कचरे से बनने वाली बिजली होगी सस्ती

पटना । पटना में कचरे से बिजली बनाने का काम शुरू होने वाला है. इसे देश में इस तरह का दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट माना जा रहा है. दिलचस्प बात यह है कि इससे बनी बिजली सस्ती होगी. जानकारी के मुताबिक कचरे से बनी बिजली को बिहार सरकार करीब साढ़े चार रुपये प्रति यूनिट खरीदेगी. आधिकारिक जानकारी के मताबिक दिल्ली के गाजीपुर के बाद पटना के रामाचक में डंपिंग यार्ड में प्लांट लगाने की कवायद शुरू की गयी. गाजीपुर में अभी इसका केवल एमओय हुआ है, धरातल पर उतारने की शुरुआत सबसे पहले पटना में की जा रही है. इस प्लांट की खास बात है कि इसमें प्लाज्मा गैसिफिकेशन तकनीक का प्रयोग किया जायेगा. इस तकनीक का इस्तेमाल देश में पहली बार किया जा रहा है. वहीं, देश के कई शहरों में कचरे से बिजली बनाने के प्रयोग किये जाते रहे हैं. इसमें कई +। कंपनियों ने काम किया है, मगर लगभग सारे प्रोजेक्टों का हाल खराब रहा है. कहीं भी नियमित रूप से कोई प्रोजेक्ट नहीं चला. अधिकतर प्लांट फेल हो चुके हैं. लेकिन इस बार देश में नयी तकनीक प्लाज्मा गैसिफिकेशन का प्रयोग किया जा रहा है. इसमें अमेरिका की कंपनी काम कर रही है. इसलिए इसकी अधिक संभावना है कि इस बार प्रोजेक्ट सफल रहे. कंपनी का प्लान है कि बिजली को सरकार खरीदे. इसकी संभावित रेट साढ़े चार रुपये प्रति यनिट तक रखा गया है, प्लाज्मा गैसिफिकेशन कोई नयी तकनीक हैं. लगभग 10 से 15 वर्ष पहले इसकी शुरुआत की गयी थी. लेकिन उस समय इस तकनीक से उत्पादित बिजली काफी महंगी होती थी. अब कंपनी का दावा है कि उसने शोध कर प्लांट के आउटकम को बढ़ा दिया है. इसलिए इसकी लागत कम हो गयी है. ऐसे में अब ये प्रोजेक्ट व्यावहारिक हो गये हैं. अमेरिकी कंपनी के प्रतिनिधि ने बताया कि इसको लेकर पहले दिल्ली में करार किया गया है. इसमें गाजीपुर के 15 मिलियन मीट्रिक टन पड़े कचरे के उपयोग से बिजली बनाने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया है. इसके बाद हिमाचल प्रदेश में भी कंपनी ने करार किया है. जानकारी के अनसार दिल्ली के बाद पटना में दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट है. कंपनी इससे पहले अमेरिका में अपने प्लांट पर काम कर रही है. इससे पहले कचरे से बिजली बनाने के लिए इंसिरेशन तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जो सफल नहीं रहा. अब प्लाज्मा गैसिफिकेशन का उपयोग किया जा रहा है. कंपनी के जानकार पुष्पराज सिंह बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट में लेड धातु को छोड़ कर सभी पार्ट को अणु स्तर पर तोड़ दिया जाता है. प्रोजेक्ट में सबसे पहले सभी तरह के कचरे को पानी के साथ तरल कर दिया जाता है. प्लाज्मा वैक्यूम के अंदर सात हजार से 14 हजार डिग्री सेल्सियस से पूरे मटेरियल को गुजारा जाता है. इसके बाद एटॉमिक लेवल पर हाइड्रोजन, कार्बन, सल्फर से लेकर अन्य तत्व टूट कर अलगअलग हो जाते हैं. पूरे प्लांट में सभी गैस व अन्य तत्व टूट कर अलग हो । जाते हैं. इसमें प्लांट में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को जोड़ कर पानी बनाया जाता है. फिर हाइड्रोजन व थोड़ी-सी कार्बन की मात्रा मिलाने के बाद सीन गैस बनती है. इससे टर्बाइन चलाने का काम किया जाता है. रामाचक बैरिया में 400 मेगावाट का संयंत्र बनाया जायेगा. इसमें 280 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा. साथ ही दो लाख लीटर शुद्ध पानी और दो लाख लीटर कार्बनरहित डीजल का उत्पादन किया जायेगा. इसके अलावा डीजल के बदले सीएनजी या एलपीजी का उत्पादन किया जा सकता है।