केरल में बाढ़- तो हमें नहीं आया आपदा प्रबंधन

यूं तो भारत के लिए नई नहीं है बाढ़ की विभीषका,पर केरल को बाढ़ ने जिस तरह से अपनी चपेट में लिया वो भयभीत कर रही है। भारी बारिश और ज़मीन खिसकने के कारण केरल को इस सदी की सबसे बड़ी मानव आपदा का सामना करना पड़ा है। केरल के 14 जिलों में से 11 जिले इस गंभीर आपदा से बुरी तरह बर्बाद हो गए हैं। सैकड़ों लोग मारे गए और लाखों लोग बेघरवार हो गए हैं। मरने वालों की वास्तविक संख्या कहीं अधिक होगी। राहत शिविरों में रह रहे लोगों को सामान्य होने में लंबा वक्त लगेगा। संकट की इस घड़ी में केरल के साथ सारा देश खड़ा हो गया।गावों-कस्बों से लेकर देश के मेट्रो शहरों के नागरिक केरल को मदद देने के लिए सामने आ गए हैं। पर इस भारी त्रासदी में एक बात खटकती रही कि बॉलीवुड की कुछ हस्तियां- जैसे शर्मिला टैगोर और ऋतक रोशन जनता का आहवान तो करते रहे कि वे बर्बाद हो गए केरल के लिए मदद के लिए आगे आएं पर इन्होंने कभी ये नहीं बताया कि ये कितना सहयोग केरल के जरूरतमंदों के लिए कर रहे हैं। यहां पर छोटे या बड़े सहयोग से मतलब नहीं है। सारा मामला भावना से जुड़ा हुआ है। दूसरे को ज्ञान देने वाले, अपील करने वाले स्वयं कितना पैसा केरल को दे रहे हैं, ये क्यों नहीं बताते। उन्हेंसभी के सामने एक आदर्श पेश करना चाहिए। शर्मिला टैगोर एक खबरिया चैनल पर अपील कर रही थीं,  जबकि ऋतक रोशन ने केरल वासियों लिए अपील एक अखबार को दिए इंटरव्यू में की। बस, यही ही फर्क है हमारे की कथित नामवर हस्तियों में और अमेरिका के धनी लोगों में। वे प्रचार से दूर रहते बिल गेट्स और मार्क जुकरबर्ग  हजारों करोड़ रुपया दान देकर भी प्रचार नही करते।


भारत के एक नवधनाढ्य शख्स संकटग्रस्त केरल के लिए मात्र दस हजार रुपये की राशि देकर ट्वीट भी किया। अपने देश के किसी प्रांत की जनता का संकट की घड़ी में साथ देने को प्रचारित किया जाए दुर्भाग्यवश सोशल मीडिया पर भी अनेक लोग बता रहे हैं कि उन्होंने इतनी राशि केरल के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री राहत कोष लिए दी।। जबकि ऋतक रोशन ने केरल वासियों के लिए अपील एक अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में की। बस, यही ही फर्क है हमारे देश की कथित नामवर हस्तियों में और अमेरिका के धनी लोगों में। वे प्रचार से दूर रहते हैं। बिल गेट्स और मार्क जुकरबर्ग हर साल हजारों करोड़ रुपया दान देकर भी प्रचार नहीं करते। भारत के एक नवधनाढ्य शख्स ने संकटग्रस्त केरल के लिए मात्र दस हजार रुपये की राशि देकर ट्वीट भी किया। क्या अपने देश के किसी प्रांत की जनता का संकट की घड़ी में साथ देने को प्रचारित किया जाए? दुर्भाग्यवश सोशल मीडिया पर भी अनेक लोग बता रहे हैं कि उन्होंने इतनी राशि केरल के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए दी।। क्या ये सब जाहिर करने की आवश्यकता है? बिल्कुल नहीं। आपने मदद का प्रचार करके अपने को छोटा ही साबित किया। केरल देश का बहुत प्यारा राज्य है। शत प्रतिशत साक्षर और सारे देश-दुनिया में यहां की नसें निस्वार्थ भाव से अस्पतालों में सेवा करती हुई मिल जाएंगी। खाड़ी देशों में लाखों मलयाली बसे हैं। ये हर साल देश में अरबों रुपये भेजते हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था को एक मजबूती मिलती है। मदद करो, पर प्रचार से बचो अब वही केरल संकट में है तो देश तो उसके साथ पूरी शिद्धत के साथ खड़ा होगा ही। पर जो इसे मदद के नाम पर अपना प्रचार कर रहे हैं, वे सही नहीं कर रहे। इस दैविक संकट में केरल को अकेले छोड़ने का प्रशन ही नहीं उठता। एक बात और लग रही है कि केन्द्र और बाढ़ प्रभावित राज्यों को बाढ़ जैसी दैविक