आजाद भारत की कमान गांधीजी के हाथों में देना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस

भागलपुर। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भले ही वैचारिक मतभेद रहा, लेकिन उनके मन में गांधीजी के लिए बड़ा सम्मान था। नेताजी ने जब आजाद हिंद फौज की स्थापना की तब उन्होंने अपने रेडियो प्रसारण में गांधीजी को राष्ट्रपिता संबोधित करते हुए आशीर्वाद मांगा था। इतना ही नहीं, वे देश को आजादी दिला उसकी बागडोर भी गांधी जी को सौंप देना चाहते थे। यह बड़ा खुलासा है नेताजी के निकट सहयोगी रहे भागलपुर के आनंद मोहन सहाय की बेटी आशा चौधरी का। आनंद मोहन सहाय नेताजी की आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल थे। उनकी बेटी आशा चौधरी भी आजाद हिंद फौज की सहयोगी रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं। आशा चौधरी बताती हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की योजना थी कि आजाद हिंद फौज के सिपाही लड़ाई में ब्रिटिश सेना को परास्त कर देश के स्वाधीनता आंदोलन के सिपाहियों से जा मिलेंगे और फिरंगियों से भारत माता को स्वाधीन करा लेंगे। नेताजी कहा करते थे कि उनकी व आजाद हिंद फौज की जिम्मेदारी सिर्फ भारत को आजाद करना है। उसके बाद सत्ता महात्मा गांधी व कांग्रेस के हाथों में सौंप दी जाएगी। रानी झांसी रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं आशा चौधरी आशा चौधरी भागलपुर के नाथनगर प्रखंड के पुरानी सराय की निवासी हैं। वे आजाद हिंद फौज की सहयोगी रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थीं। उनके पिता आनंद मोहन सहाय नेताजी के निकट सहयोगी और आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल थे। उनकी माता सती सहाय पश्चिम बंगाल के चोटी के कांग्रेसी नेता व बैरिस्टर चित्तरंजन दास की भांजी थीं। सती साय भी स्वतंत्रता सेनानी थीं। गया में नेताजी की आनंद मोहन सहाय से हुई थी पहली मुलाकात गया कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष बोस अध्यक्ष चितरंजन दास के निजी सचिव बन कर आए थे। वहां आशा चौधरी के पिता आनंद मोहन सहाय को चित्तरंजन दास के कैंप की सुरक्षा का दायित्व मिला था। नेताजी से सहायजी की पहली भेंट वहीं हुई थी। अमेरिकी एटम बमों ने तोड़ दी जापान की कमर आशा चौधरी बताती हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय फौज की बर्मा की सीमा पर अंग्रेजी फौज से जो लड़ाई हुई थी, उस दौरान मूसलधार बारिश शुरू हो गई। नेताजी की रणनीति थी कि बारिश के बाद दोगुनी शक्ति के साथ फिरंगियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी जाए, लेकिन इसी बीच जापान के नागासाकी व हिरोसीमा पर अमेरिका द्वारा एटम बम गिरा दिए जाने से उसकी कमर ही टू गई। वह आजाद हिंद फौज को सहयोग करने की स्थिति में नहीं रह गया।