आर्थिक मोर्चे पर भारत की सुदृढ़ता

एक बार फिर विश्व बैंक ने भारत के दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़े अर्थव्यवस्था घोषित किया है। जबकि उसने वर्ष 2021 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट का पूर्वानुमान जारी किया है। हमारी अर्थव्यवस्था का दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था एवं मंदी से अप्रभावित अर्थव्यवस्था होना, देश के लिये एक सुखद अहसास है और भारत की सुनहरी एवं सुदृढ़ तस्वीर की प्रस्तुति है। लेकिन एक बड़ प्रश्न है कि इस लोक-लभावनी तस्वीर के बावजद न तो बढ़ती महंगाई नीचे आ रही है और न ही डॅलर के मुकाबले रुपये की फिसलन रूक रही है। विश्व बैंक की ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोस्पैक्टस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर वित्त वर्ष 2017 के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वर्ष 2021 तक के तीन वर्षों में इसके 7.5 फीसदी बने रहने का पूर्वानुमान जारी किया गया है। वास्तव में किसी और बड़े अर्थव्यवस्था की विकास दर 7 फीसदी को भी पार नहीं कर पाएगी। यह पूर्वानुमान एवं घोषणा नस्द्र मोदी सस्कार के आर्थिक सुधारों, नीतियों एवं योजनाओं का परिणाम है। रिपोर्ट में मोदी सकार की ओर से किए गए ढुंचागत सुधारों की सराहना भी की गई है। सकार के नीतिगत आर्थिक सुधारों के प्रभाव अब दिखने लगे हैं और अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो रही है। इससे निजी उपभोग मजबूत हने और निवेश में तेजी जारी हने की उम्मीद है। हम भारत की अर्थव्यवस्था को आठ प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर सबढ़त देखना चाहते हैं तो इसके लिये हमें उद्योग और सेवा क्षेत्र का भी सहारा लेना होगा, खेती को भी प्रोत्साहित करना #गा। क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में खेती का विकास अपेक्षित दर से ज्यादा नहीं हो रहा है। यदि हम गरीबी से पिंड छुल्ल कर समृद्धि का जीवन जीना चाहते हैं तो हमें अपनी सोच रावं नीतियों को बदलना ही होगा। टोग खेती, रोजगार, स्वनिर्भरता, ग्रामीण विकास को बढ़वा देना होगा, ताकि वे आर्थिक वृद्धि के इंजन बन सकें। इसके लिये मोदी सकार के प्रयास और उन प्रयासों की अन्तर्राष्ट्रय स्तर पर टंकार एवं खनक उनके लिये एक अच्छी खबर है, क्योंकि यह चुनावी वर्ष है। सकार किसी भी दल की हो, भले ही योजनाकारों के नाम भी बदल जाये, औरआर्थिक नियोजन के स्तर पर विश्व बैंक भले ही हमारी अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का खिताब दे दे, लेकिन फिर भी सभी की चिन्ता केवल यह दिखती है कि डॉलर की लना में रुपये का अवमूल्यन कैसे रूके कैसे मझाई एवं बेरोजगारी पर नियंत्रण स्थापित हो। यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि जो अमेखिका मंदी से रूबरू हो रह्म है और अपने समय की सबसे बड़े बेकारी के सह हा है, फिर भी देखिये कि आर्थिक सह हा है, फिर भी देखिये कि आर्थिक रूप से उभरते और मंदी से अप्रभावित रुपया डलर की तुलना में अवमूल्यन का ओर बना है। लगातार बढ़ती महंगाई के चलते आम आदमी अभावों का शिकार झे ह्म है। जनता को पूरी तरह बाजार के रहमोकरम पर छेड़ देने की सकार की बदहाल बना रही है। चीन की विकास दर वर्ष 2017 में 6.9 प्रतिशत रही थी जबकि भारत की उस वर्ष में जीडपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत थी। भारत अब आने वाले वर्षों में चीन को पछड़सकता है। विश्व क ने अपनी रिपोर्ट में भारत जैसी उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को सचेत करते हुए कह्म है कि उन्हें भविष्य में कुछ मुश्किलें झेलने के लिए भी तैयार रहना होगा। इन देशों की संस्कारों को अपना कर्ज प्रबंधन मजबूत बनाने के