भागलपुर किसका ?महागठबंधन से राजद तय एनडीए में संशय

भागलपुर । गांव-देहातों में बड़े भागलपुर। गांव-देहातों में बड़े- बुजुर्ग कहा करते थे तिल संकरात (मकर संक्रांति) के बाद मौसम बदलने लगता है। तिल-तिलकर (धीरे-धीरे) गर्मी बढ़ने लगती है। बड़े बुजुर्गों की मान्यता अपनी जगह, इस दफे मकर संक्रांति के बाद राजनीति तापमान में बहुत तेज वृद्धि के आसार बन हैं। यह महज संयोग ही है कि ढाई महीने बाद जब संसदीय चुनाव होगा तब मौसम पूरी तरह आम का हो जाएगा। दूधिया मालदह और जर्दालू के लिए मशहूर जिले के आम उत्पादक अभी से अपने पेड़ों में मंजरों के निकलने की प्रतीक्षा में हैं। वे मंजर देखकर ही आम के फलन की गुणवता का अनुमान लगाएंगे। दूसरी आम जनता (इसमें आम के उत्पादक भी हैं) भी प्रतीक्षा में है कि भागलपुर किसका? कार्यकर्ता और राजनीति यहां राजनीति की फसल लगाने वाले नेता-कार्यकर्ता और राजनीतिक दल अपने-अपने चुनावी योद्धाओं को लेकर अनुमान लगाने में व्यस्त हो गए हैं। चुनाव कौन जीत दिला सकता है इसका आकलन शुरू है। महागठबंधन के लिए भागलपुर में अपना प्रत्याशी तय करने में कोई दुविधा नहीं दिखती। 2014 में मोदी लहर और शाहनवाज हुसैन जैसे राष्ट्रीय नेता के खड़े होने के बावजूद राष्ट्रीय जनता दल के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल ने जीत हासिल की थी। अगर कोई बड़ी घटना नहीं हुई तो बुलो मंडल का यहां से चुनाव लडना तय है। बुलो 2014 में रोमांचक मुकाबले के अंतिम क्षणों में भागलपुर की सीट निकालने में सफल हो पाए थे। उस समय अगर भाजपा और नोटा का वोट एक हो जाता तो परिणाम भाजपा के पक्ष में जाता। (माना जाता है कि नोटा पर मतदान करने वाले वोटर आम तौर पर बुद्धिजीवी समाज से होते हैं जो परंपरागत तौर पर भाजपा या कांग्रेस को वोट करते रहे हैं)। वैसे यह बताना जरूरी है कि जनता दल यूनाईटेड के प्रत्याशी अबू कैशर ने उस चुनाव में तकरीबन एक लाख तैंतीस हजार वोट प्राप्त किया था। यह वोट 2009 में भाजपा-जदयू गठबंधन के भाजपा को मिला था और तब भाजपा मजबूती से जीती थी। बहरहाल इस चुनाव में भाजपा- जदयू फिर से साथ है, सीन थोड़ा बदला हुआ है। 2009 में शाहनवाज सीटिंग कैंडिडेट थे। पर अबकी यह सीट भाजपा और जदयू दोनों के लिए खाली है। ऐसे में सवाल तैर रहा हैकि एनडीए की ओर से यहां से कौन सी पार्टी चुनाव लड़ेगी? यह सवाल तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। जब सीट शेयरिंग के फार्मूले में भाजपा अपने 22 मौजूदा सांसदों के होने के बावजूद महज 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसका मतलब यह है कि सामान्य परिस्थितियों में भाजपा के पांच मौजूदा सांसदों के टिकट कटेंगे और भागलपुर से जदयू का उम्मीदवार होगा। लेकिन अगर चीजें इतनी सुलझी हों तो फिर राजनीति किस बात की! राजनीति की समझ रखने वालों की मानें तो भागलपुर की सीट भाजपा के लिए पूर्व बिहार, सीमांचल और झारखंड के संताल परगना का गेट वे ऑफ इंट्री है। इसलिए भाजपा इस सीट को अपने पास रखेगी ही। भले ही उसे अपने एक और सांसद का टिकट काटना पड़े।