विभीषिकाओं का सामना करने के लिए ठोस कार्य योजना बनाने की आवश्यता है। पिछले वर्ष अकेले बिहार में क्रमश514, गुजरात में 224, पूर्वोत्तर राज्यों में 85, राज्यस्थान में 17, पश्चिम बंगाल में 50, मुंबई में 14 और झारखंड में आठ लोग मारे गए। इन राज्यों में बाढ़ से करोड़ों-अरबों रुपये की फसलें और संपत्ति नष्ट हो गई थी। अब केरल को ही लें। वहां पर हजारों घर भूस्खलन के कारण ध्वस्त हो गए। प्रभावित लोग शिविरों में रहने को मजबूर हैं। कब ये अपने घरों में वापसी करेंगे, कोई नहीं जानता। केरल को फिर से खड़ा करने के लिए देश को मिल कर प्रयास करने होंगे। ये कार्य कठिन है, पर असंभव नहीं है। इस बीच, केरल में बाढ़ राहत और बचाव अभियान के बीच आम लोगों की संवेदनशीलता की प्रेरणादायककहानियां सुनने को मिल रही हैं। राज्य की राजधानी त्रिवेंद्रम केएक अखबार के पत्रकार ने अपनी बेटी कीसगाई रद्द करके उसके लिए बचाया हुआ पैसा बाढ़ राहत कोष में दे दिया। सेना और प्रशासन के प्रशंसनीय प्रयासों के साथ-साथ यह जानना भीमहत्वपूर्ण है कि वहां कामेहनतीसमाज सरकारी मदद के इंतजार में हाथ परहाथ धर कर बैठा नहीं रहा।केरल को कपडेऔर खाना वगैरह के साथ-साथ बड़ी संख्या में बढ़ई, प्लम्बर और इलेक्ट्रीशियन भी चाहिए ताकि दैनिक जीवन की छोटी छोटी दिक्कतोंपर काबू पाया जा सके और जिन्दगी वापस पटरी पर आ सके।केरल की इस त्रासदी में वहां के मछुवारों ने बचाव कार्यों में गजब का सहयोग दिया। उन्होंने बिना किसी आदेश या सन्देशके स्वयं अपनी नावों में बाढ़ में फंसेलोगों को बचाया। सारा देश उनका कृतज्ञ है। जाबांजी सेना की केरल में विनाशकारी बाढ़ के दौरान राहत और बचाव कार्य में भारतीय वायुसेना के साहसी जवानों की जबरदस्त जांबाजी देखने को मिली। अपनी जान जोखिम में डालकर भी ये जांबाज़ अपने कर्तव्य को बखूबी अंजाम देते रहे हैं। निरंतर और भारी बारिश के बावजूद, भारतीय सेना की टुकड़ियां अस्थायी फुट ब्रिजों, बांधों और वैकल्पिक मार्गों की तैयारी करके दूरदराज के गांवों से सम्पर्क बहाल करने के लिए दिन-रात काम करती रही हैं। इन्होंने 38 दूरस्थ क्षेत्रों को फिर से जोड़ने के लिए 13 अस्थायी पुलों का निर्माण किया और लगभग 4 हजार लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया, जिसमें 22 विदेशी नागरिक शामिल हैं।सेना ने दर्जनों गांवों को राहत सामग्री पहुंचाई और हजारों नागरिकों को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई हैं। कभीकश्मीर, कभी उत्तराखड़ और अब केरल में भारतीय सेना बचाव और राहत अभियान में पूरीतन्मयता से जुटी है। सेना और वायुसेना ने केरल की त्रासदी को कुछ कम अवश्य किया है।धन्य है भारत की सेना जो पत्थर भी खाती है और मानवता भी दिखाती है। केरल की बाढ़ से देश को बहुत कुछ सीखना भी होगा। हमें भी आपदाप्रबंधनको लेकर बहुत कुछ सीखना है। सिक्किम, लातूर, कच्छमें भूकंप से तबाही, बिहार में कोसी की बाढ, उत्तराखंड में भीषण बारिश और बाढ़ से हुई तबाही और अब केरल। ये तो कुछेक उदाहरण थे,जिनका मुकाबला करने में देश कमजोर साबित हुआ। आप चाहें तो मुंबई में आतंकी हमले को भीआपदाकी श्रेणी में रख सकते हैं। अमेरिका में तूफान और जापान भूकंप के शिकार होते रहते हैं। पर इसके बावजूद वहां पर जान माल का नुकसान बहुत कम होता है। भारत की तुलना में तो बहुत ही कम। साफ है कि अब ये दोनों देश प्राकृतिकआपदाओं का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। कुछ सालपहले जापान में भयंकर सुनामी आई। उसमें हजारों लोगों की जानें गई थी। पर जापान जल्दी ही खड़ा हो गया था। अब हमें जापान-अमेरिका से प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना भी सीखना होगा।