आखिर पप्पू यादव और तेजस्वी के बीच घमासान की क्या है वजह


पटना। कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर मैदान में उतर रहे तेजस्वी यादव ने सुपौल में पप्पू की सहमति के बिना कांग्रेसी सांसद के खिलाफ अपनी सभा क्यों की? राजनीति के जानकार इसे लालू के जनाधार को छीनने-बचाने का झगड़ा बताते हैं। पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन के संसदीय क्षेत्र सुपौल में तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को दावा किया कि वहां की जनता उनके साथ है। पप्पू और तेजस्वी की सियासी अदावत और महागठबंधन में सीट बंटवारे के पेच की कहानी अलग-अलग नहीं है। दोनों के तार दूसरे से जुड़ते हैं। पिछले तीन साल से लालू की विरासत को आगे बढ़ा रहे तेजस्वी को पप्पू ने सियासी मान्यता अभी तक नहीं दी है। लालू के जनाधार को पप्पू खुद हथियाने की कोशिश में हैं। इसके लिए पप्पू को अबकी कांग्रेस का सहारा चाहिए, जो तेजस्वी को गवारा नहीं है। महागठबंधन में महाभारत की मुख्य वजह यही है। बाहुबली विधायक अनंत सिंह की कांग्रेस से दावेदारी या अन्य मसले सिर्फ बहाने हैं। गुरुवार को तेजस्वी नेबेरोजगारी टाओ-आरक्षण बढ़ाओ यात्रा की शुरुआत की थी तो दरभंगा उनका पड़ाव भर था, असली मंजिल तो सुपौल थी। सुपौल, जहां से मोदी घमासान की लहर में भी रंजीता ने 60 हजार से अधिक मतों से अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी को परास्त किया था। पप्पू से अदावत के चलते तेजस्वी अबकी रंजीता के लिए भी सपौल में रेड कारपेट नहीं चाह रहे हैं। इसीलिए राजद समर्थकों ने सुपौल की सभा को सफल बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। पप्पू यादव और तेजस्वी की सियासी दश्मनी ज्यादा पुरानी नहीं है। पिछली बार पप्पू राजद के टिकट पर सांसद चुने गए थे। लालू को राजनीतिक ढलान की ओर बढ़ते भाजपा की गोद से क्या है वजह देखकर पप्पू ने विरासत हथियाने के लिए जोर तो लगाया किंतु लालू को यह स्वीकार नहीं हुआ, जिसके बाद तेजस्वी को निर्विवाद उत्तराधिकारी बनाने के लिए उन्होंने पप्पू को दल में तो बनाए रखा, लेकिन दिल से निकाल दिया। पप्पू सांसद बने रहे, लेकिन लालू के दिल से बाहर हो गए। दोनों के बीच लगाव-अलगाव का सिलसिला तभी से चला आ रहा है, जब पप्पू पहली बार 1990 में मधेपुरा से निर्दलीय सांसद चुने गए थे। पप्पू के प्रभाव को देखते हुए ही लालू चुनाव में मधेपुरा से जदयू प्रत्याशी सबक सिखाने के लिए उन्हें राजद मैदान में उतारा।शरद को परास्त कर लालू के भी हो गए।