वैश्विक रिश्तों के चक्रव्यूह में उलझने से बचें भारत-नेपाल


वैश्विक रिश्तों के चक्रव्यूह में उलझने से बचें भारत-नेपाल मुझे याद है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद अक्सर तुलनात्मक परिस्थिति में दो सुप्रसिद्ध पंक्तियों को दुहरा कर सामने वाले को नसीहत देते थे कि समय नहीं है शेष, पाप का अपराधी है ब्याध। जो रहेगा तटस्थ, समय लिखेगा उसका भी अपराध। लेकिन यूपी-बिहार के समीप बसे पड़ोसी देश नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इन लोकप्रिय पंक्तियों से कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसा इसलिए कि उनकी हाल की भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली में जब उनसे यह पूछा गया कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर आपकी क्या राय है, तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि -हम इसपर तटस्थ हैं। हमारे दो बड़े पड़ोसी हैं और दोनों से ही मित्रता के सम्बन्ध है। इसलिए अब समय ही बताएगा कि वह कितना तटस्थ हैं! या फिर उनकी तटस्थता का अभिप्राय । बड़े क्या है? कई पूर्व नेपाली प्रधानमंत्रियों की तरह ही उनका पलड़ा भी कहीं परोक्ष रूप से चीन की तरफ तो नहीं झुका हुआ है, जबकि उनकी भौगोलिक परिस्थितियां उनके कदम को रोक रही हैं जिससे वह भी अब गफलत भरी बातें करने की आदी हो चुके हैं। एक बात और, पाक से सम्बंधित


एक बात और, पाक से सम्बंधित सार्क शिखर सम्मेलन के आयोजन के मसले पर भी भारत की ओर से उन्हें दो टूक जवाब मिल चुका है कि सार्क के साथ चलना मुश्किल है। यह चीन परस्त और पाक समर्थक सार्क देशों के लिए किसी खतरे की घण्टी से कम नहीं है। दरअसल, जिस सार्क की स्थापना भारत ने करवाई हो, अब वही यदि उससे मुंह फेर रहा हो तो अन्य सदस्य देशों को भी चौकन्ना हो जाना चाहिए। पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, नेपाल, बंगलादेश में जो भारत विरोधी और चीन समर्थक बयारे बह रही हैं, उससे भारतीय नेतृत्व अब न केवल सजग है बल्कि सख्त जवाबी कार्रवाई करने को भी तैयार है। वाकई, इन कारणों को ओली भी समझते होंगे, फिर भी यदि उन्होंने इसका निदान ढूंढने की पहल की तो एक झटके में ही मोदी ने उनकी कोशिशों पर पानी फेर दिया। दरअसल, वर्ष 2014 में नेपाल ने सार्क शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े ही उत्साह के साथ उनकी कोशि014 में नेपाल । शिरकत किया था। और जब 2016 में पाकिस्तान के इस्लामाबाद में सार्क शिखर सम्मेलन होना था, उसी वक्त जम्मू-कश्मीर (भारत) के उरी सैन्य कैम्प पर आतंकवादी हमला हो गया जिससे क्षुब्ध भारत ने सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया था। यही वजह है कि तब से अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान सार्क सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहा है। अपनी शातिर रणनीति के तहत पिछले महीने अपने काठमांडू दौरे के दौरान पाक प्रधानमंत्री शाहिद खकान अब्बासी ने ओली से इसमें मदद की मांग की थी। इसलिए भारत-नेपाल के बीच गत दिनों हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान जब सार्क सम्मेलन आयोजित करने का मुद्दा उठा तब भारत ने स्पष्ट कर दिया कि मौजूदा परिस्थितियों में यह सम्भव नहीं है, क्योंकि क्षेत्र में जारी विध्वंसक गतिविधियों को सीमा पार का समर्थन हासिल है जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रही हैं। इसलिए इस तरह के पहल को आगे बढ़ाना मुश्किल है। इस पर ओली ने स्थिति को सम्भाला और सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि वह परिस्थितियों से वाकिफ हैं। दरअसल, सार्क संविधान के तहत नाम के वर्ण के आधार पर देशों को द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने का मौका मिलता है और मेजबान देश ही सम्मेलन की अध्यक्षता करता है। सम्मेलन की सहयोग को व्यापक बनाने के लिये तैयार है। इसलिए उसे दृढ़ विश्वास है कि दोनों देशों के बीच संपर्क हमारी आर्थिक प्रगति को बढ़ायेगा और हमारे नागरिकों के लिए लाभकारी रहेगा। गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री


गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने 6 से 8 अप्रैल तक भारत की राजकीय यात्रा की, जिस दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने परस्पर बहुआयामी संबंधों के संपूर्ण दायरे की व्यापक समीक्षा की, और दोनों सरकारों, निजी क्षेत्र और लोगों के बीच परस्पर बढ़ती साझेदारी का स्वागत किया। दोनों प्रधानमंत्रियों ने समानता, परस्पर विश्वास, सम्मान और लाभ के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को नयी सर्वोच्च ऊंचाइयों पर ले जाने का जो संकल्प लिया, वह भी कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। भारत और नेपाल के मैत्रीपूर्ण