साथ आर्थिक सुधारों को तेजी से लागू करना होगा। भारत 2030 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ बाजार होगा, दुनिया का तीसरा सब उसके आगे केवल चीन और अमेरिका होगा इस स्थिति को पान कलिय सरकार को रोजगार के अवसर बढ़ने पर भी ध्यान देना होगा। विशेषतः गांवों पर आधारित जीवनशैली को बल देना होगा। जबकि आजादी के शहरीकरण पर बल दिया है। एक विडम्बनापूर्ण सोच देश के विकास के साथ जुड़ गयी है कि जैसे-जैसे देश विकसित होता जायेगा वैसे-वैसे गांव की संरचना टटती जायेगी। जिन्हें शहर का जा रहा है वहां अपने संसाधना से बहिष्कृत लोगों की बेतरतीब, बेचैन और विस्थापित भीड़ ही होगी। जो अर्थव्यवस्था को मजबती देने की सबसे बड़े बाधा है। मजबूत अर्थव्यवस्था क अर्थ नत जीवनशैली होना जरूरी है। लेकिन आर्थिक वृद्धि दर से निर्धारित होने वाला यह अर्थतंत्र क्या देश की जनता को गरिमापूर्ण जीवन दे पाया है, क्या रोजगारों का समुचित प्रबंध कर पाया है, क्या आत खेती को स्थापित किया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है कि आर्थिक वृद्धि दर और जीडीपी के मानकों से चलती यह अर्थव्यवस्था अनेक क्षेत्रों में उपादित माल- स्टील, सीमेंट, बिजली आदि को खपाने का जरिया है। आर्थिक योजनाकारों का कोई भी नक्शा इन्हीं दबावों और आर्थिक लॉबियों और सब मिला कर मौजूदा अर्थव्यवस्था से बड़े स्तर पर लाभान्वित होने वाले उद्योग-व्यापार समूहों की चिन्ताओं से तय होता है। ऐसा होता है इसीलिये महंगाई पर नियंत्रण नहीं से पा रहा है, रोजगार सीमित होते जा रहे हैं किसान आत्महत्या कर रहे हैं। तभी विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में भारत जैसी उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को पत्र भी लिया है अर्थव्यवस्थाओं को सचेत भी किया है। नरेन्द्र मोदी सकार ने अर्थव्यवस्था के विकसित देशों की तर्ज पर बढ़ने की कोशिशें की है। स्मार्टअप, मेक इन इंडिया और बुलेट ट्रेन की नवीन परियोजनाओं और सीन को प्रस्तुति का अवसर मिला। नोटबंदी और जीएसटी को लाग किया गया भारत में भी डिजिटल इकॉनमी स्थापित करने के प्रयास हुए। भारत की विदेशों में साख बतौल घघर एवं गांव-गांव में रोशनी पहुंचाने के बावजूद आम आदमी अन्य तरह के अंधेरों में बा है। भौतिक समृद्धि बयेर कर भी न जाने कितनी तरह अभाव से ता है तो अमीर अतृप्ति से। कहीं अतिभाव, कहीं अभाव। शी बस्तियां बस ही है मगर आदमी उजड़ता जा का है। भाजपा सकार जिनको विकास के कदम मान रही है वे ही उसके लिए विशेष तौर पर हानिकाक सिद्ध हुए हैं। इस पर गंभीर आत्म-मंथन कके ही हम भारत की बढ़ती आर्थिक वृद्धि दर एवं जीडीपी का नया धरातल तैयार कर नया भारत निर्मित कर सकेंगे। केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के अनुमान के अनुसार 2018-19 में प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रय आय 11.1 फीसदी वृद्धि केसाथ 1,25,397 रुपए पर पहुंच जाएगी जो 2017-18 में 1,12,835 रुपए थी। आर्थिक मोर्चे पर विशेष रूप से बैंकिंग क्षेत्र में भी जहां सुधार के संकेत सामने आए, वहीं राजकोषीय घाटे के संदर्भ में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सकार राजकोषीय ये नियम घाटा  पाटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के कोष का इस्तेमाल नहीं करेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि राजकोषीय घाटा  पाटने की दिशा में मोदी सकार का किार्ड पूर्व की सकारों से कहीं बेहतर रहा है। तमाम उतार-चावों के बावजद देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर निष्कंटक बनी है। रिजर्व बैंक के कोष का उपयोग बैंकों की सहायता अथवा गरीबी निवारण के कार्यक्रमों पर किया जा सकता है, ऐसा संकेत स्वयं जेटली ने किया है।