बंगाल में सियासी बवाल






अब तक माना जाता रहा है कि बंगाल जो आज सोचता है वह पूरा देश कल सोचता है। लेकिन मौजूदा हालातों में यही दुआ की जा सकती है कि बंगाल जो आज कर रहा है वह पूरा देश कतई कल ना करे। अगर देश ने बंगाल का अनुसरण किया तो पूरा भारत जल उठेगा। ठीक वैसे ही जैसे आज बंगाल जल रहा है। पूरा मामला सतही तौर पर देखने से भले ही सीबीआई अर्थात केन्द्र के अधीन काम करनेवाली संस्था और पश्चिम बंगाल पुलिस यानि राज्य सरकार के अधीन काम करनेवाली संस्था के बीच टकराव का दिख रहा हो लेकिन वास्तव में यह पूरा टकराव सियासी ही है जिसमें स्थानीय पुलिस को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। ममता को यह दर्शाना है कि केन्द्र की मोदी सरकार अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों के खिलाफ सीबीआई का दुरूपयोग कर रही है। इसके लिये उन्हें मौका भी मिल गया जब सीबीआई की टीम पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने उनके घर पहुंची। पूछताछ की इस कोशिश को इस कदर सियासी तूल दिया गया कि प्रदेश में राजनीतिक अराजकता का वातावरण दिखाई पड़ने लगा है। यह अराजकता ही तो है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और पुलिस कमिश्नर सड़क पर धरने पर बैठ जाएं और वहीं से सत्ता और व्यवस्था का संचालन करने लगे। यह काफभ् हद तक वैसी ही तस्वीर है जैसी कुछ साल पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिखाई थी जब वह संसद के समीप धरने पर बैठ गए थे और वहीं से मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कामकाज करने लगे थे। जिस तरह केजरीवाल के उस कृत्य की हर तरफ घोर आलोचना हुई थी उसी प्रकार ममता के कृत्य को भी कतई शाबाशी नहीं दी जा सकती। यह सीधे तौर पर निंदनीय है और इसकी जितनी भी आलोचना की जाए वह कम है। सच तो यह है कि पुलिस कमिश्नर को बीते दो साल से सीबीआई लगातार समन भेज कर पूछताछ के लिये बुला रही थी लेकिन उन्होंने पूछताछ के लिये हाजिर होना कभी जरूरी नहीं समझा। ऐसे में अब अगर सीबीआई खुद उनसे पूछताछ करने के लिये उनके घर पहुंची है तो इसे राजनीतिक रंग देना यह बताने के लिये काफी है कि अव्वल तो पश्चिम बंगाल में भाजपा को मिलती दिख रह बढ़त से ममता सरकार बुरी तरह बौखला उठी है और दूसरे पुलिस कमिश्नर की जानकारी में काफी सारी बातें ऐसी हैं जिसे छुपाना जरूरी है। वर्ना अगर पुलिस कमिश्नर पाक साफ हैं और उन्होंने कोई गलती की ही नहीं है तो उन्हें सीबीआई के समक्ष अपनी बात रखने से भला क्या ऐतराज हो सकता था। लेकिन सच तो यह है कि शारदा चिटफंड घोटाले की जांच के दौरान सीबीआई को कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब होने की सूचना मिली और उसी क्रम में पुलिस कमिश्नर से पूछताछ के लिए गई थी। दरअसल शुरूआत में पश्चिम बंगाल पुलिस ही इस घोटाले की जांच कर रही थी लेकिन बाद में जब घोटाले के तार ममता सरकार से जुड़ते दिखाई पड़े तो निष्पक्ष जांच के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने मामला सीबीआई को सौंप दिया। कायदे से तो जब जांच की बागडोर सीबीआई के हाथों में आ गई तो बंगाल पुलिस को अपनी पूरी जांच के दौरान हासिल साक्ष्य, सबूत व जानकारियां सीबीआई को उपलब्ध करा देनी चाहिये थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बताया जाता है कि बंगाल पुलिस ने अपनी जांच के दौरान जब्त किये गए साक्ष्यों व सबूतों को गायब कर दिया। उसी गायब कड़ी को जोड़ने और उसके बारे में जानने के लिये सीबीआई लगातार पुलिस कमिश्नर को तलब कर रही थी लेकिन वे एक बार भी सीबीआई के समक्ष पेश नहीं हुए। आखिर में जब थक-हार कर सीबीआई के अधिकारी उनसे पूछताछ करने के लिये उनके निवास पर पहुंचे तो यह पूरा बखेड़ा खड़ा कर दिया गया और मामले को राजनीतिक रंग दे दिया गया। हालांकि पूरा मामला अदालत में पहुंच चुका है और अब इस पूरे प्रकरण में दोषी व निर्दोष का और सही-गलत का फैसला अदालत में ही होगा। लेकिन इस बीच ममता बनर्जी ने जिस तरह से इस मसले को राजनीतिक रंग देकर सीबीआई की साख के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की है उसे कैसे सही कहा जा सकता है। इससे पहले ममता द्वारा अर्धसैनिक बलों के साथ भी ऐसा ही सलूक किया जा चुका है। वे भाजपा के नेताओं को बंगाल में ना तो कोई कार्यक्रम करने की इजाजत दे रही हैं और ना ही केन्द्र की किसी संस्था को अपने मन मुताबिक काम करने की इजाजत दे रही हैं। आखिर ममता को यह समझना होगा कि बंगाल भी भारत का ही अभिन्न हिस्सा है लिहाजा उसे देश से अलग रखने की कोशिश कतई कामयाब नहीं हो सकती है। यदि भ्रष्टाचार में कोई लिप्त है तो सीबीआई के पास जांच करने का अधिकार है और उससे रोकने का प्रयास यह साबित करता है कि स्थानीय सरकार और अधिकारी भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं। वैसे भी भारत सरकार के ऊपर सीबीआई के दुरुपयोग किये जाने का आरोप बिल्कुल निराधार है क्योंकि अगर वाकई ऐसा हो रहा होता तो इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने का विकल्प सबके पास उपलब्ध है। यह देश बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान के अनुसार चलता है और संविधान के दायरे में रह कर ही कोई भी काम कर पाना संभव है। लेकिन न्याय व्यवस्था के समक्ष अपनी बात रखने के बजाय अपने मनमुताबिक तरीक से संविधान की व्याख्या करना, सीबीआई के अधिकारियों को हिरासत में लेना और प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का धरने पर बैठना निहायत ही निंदनीय है। सच तो यह है कि भारत सरकार की ममता बनर्जी को परेशान किए जाने का कोई भावना नहीं है क्योंकि अगर ऐसा होता तो ओडिशा, केरल और कर्नाटक से लेकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के साथ भी केन्द्र ऐसा ही सलूक करता। ऐसा कैसे हो सकता है कि ममता को अलग से निशाने पर लिया जाए। जबि आज तक कांग्रेस को निशाने पर लेने की कोशिश नहीं की गई जिसके शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मामले लंबित हैं और वे जमानत पर बाहर घूम रहे हैं। तो फिर ममता के साथ ऐसी दुश्मनी निभाए जाने का तो सवाल ही नहीं है। अगर ममता सरकार ने कोई चोरी या घपला-घोटाला नहीं किया है तो उसे चिटफंड घोटाले में हुए भ्रष्टाचार की जांच के दौरान सहयोग करना चाहिए। लेकिन जिस तरह का व्यवहार ममता कर रही है उससे किसी को भी चोर की दाढ़ी में तिनके का शक होना स्वाभाविक ही है। लेकिन अगर ऐसा है तो आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी?