आतंक पर मुस्लिम देशों का प्रहार







अभी-अभी हुए आतंकवादी घटनाओं से मिश्र जरूर दहला पर उसने जो जवाबी कार्यवाही की उससे मिश्र की पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है और यह बात मानी जा रही है कि आतंकवादियों के प्रति पूरी दुनिया मिश्र की तरह ही जवाबी कार्यवाही करे, आतंकवादियों और आतंकवादियों को संरक्षण देने वालों को दंड पात्र बनाये तो फिर मुस्लिम आतंकवाद का सामना किया जा सकता है, मुस्लिम आतंकवाद के जड़ में मटठा डाला जा सकता है। उल्लेखनीय है कि मिश्र के अंदर में जैसे ही आतंकवाद की बडी घटना घटी जिसमे लगभग एक दर्जन से अधिक वियतनामी पर्यटक मारे गये थे, वैसे ही मिश्र की सरकार ने पूरे क्षेत्र में तलाशी अभियान चलायी और खोज-खोज कर 40 अधिक आतंकवादियों, आतंकवादियों के संरक्षण देने वालों और आतंकवादियों के मजहबी गुरूओं को मार गिराया। खासकर आतंकवादियों को संरक्षण देने वाले और आतंकवादियों के मजहबी गुरूओं को भी मिश्र की पुलिस ने निशाना बनाया है। मिश्र की पुलिस ने अलग से बयान जारी कर कही है कि आतंकवादियों को संरक्षण देने वाले नागरिकों और आतंकवादियों को उपदेश देने वाले मजहबी गुरूओं का अपराध भी आतंकवादियों की श्रेणी में रखे जायेंगे और इसकी सजा भी मौत होगी। जानना यह भी जरूरी है कि मिश्र का पर्यटन मार्केट पूरी दुनिया में विख्यात है, दुनिया भर के पर्यटक मिश्र में आते हैं, मिश्र की अर्थव्यवस्था को एक बडा आधार पर्यटन बाजार देता है। पर मिश्र में मुस्लिम वदर हुड के बढते प्रभाव और विभिन्न आतंकवादी संगठनों की आतंकवादी हिंसा के कारण मिश्र का पर्यटन बाजार भी प्रभावित हुआ है। दुनिया भर से मिश्र में आने वाले पर्यटक अब दूसरे देशों की ओर मुंह कर रहे हैं, यही कारण है कि मिश्र की पर्यटन अर्थव्यवस्था के उपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मिश्र कभी आधुनिक सोच वाला देश था पर मुस्लिम वदर हुड के प्रवेश के साथ ही साथ मिश्र में मजहबी कट्टरपंथ के हिंसक पंख लगे गये।

सिर्फ मिश्र ही क्यों बल्कि अन्य मुस्लिम देश भी अब सचेत हो रहे हैं, आतंकवाद के खतरे को देख-समझ रहे हैं, आतंकवाद को आत्मघाती मान रहे हैं। दुनिया में कई ऐसे मुस्लिम देश हैं जो मुस्लिम आतंकवाद के प्रति वीरता दिखायी है, प्रति हिंसा को आधार बना कर मुस्लिम आतंकवाद को समाप्त करने का नया हथियार भी बनाया है। हम अपने पडोसी देश बांग्लादेश का ही उदाहरण के तौर पर देख-समझ सकते थे। कभी बांग्लादेश भी कट्टरपंथ और आतंकवाद के आंकड में डूबा हुआ था पर बांग्लादेश की सरकार ने मजहबी हिंसाओं के सामने हथियार नहीं डाले, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि बांग्लादेश ने कई आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं को सरेआम फांसी पर लटका दिया, बांग्लादेश की सरकार ने यह नहीं सोची कि इससे उनका समर्थक वर्ग नाराज हो जायेगा या फिर कटटरपंथी समुदाया उनकी सत्ता को चाट जायेगा? पाकिस्तान का उदाहरण देख लीजिये। पाकिस्तान के अंदर भी दर्जनों लोगो को फांसी पर लटकाया जा चुका है जिन पर आतंकवादी घटनाओं के गंभीर आरोप थे। यद्यपि पाकिस्तान अभी भी दुनिया भर में आतंकवादियों का आउटसोर्सिग करता है फिर भी उसे अपने घर का आतंकवादी आत्मघाती लग रहे हैं, शांति का दुश्मन लग रहे हैं। 

