दंतेवाड़ा की वह अविस्मरनीय रात

छत्तीसगढ़ में बस्तर इलाके की हृदयस्थली जगदलपुर में 24 अगस्त ‘बस्तर विकास संवाद'' का आयोजन किया था। जगदलपर कषि विश्वविद्यालय का सभागार खचाखच भरा था। सैकड़ों लोग जिन्हें बैठने को कर्सियां नहीं मिल पायी थीं, दरवाजों के पास और गलियारों में भी खड़े थे। अद्धत कार्यक्रम हुआ। हॉल की सीटों की संख्या के हिसाब से ही भोजन की व्यवस्था की गयी थी। लगभग दगने लोग आ गये। भोजन कम पड़ गया। वैसे यह किसी समारोह की सफलता का शुभ संकेत भी माना जाता है। मख्यमंत्री डा0 रमन सिंह ने अपने भाषण में दिल्ली से आये हुए पत्रकारों की टोली को चनौती भरे स्वरों में कहा कि *“आप जब इतना कष्ट करके जगदलपर तक आ ही गये हैं, तो एक बार दंतेवाड़ा भी हो आइये। बस्तर का कैसा विकास हुआ है यह स्वयं जान लीजिए। दंतेवाड़ा के बारे में जो भ्रम पाल रखा है उसका समाधान भी कर लीजिए।'' हिन्दुस्थान समाचार का अध्यक्ष होने के नाते मैंने मंच पर से ही डा0 रमन सिंह जी की चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और तत्काल घोषणा कर दी कि ‘‘मेरे साथ चाहे कोई आयें या न आयें मैं तो दंतेवाड़ा जा ही रहा हूँ।'' दिल्ली से लगभग 50 पत्रकार साथी प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से गये थे, उनमें से लगभग आधे तो वापस लौट गये। मैं तो यह नहीं कहता कि वे दंतेवाड़ के नाम से डर गये होंगे। क्योंकि, पत्रकार की जाति डरती तो नहीं है। जान हथेली पर रखकर घूमने की आदत पड़ चुकी होती है। किन्तु, कुछ व्यवहारिक दिक्कतें भी थी। षायद ही कोई ऐसा था जो एक रात रूकने की तैयारी से गया था। मैं भी जो कपड़े पहनकर गया था वही साथ था। न बदलने को कपड़े, न मंजन, न ब्रश, न सेविंग किट, न दवाईयां। फिर भी जब मैं दंतेवाड़ा के लिए चल पड़ा तो लगभग 20 पत्रकार मित्र साथ हो लिये। 80 से 85 किलोमीटर का जंगली रास्ता। मैंने ड्राइवर से पूछा,- “कितना समय लगेगा भाई? उसने कहा,-''पहले 5 से 6 घंटे लग जाते थे साब। लेकिन, जब से डा0 रमन सिंह जी आये हैं, तेजी से सुधार हुए हैं। सड़क इतनी चौड़ी और अच्छी हो गयी है कि डेढ़ घंटे में जगदलपुर से दंतेवाड़ आसानी से पहुंच जाते हैं।'' मैंने पूछा,- ‘‘सुना है यहां नक्सली सड़क नहीं बनने देते थे?'' रामू ड्राइवर ने कहा कि, “साहब आपने ठीक ही सुना है। कोई ठेकेदार यहां आने को तैयार ही नहीं होता था। नक्सली इंजीनियरों से मारपीट करते थे। जगह-जगह सड़के खोद देते थे। एक बार मैं भी फंस चुका हूँ।'' मैंने पूछ- “क्या हुआ?'' उसने बताया कि एक बार जगदलपुर से दंतेवाड़ जाते हुए नक्सली सड़क खोदते हुए मिल गये। मेरी गाड़ी को रोक रहा फिर दिया। घेरकर गाड़ी से चाभी निकाल ली। गाड़ी में एक मरीज भी था। उन्होंने मुझे और गाड़ी में बैठे सभी लोगों को, यहां तक कि बीमार व्यक्ति को भी एक- एक फावड़ा थमाया और हम लोगों से 2 घंटे तक सड़क खोदवाते रहे। फिर