खेती में कोलिस्टिन को ना कहें

नई दिल्ली। हाल ही में चेन्नई से लिए गए कच्चे खाद्द पदार्थों के नमूनों में कोलिस्टिन-प्रतिरोधी बैक्टीरिया मिलने पर डा. के के अग्रवाल ने चिंता जताते हुए कहा कि यद्धपि यह एक वैश्विक ट्रेंड के अनुरूप है लेकिन यह न केवल मीट में. बल्कि हर तरह के भोजन में छिप रहे हैं। इसमें टमाटर से ले कर सेव तक सब कुछ शामिल है।अध्यन में परीक्षण किये गए नमूनों में लगभग ४६.४ % अत्यधिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया पाए गए। इस तरह के दूषित भोजन खाने से प्रतिरोधी बैक्टीरिया मानव आंत पर आक्रमण कर सकते हैं जो आगे चल कर संक्रमण के मामले में होस्ट को एंटीबायोटिक कोलिस्टिन के लिए प्रतिरोधी बना देगा। 


 कोलिस्टिन को चिकित्सा की भाषा में पवित्र जल कहा जाता है। यह उन रोगियों के लिए अक्सर अंतिम उपाय होता है।कोलिस्टिन का प्रतिरोध पहले से ही चिकित्सीय मुद्दा रहा है। इस बारे में बोलते हुए हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. के के अग्रवाल ने कहा कि एंटीबायोटिक्स सूक्ष्मजीवों के भीतर विशिष्ट तंत्र को लक्षित करके विकास और अस्तित्व के लिए आवश्यक है। जबकि बैक्टीरिया में कुछ रक्षा प्रणालियाँ हैं जो धीरे धीरे इन प्रभावों से बचती हैं और प्रतिरोधी बन जाती है।एंटीबायोटिक्स के अधिक उपयोग से रक्षा प्रणाली की गति बहुत तेज हो सकती है,क्योंकि हम उनका मुकाबला कर सकते है।एंटीबायोटिक्स दवा विकास की पाइपलाइन तेजी से सूख रही है। नए दवा अणुओं और दवा लक्ष्यों पर अनुसंधान को गति देने व् सहयोग करने की आवश्यकता है। पुरानी एंटीबायोटिक दवाओं को वापस लेन का विचार भी ध्यान आकर्षित करता है।डा.अग्रवाल ने यह भी कहा कि चिकित्सा विज्ञान में भी स्पष्ट ज्ञान का आभाव है कि एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध कैसे विकसित होता है। इसके अध्यन में स्पष्टता की कमी है जिस कारण अनुसंधान बहुत जरूरी हो जाता है।


एंटीबायोटिक दवाओं के ओवर द काउंटर उपयोग पर चिंता जताते हुए डा.अग्रवाल ने कहा कार्बापेमस और कोलीन जैसी मूलयवान दवाओं की प्रभावकारिता घटा दी है। हम तेजी से जीवन रक्षक विकल्पों से बाहर हो चले हैं।डा.अग्रवाल ने सुझाव देते हुए कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का तर्कसंगत उपयोग हो व् टीकाकरण कराके संक्रमण को रोकना और हाथों की स्वच्छता के साथ साथ किसानों व् उद्धोग को भी इसका काम से काम प्रयोग करना चाहिए।