                 सबसे बडा उदाहरण सउदी अरब का है। सउदी अरब कभी अपने आप को मुस्लिम देशों का नेता कहता था, सउदी अरब कभी इस्लाम के कट्टरपंथ का पैरवीकार था। दुनिया यह जानती है कि मुस्लिम कट्टरपंथ की हवा बहाने में सउदी अरब की कितनी बडी विनाशक भूमिका थी। अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन सउदी अरब का ही नागरिक था। सउदी अरब का नागरिक ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान और पाकिस्तान जाकर हिंसक सरगना बन गया था, ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका पर हमला करा कर पांच हजार से अधिक लोगों को मार डाला था। बाद में अमेरिका ने पाकिस्तान के अंदर में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था। एक समय वह भी था जब मुस्लिम दृष्टिकोण पर सउदी अरब आंख मंुद कर पाकिस्तान का समर्थन करता था। जब आतंकवाद खुद सउदी अरब के लिए आत्मघाती साबित होने लगा, आतंकवाद जब शांति का दुश्मन बन बैठा तब सउदी अरब के शासकों की नींद टूटी, सउदी अरब की तरक्की खतरे में पड गयी, सउदी अरब ने अनेकानेक आतंकवादियों को फांसी पर लटका दिया। सबसे बडी बात यह है कि सउदी अरब ने पाकिस्तान की आतंकवादी आउट सोर्सिंग की नीति पर संज्ञान लिया और पाकिस्तान के साथ अपने संबंध सीमित किये। एक समय भारत के साथ दुश्मनी का भाव रखने वाला सउदी अरब भारत का दोस्त बन गया। सउदी अरब ने भारत को कोई एक दो नहीं बल्कि कई आतंकवादियों को पकड कर सौंपा है। सउदी अरब के कारण ही भारत अपने देश में होने वाली अधिकतर आतंकवादी घटनाओं को रोकने में कामयाब रहा है और भारत आतंकवादियों को जेलों में डालने में सफल रहा है। चीन और मुस्लिम आतंकवाद के प्रश्न पर दुनिया में एक बडी खबर आयी है। चीन ने लगभग दस लाख मुसलमानों को अस्थायी जेलों में कैद कर शांति और सदभाव का पाठ पढा रहा है। रूस ने उन मस्जिदों पर बुलडोजर चला कर और बम मार कर उड़ाने का कार्य किया है जिन मस्जिदों में आतंकवादी शरण लिये थे या फिर संरक्षण की दोषी रही थी।

                  दुनिया में हर जगह आतंकवाद को लेकर आज एक राय बन रही है। एक राय यह है कि किसी भी परिस्थिति में आतंकवाद का समर्थन करना घातक है, शांति के लिए हिंसक है, अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है। यह भी राय बनी है कि जो भी आतंकवाद का समर्थन करे, आतंकवाद का संरक्षण दे और आतंकवाद का मजहबी गुरू बने उन सभी को आतंकवाद और आतंकवादी के बराबर माना जाना चाहिए। यह आम राय मिश्र में भी बनी हुई है, यह आम राय बांग्लादेश में बनी हुई है, यह आम राय सउदी अरब में भी बनी हुई है। धीरे-धीरे अन्य मुस्लिम देश भी इस राय को स्वीकार कर रहे हैं और यह मान रहे हैं जब तक आतंवादियों को खाद-बीज का काम करने वाले मजहबी गुरूओं और संरक्षण देने वालों पर प्रतिहिंसा नहीं होगी, ऐसे लोगों को कठोर जेलों में नहीं डाला जायेगा तब तक इनकी कट्टरपंथी मानसिकताएं टूटेगी नहीं। यह एकदम दुरूस्त राय है। दुनिया यह समझती है कि जब तक ऐसे लोगो को दंडित नहीं किया जायेगा तब तक मुस्लिम आतंकवाद का सफाया नहीं किया जा सकता है। सही भी यही है कि आतंकवादियों के सरंक्षण कर्ता और उपदेश कर्ता खादी-बीज का काम करते हैं, प्रति हिंसा के शिकार होने से बचाते हैं, कठोर जेल की सजा काटने से रोकते है। आतंकवादी बडी घटनाएं करने के बाद आबादी वाले क्षेत्रों में विलुप्त हो जाते हैं, जिन्हें खोजना पुलिस के लिए कठोर काम के रूप में तब्दील हो जाता है। आतंकवादी और आतंकवादी संगठन कोई दूसरे ग्रह के निवासी नही होते हैं, आतंकवादी और आतंकवादी इसी भूमि और इसी आबादी के बीच के हिंसक प्राणी होती है। इसी भूमि और इसी आबादी के बीच ये छिप कर अपनी करतूत करते हैं और निर्दोष लोगो को आतंकवाद का शिकार बनाते हैं।

                 यहां इस्राइल की एक थ्योरी भी बडी चर्चित है जो दुनिया भर में सराही जाती है। इस्राइल जैसे को तैसे के रूप में जवाब देने को तैयार रहता है। इस्राइल की हिंसा के प्रति प्रतिहिंसा दुनिया भर मे समर्थन विरोध हासिल करती रहती है। इस्राइल कहता है कि उनका बम वहीं जाकर गिरेगा जहां पर आतंकवादी होगा, अगर आतंकवादी आबादी वाले क्षेत्रों में छिपा होगा तो हमारा बम भी आबादी वाले इलाकों मे गिरेगा, अगर कोई आबादी वाला क्षेत्र हमारे बमों के शिकार होने से बचना चाहती है तो फिर उस आबादी को भी आतंकवादियों को शरण देने की नीति को छोडना होगा। उल्लेखनीय यह है कि इस्राइल के बम फिलिस्तीन आबादी वाले क्षेत्र मे कहर बन कर टूटते हैं। आतंकवादी इस्राइल के खिलाफ हिंसा कर फिलिस्तीन की आबादी में जाकर छिप जाते हैं। 

          मुस्लिम देशों ने मुस्लिम आतंकवाद को दफन करने के लिए जो नीति अपनायी है वह नीति पूरी तरह से दुरूस्त है। संरक्षणकर्ताओं और मजहबी गुरूओं को शांति का पाठ पढाया जाना चाहिए। भारत जैसे आतंकवाद से पीडित हर देश को भी आतंकवादियों के संरक्षणकर्ताओ और मजहबी आतंकवाद के उपदेशकर्ताओं को कानून का पाठ पढाने के लिए आगे आना चाहिए। खासकर भारत के लिए हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब राजनीति और मजहबी वर्ग आतंकवादियों के पक्ष में खडे होकर इनके कथित मानवाधिार की बात कर बखेडा खडा कर देते हैं।

 

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)