ने बड़े-बड़े जीवन अस्तित्व के संकटों के बीच उजालों को खोजा है, यही मानव इतिहास की विलक्षणता भी है।

जब संकट बड़ा हो तो संघर्ष भी बड़ा अपेक्षित होता है। इस संघर्ष में जन-जन की मुट्ठियां तन जाने का अर्थ है कि आपके अंदर किसी लक्ष्य को हासिल करने का पूरा विश्वास मौजूद है। जीवन को नयी दिशा देने एवं संकट से मुक्ति के लिये कांटों की ही नहीं, फूलों की गणना जरूरी होती है। अगर हम कांटे-ही-कांटे देखते रहें तो फूल भी कांटे बन जाते हैं। 'उम्मीद की मद्धिम लौ, नाउम्मीदी से कहीं बेहतर है।’ हकीकत तो यह है कि हंसी और आँसू दोनों अपने ही भीतर हैं। अगर सोच को सकारात्मक बना लें,तो जीवन रसमय बन जाएगा और संकट को हारना ही होगा।

कोरोना वायरस के कारण जीवन में अनेक छेद हो रहे हैं, जिसके कारण अनेक विसंगतियों को जीवन में घुसपैठ करने का मौका मिल रहा है। हमें मात्र उन छेदों को रोकना, बंद करना ही नहीं है,बल्कि जिम्मेदार नागरिक की भांति जागरूक रहना होगा। यदि ऐसा होता है तो एक ऐसी जीवन संभावना, नाउम्मीदी में उम्मीदी बढ़ा सकती है, जो न केवल सुरक्षित जीवन का आश्वासन दे जाए, जीवन का परिष्कार कर जाए, संकट से मुक्ति का रास्ता दे जाये। इस तरह इंसान का कद उठ जाए और आदमी-आदमी को पहचान दे जाए, तभी जीवन को सार्थक कर पाएंगे। प्रयत्न अवश्य परिणाम देता है, जरूरत कदम उठाकर चलने की होती है, विश्वास की शक्ति को जागृत करने की होती है। विश्वास उन शक्तियों में से एक है जो मनुष्य को जीवित रखती है, विश्वास का पूर्ण अभाव ही जीवन का अवसान है।

आज संकट एवं आशंकाओं के रेगिस्तान में आदमी तड़प रहा है। संकल्प एवं संयम एक ऐसी निर्मल गंगा है, जो तड़पते हुए आदमी के संकट पर शीतल बूंदें डालकर उसकी तड़प-शंकाओं को मिटा सकता है और उसकी मूर्छा को तोड़ सकता है। मनुष्य जीवन में गैर-जिम्मेदारी एवं लापरवाही की इतनी बड़ी-बड़ी चट्टानें पड़ी हुई हैं, जो मनुष्य-मनुष्य के बीच व्यवधान पैदा कर रही हैं। संकल्प, संयम एवं समर्पण के हाथ इतने मजबूत हैं कि उन चट्टानों को हटाकर आदमी को आदमी से मिला सकता है, जीवन की संभावनाओं को पंख लगा सकता है। इसके लिये जरूरी है कि आदमी को खुद पर विश्वास जागे। स्वेट मार्डेन ने कहा भी है कि मनुष्य उसी काम को ठीक तरह से कर सकता है, उसी में सफलता प्राप्त कर सकता है,जिसकी सिद्धि में उसका सच्चा विश्वास है।

मनुष्य के जीवन को सही रास्ते पर चलाने के लिए कुछ माइल स्टोन हैं- आत्मविश्वास, संकल्प, संयम, समर्पण, समता और सहिष्णुता। संभवतः इन्हीं मूल्यों की सुरक्षा के लिए मनुष्य ने उन्नत जीवन की कामना की थी। इसी उन्नत जीवन के खुले आसमान के  नीचे ही एक स्वस्थ एवं सुरक्षित व्यक्ति का जीवन संभव है। बिस्मार्क ने कहा है कि अभिप्राय में उदारता, कार्यसंपादन में मानवता, सफलता में संयम- इन्हीं तीन चिन्हों से महान व्यक्ति जाना जाता है। इसी से जीवन में सफलता का वरण करना संभव है। यह भी सुनने को मिलता है कि आज आदमी आदमी नहीं रहा। ईश्वर का पहला चिन्तन था- "फरिश्ता" और ईश्वर का ही पहला शब्द भी था " मनुष्य " ।ईश्वर के प्रारंभिक दोनों ही चिन्तन आज लुप्तप्राय है।