सजा पायी सज्जन ने, पर मुसीबत में कांग्रेस
यह भी सर्वविदित है सिख आतंकवाद में घी डालने और इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद नियंत्रित व प्रायोजित ढंग से हुए सिख कत्लेआम को दबाने, अपराधियों को बचाने, सबूतों को मिटाने का कार्य भी सरेआम हुए थे, तत्कालीन केन्दीय सत्ता के अधीन सबूतों को मिटाने के खेल-खेला गया था। यहां दो बयानों को रखना अनिवार्य है, ये दोनों बयान कांग्रेस को पूरी तरह से बेनकाब करते हैं, ये दोनों बयान किसी छोटे-मोटे कांग्रेसी कार्यकर्ता का नहीं है, बल्कि बयान कांग्रेस के टाॅप मोस्ट नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री के हैं। यानी की राजीव गांधी के हैं। राजीव गांधी ने अपने बयानों में क्या कहा था, यह भी देख लीजिये। अपनी माता इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद नियंत्रित और प्रायोजित ढंग से सिखों के कत्लेआम को सही ठहराने की अप्रत्यक्ष तौर पर कोशिश की थी। उस समय राजीव गांधी ने कहा था कि जब बड़ा पेड गिरता है तो फिर धरती डोलती ही है, हलचल होती ही है। राजीव गांधी के इस बयान का अप्रत्यक्ष अर्थ यह था कि जब प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठी इन्दिरा गांधी जैसी बडी शख्सियत की हत्या होगी तब हिंसा होगी ही, कत्लेआम होगा ही, यह तो स्पष्ट स्थिति है। राजीव गांधी का वह बयान सिख दंगों में मारे गये बेकसूर लोगों के परिजनों का अपमान था, पीड़ित परिजनों के जख्मों पर नमक छिड़कने वाला था। राजीव गांधी यह बयान मासूमियत में दी हो या फिर अपनी माता की हत्या से उपजी स्थिति को ध्यान में रख कर दिया हो पर उनके बयान ने भारतीय राजनीति को झकझौर कर रख दिया था, भारतीय राजनीति और कानून के शासन में विश्वास रखने वालों के लिए घोर चिंता का विषय था। उस समय विपक्ष कमजोर था, पूरा देश इन्दिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति को लेकर कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ था, इसलिए राजीव गांधी के उस बयान की कोई नुकसानकुन प्रतिक्रिया नहीं आयी थी।
राजीव गांधी का दूसरा बयान भिड़रावाले को लेकर था। भिड़रावाला जो सिख आतंकवाद का सरगना था, जिस तरह से मुस्लिम आतंकवाद का सरगना ओसामा बिन लादेन था जिसे अमेरिका ने पाकिस्तान के अंदर मार गिराया था उसी तरह से जनरैल सिंह भिड़रावाला भी सिख आतंकवाद का सरगना था। प्रारंभिक दौर में जनरैल सिंह भिड़रावाला भी राजीव गांधी, इन्दिरा गांधी और कांग्रेस का मोहरा था। इन्दिरा गांधी अपने विरोधियों को जमींदोज करने के लिए मोहरे का इस्तेमाल करती थी, कांटे से कांटे निकालती थी और कांग्रेस के लिए सत्ता समीकरण बनाती थी। चूंकि पंजाब में अकाली दल कांग्रेस के विरोधी हुआ करते थे। इसीलिए अकालियों के खिलाफ जनरैल सिंह भिडरावले को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया गया। इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी को यह मालूम नहीं था कि एक न एक दिन भिडरावाला उनके लिए भस्मासुर साबित हो जायेगा, इतना ही नहीं बल्कि भिडरावाला पाकिस्तान की गोद में बैठ जायेगा और भारत की एकता व अखंडता के लिए खतरा बन बैठेगा? हुआ भी यही। भिडरावाले जब शक्तिशाली हो गया, उसके साथ दिग्भ्रमित युवाओं की टीम खडी हो गयी तो फिर वह देश की एकता और अखंडता का दुश्मन बन गया। राजीव गांधी भिडरावाले का समर्थन करते हुए कहा था कि भिडरावाले आतंकवादी नहीं हो सकते हैं,भिडरावाले हिंसक नहीं हो सकते हैं, भिडरावाले एक संत हैं और संत के रूप में उनकी इज्जत होनी चाहिए। जबकि पूरा देश यह जानता था कि भिडरावाले पाकिस्तान की गोद में बैठा हुआ है, वह पाकिस्तान की इच्छानुसार भारत की एकता और अखंडता को तोडना चाहता है। इसका दुष्परिणाम क्या हुआ? यह कौन नहीं जानता है। देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए ब्लू स्टार जैसी सैनिक कार्रवाई करनी पडी थी। इसी आक्रोश में इन्दिरा गांधी की हत्या हुई थी।
सिखों के कत्लेआम की जांच के लिए रंगनाथ मिश्रा आयोग बनाया गया था। रंगनाथ मिश्रा आयोग ने सिखों के कत्लेआम की कहानियां चाकचैबंद ढंग से जुटाने में विफल रहा था। रंगनाथ मिश्रा आयोग पूरी तरह से पक्षपाती था। केन्द्रीय सत्ता के निर्देशों पर काम कर रहा था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पुलिस और प्रशासन भी तत्कालीन केन्द्रीय सत्ता से प्रभावित होकर सिख दंगों के सबूत को मिटाने की कोशिश में लगे हुए थे। पुलिस और प्रशासन ने अपनी ईमानदारी दिखायी होती तो फिर सज्जन कुमार जैसे अपराधी कब के जेल में होते। रंगनाथ मिश्रा को बाद में कांग्रेस पुरस्कृृत भी की थी। रंगनाथ मिश्रा को कांग्रेस ने संसद में भेजा था। सिखो के कत्लेआम को दबाने के कार्य का ही पुरस्कार कांग्रेस ने रंगनाथ मिश्रा को सांसद बना कर दिया था इसलिए कांग्रेस अपने आप को सिख दंगों के अपराध से अलग भी नहीं कर सकती है।
सज्जन कुमार को आजीवन करावास की सजा हो चुकी है। इस सजा से ही कांग्रेस मुसीबत से घिर गयी है। कांग्रेस को और भी मुसीबत आयेगी। अब जगदीश टाइटलर और कमलनाथ को भी सजा हो सकती है। जगदीश टाइटलर और कमलनाथ के खिलाफ दिल्ली में सिख संगठन सक्रिय भी हो गये हैं। जगदीश टाइटलर और कमलनाथ के खिलाफ भी मुकदमेें खुलने वाले हैं, नये सिरे से गवाहियां की मांग हो रही हैं। अगर कोर्ट ने नयी गवाहियां स्वीकार कर ली तो फिर जगदीश टाइटलर और कमलनाथ की मुसीबत बढेगी। खासकर कमलनाथ पर आंच फैली तो फिर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की परेशानियां बढेगी। यही कारण है कि भोपाल में कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में अरविन्द केजरीवाल नहीं गये। अरविन्द केजरीवाल को डर था कि अगर वे कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में गये तो फिर सिख समुदाय उनसे नाराज हो जायेगा। कांग्रेस गुजरात दंगों के लिए भाजपा को कोसती रही है। पर अब कांग्रेस 1984 के दंगों का खुद गुनाहगार के श्रेणी में खडी हो गयी है। कांग्रेस को भविष्य में भी सिख दंगों के आरापों से छूटकारा मिलने वाला नहीं है। 1984 के सिख दंगों की आंच में कांग्रेस आगे भी जलती रहेगी।