मुझे चाभी देकर वापस जाने को कहा और चेतावनी दी कि दुबारा वापस नहीं आना। लेकिन, अब तो कोई ऐसी बात नहीं है, साहब। अब आप एक से डेढ़ घंटे में दंतेवाड़ा पहुँच जायेंगे। सड़क भी अच्छे है और गांव वाले भी। गांववासी नक्सलियों की सारी चालों को समझ गये हैं। ये कहने को नक्सली हैं लेकिन, वास्तव में ये तमाम अपराधकर्मी और गुंडें हैं। ट्रकों और ठीकेदारों से पैसे वसूलना, वन सम्पदा की तस्करी करना और गांव वालों को तरह-तरह से प्रताड़ित करने और जंगलों में मौजमस्ती करने के अलावे इनका कोई काम नहीं है। ये बस्तर के हैं भी नहीं। इनके सारे कमांडर दिल्ली और हैदराबाद में पढ़े आवारा लड़के हैं जो अब नक्सलवाद के नाम पर लूटमार और अय्यासी कर रहे हैं। अब इनकी जमकर पिटाई हो रही है और ये अपना जान बचाकर भागते फिर रहे हैं। गांव में अब इनका साथ देनेवाला कोई नहीं बचा है।'' गाडी आगे बढ़ती रही। बढ़िया चौड़ी सड़क। सड़क की फिनिशिंग इतनी अच्छी कि लग रहा था कि किसी नवनिर्मित नेशनल हाईवे पर हों। कहीं भी एक गड़वा नीं। कोई ब्रेकर नहीं। गाड़ी में कोई झटका नहीं। चारों ओर हरियाली ही हरियाली। शायद ऐसी ही हरियाली को देखकर बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘‘शस्य श्यामलम् मातरम्' लिखा होगा। हरे भरे लगभग हम जगदलपुर से दंतेवाळू धान के खेत, जंगल, पहाड़ियां, छोटे- छोटे झरने, चद्मनों पर खेलते बच्चे। जगह-जगह लगे हाट। मुर्गों को लड़कर उसका आनन्द लेती गांव की भोली- भाली जनता। अद्भुत दृश्य था। अब लगभग हम जगदलपुर से दंतेवाड़ा पहुंचने ही वाले थे। लेकिन, मेरी आंखे जो देखने की इच्छुक थी, वह कहीं दिख नहीं रहा था। न कहीं अद्ध सैनिक बल, न स्थानीय पुलिस। कोई चौकीदार भी नहीं दिखा। सबकुछ सामान्य। अब हम अटल बिहारी वाजपेयी समेकित शिक्षण केन्द्र परिसर में पहुंच चुके थे। 240 एकड़ में फैला यह परिसर भी डा0 रमन सिंह का अभिनव प्रयोग है। यह एजुकेषनल सिटी जवांगा नाम के गांव में स्थित है जो दंतेवाड़ शहर से 12 से 15 किलोमीटर पहले ही लगभग 240 एकड़ की प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर भूखंड पर डा0 रमन सिंह जी द्वारा बसाया गया है। पहले से ही इसका नाम अटल बिहारी वाजपेयी परिसर रखा गया है। डा0 रमन सिंह अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी राज्य मंत्री थे और अटल जी का भरपूर आषीर्वाद उन्हें मिला था। सबसे पहले हम बी0पी0ओ0 कम्पलेक्स पहुंचे जहां लगभग 300 नवयुवक-नवयुवतियां एक अत्याधुनिक कॉल सेंटर में काम कर रहे थे। उन्हें कम्प्यूटर पर बैठकर खटाखट काम करते देख आश्चर्य भी हुआ और आनन्द भी आया। दंतेवाड़ा जिला के युवा और उर्जावान जिलाधिकारी सौरभ सिंह स्वयं एक-एक हॉल में हमें लेकर गये और किस हॉल में क्या काम चल उनसे से कइयों से मैंने बानी - रहा है उसकी विस्तृत जानकारी दी। एक हॉल में हैदराबाद की एक साफ्टवेयर कम्पनी द्वारा इन बच्चों से किसी प्रोजेक्ट पर काम कराये जा रहे थे। उनका प्रषिक्षण कार्यक्रम चल रहा था। उनसे से कइयों से मैंने बातचीत भी की। उनका कहना था कि यहां के बच्चे अच्छा काम कर रहे हैं और हैदराबाद की तुलना में लगभग आधे पैसे में ही इनकी सेवायें भी उपलब्ध हैं। यहां 12 घंटे काम करने का मात्र 400 रूपये प्रतिदिन देना पड़ता है, जबकि इसी काम के लिए हैदराबाद में बच्चे 800 से 1200 रूपये में भी मुष्किल से ही उपलब्ध हो पाते हैं। सभी बच्चों के लिए यहां हॉस्टल और भोजन की व्यवस्था की गई है। लड़के लड़कियों के लिए अलग-अलग हॉस्टल है। बच्चे मुक्त प्राकृतिक वातावरण में काम कर रहे हैं। ये भविश्य के प्रति आषान्वित भी हैं। सभी स्वस्थ्य और प्रसन्न दिखे। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि बी0सी0ए0 और एम0सी0ए0 करके बच्चे अपने गांव के पास ही काम कर रहे हैं। जिलाधिकारी सौरभ सिंह ने बताया कि अब यहां की 300 सीटें कम पड़ रही है। कुछ दिन पहले यहां राश्ट्रपति महोदय भी आये थे। उन्होंने भी इस कार्य को सराहा था। अब मख्यमंत्री डा0 रमन सिंह के आदेश पर हम बी0पी0ओ0 की सीटों को बढ़ाकर 1000 करने की कार्य योजना को मूर्तत रूप देने में लगे हैं। इसके बाद हम अटल बिहारी वाजपेयी शिक्षण परिसर में ही स्थित आवासीय विद्यालय में गये, जिसका नाम है 'आस्था''। सी.बी.एस.ई. पाठ्यक्रम वाले इस विद्यालय को एक ट्रस्ट द्वारा चलाया जा रहा है, जिसके अध्यक्ष जिलाधिकारी ही हैं। इस आधुनिक सुन्दर से विद्यालय में नक्सली आतंक में मारे गये ग्रामीणों के बच्चे-बच्चियां मुफ्त षिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। मेरे लिए वह एक आनन्ददायक या यूं कहिये आष्चर्यजनक अनुभव का क्षण था। खासकर बच्चों के स्मार्ट क्लास रूम और उनकी विज्ञान की प्रयोगषालाओं को देखकर मुझे ऐसा लगा कि दिल्ली और देहरादून के बड़े और नामी स्कूलों के बच्चों को और षिक्षकों को भी इन बच्चों और इस विद्यालय प्रबंधन के दक्षता से कुछ सीख लेने की जरूरत है। बच्चेबच्चियां आत्मविश्वास से लबरेज। विषय का पूर्ण ज्ञान और अभिव्यक्ति में कोई झिझक नहीं। जब जिलाधिकारी ने पूछा कि स्मार्ट क्लास के बारे में सांसद महोदय को कौन जानकारी देना चाहेगा, तो आठवीं कक्षा की दस-बारह बच्चियों ने एक साथ हाथ उठा दिया। यह आत्मविश्वास देखकर मैं चकित था। मैं देहरादून के दि इंडियन पब्लिक स्कूल का अध्यक्ष भी हूँ। इस नाते मैंने तत्काल जिलाधिकारी सौरभ सिंह जी को बच्चों को एक एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार भी किया। इसके बाद हमने जिस विद्यालय का भ्रमण किया। वह दिव्यांग बच्चों का विद्यालय था जिसका नाम है 'सक्षम''। नाम के अनुरूप ही यहां दिव्यांग बच्चे-बच्चियों को सक्षम बनाने का सार्थक प्रयास चल रहा है। यहां तमाम बस्तर इलाके के दृश्टिहीन, गुंगे-बहरे, कुबड़े और हाथ-पैर से कमजोर बच्चे पढ़ते हैं।