कांग्रेस में कलह का माहौल






आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिये अपनी पूरी ताकत झोंक रही कांग्रेस के लिये संगठन का अंदरूनी संकट लगातार सिरदर्दी बढ़ाता हुआ दिख रहा है। आलम यह है कि जिन सूबों अपने प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस सबसे अधिक आशान्वित है उन्हीं सूबों में अंदरूनी कलह काफी तेजी से उभर रहा है। खास तौर से जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा सरीखे जिन सूबों में इस बार कांग्रेस को अपने लिये सबसे अधिक संभावनाएं दिखाई पड़ रही हैं वहां के बड़े चेहरों ने अगर बगावत का झंडा उठाना शुरू कर दिया है तो निश्चित ही इसे पार्टी के लिये खतरे की घंटी के तौर पर ही देखा जाएगा। वैसे भी अगर ये कलह टिकट वितरण को लेकर पनपे आक्रोश या असंतोष के कारण दिखाई पड़ रहा होता तो इसकी अनदेखी भी की जा सकती थी। लेकिन अभी टिकट वितरण का तो कोई सवाल ही नहीं है। बल्कि सांगठनिक बदलावों की शुरूआत और सैद्धांतिक मसलों में किये जा रहे बदलावों को लेकर पार्टी में भारी उथल-पुथल का माहौल दिखाई पड़ रहा है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता व जम्मू-कश्मीर के सबसे ताकतवर क्षत्रपों में शुमार होनेवाले गुलामनबी आजाद ने भी अपने असंतोष का मुजाहिरा करते हुए संगठन में बनाई गई विभिन्न समितियों की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। निश्चित ही जिस जम्मू-कश्मीर में इस बार कांग्रेस को अपने लिये बेहद फायदेमंद राजनीतिक समीकरण स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है वहां के सबसे बड़े नेता ने अगर सांगठनिक समितियों की सदस्यता से एक झटके में इस्तीफा दे दिया है तो मामला उससे भी कहीं ज्यादा गंभीर है जितना दिखाई पड़ रहा है। खास तौर से कांग्रेस में किस तरह से संगठन का कामकाज चल रहा है इसकी बानगी आजाद की बातों में दिखाई पड़ी है जिसके तहत उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह बताते हुए कहा है कि मैं पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कई समितियों का सदस्य हूं। राज्यस्तरीय समितियों में अपना नाम आने से मैं खुद हैरान हूं। मुझे तो पता भी नहीं था कि मुझे जम्मू कश्मीर के लिए गठित समितियों में शामिल किया है। मुझसे पूछे बिना ही सदस्य बनाया गया है। मैं इन समितियों का सदस्य बनने से इन्कार करता हूं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव से लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा गठित कमेटियों से इस्तीफा देने के क्रम में आजाद ने जिस तरह से इन कमेटियों के गठन की प्रक्रिया में उन्हें शामिल नहीं किये जाने की बात कही है और पार्टी में खुद को दरकिनार किये जाने का इशारा किया है वह साफ तौर पर बताता है कि कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर मनमानी की जा रही है। आजाद से कुछ पूछना और उन्हें कुछ बताना या उन्हें विश्वास में लेना भी अगर जरूरी नहीं समझा जा रहा हो और वह भी जम्मू कश्मीर सरीखे उस सूबे के बारे में जहां के सबसे ताकतवर कांग्रेसी चेहरे के तौर पर उनकी राष्ट्रीय पहचान बनी हुई है तो इसे शीर्ष नेतृत्व द्वारा की जा रही मनमानी और तानाशाही का नाम देने के अलावा और क्या कहा जा सकता है। ऐसा ही मामला हाल ही में ओडिशा में सामने आया है जहां बीजेडी सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी का माहौल स्पष्ट दिखाई दे रहा है और भाजपा की जमीनी स्तर पर पैठ नहीं बन पाई है लिहाजा विकल्प के तौर पर कांग्रेस के उभरने की संभावनाएं बेहद प्रबल हैं। लेकिन इन संभावनाओं को भुनाने के लिये पार्टी के भीतर जिस एकजुटता की आवश्यकता है उसका घोर अभाव दिखाई पड़ रहा है। वहां भी मामला जम्मू कश्मीर सरीखा ही हुआ है जहां कांग्रेस के कद्दावर नेता श्रीकांत जेना को अपनी अनदेखी रास नहीं आई और उन्हें पार्टी की समितियों की सदस्यता से इस्तीफा देकर अपने असंतोष की आवाज को दिल्ली तक पहुंचाने के लिये मजबूर होना पड़ा। लेकिन उनको मनाने या समझाने के बजाय उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से ही बाहर कर दिया गया। जाहिर है कि श्रीकांत का नाम राष्ट्रीय राजनीति में ओडिशा की वजह से ही जाना पहचाना है और अगर ऐसे बड़े चेहरे को पार्टी से बाहर होना पड़ रहा है तो निश्चित ही सांगठनिक स्तर पर माहौल ऐसा नहीं है जिसमें श्रद्धा या सिद्धांत के कारण अनुशासन का माहौल बन सके। अब नई तकरार महाराष्ट्र में भी शुरू हो गई है जहां पूर्व शिवसेना नेता व गैर मराठी लाॅबी के अगुवा संजय निरूपम के हाथों में प्रदेश की कमान दिये जाने के बाद से ही पार्टी का जमीनी तबका दो-फाड़ दिखाई दे रहा है। हालांकि प्रदेश स्तर पर आरंभ से ही उन्हें पूरा सहयोग किया जा रहा है लेकिन उनकी मनमानी नीतियों ने स्थानीय बड़े कांग्रेसी नेताओं की जमात को बुरी तरह असहज करना आरंभ कर दिया है। बताया जाता है कि इसी वजह से इस बार प्रिया दत्त ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वे इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी। हालांकि औपचारिक तौर पर प्रिया का यही कहना है कि वे निजी कारणों से चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं लेकिन बताया जाता है कि निरूपम की मनमानी कार्यप्रणाली से खिन्न होकर उन्होंने सक्रिय राजनीति से किनारा करने का फैसला किया है। इसी प्रकार ताबड़तोड़ ट्वीट करके महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े चेहरों में गिने जानेवाले और राहुल गांधी के करीबी बताये जानेवाले मिलिंद देवड़ा ने भी अपने असंतोष का सार्वजनिक तौर पर इजहार करने में कसर नहीं छोड़ी है। दरअसल संजय निरूपम पहले शिवसेना के नेता रहे हैं और साल 2005 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था। वे 2009 में कांग्रेस के सांसद चुने गए लेकिन 2014 में चुनाव हारने के बावजूद उन्हें मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। निरूपम को अभी भी खांटी कांग्रेसी बाहरी ही समझते हैं जिन्होंने आज तक कांग्रेस की संस्कृति व कार्यप्रणाली को आत्मसात करना आवश्यक नहीं समझा है और शिवसेना का उग्र प्रभाव उन पर अब तक हावी है। निरूपम के काम करने के तौर तरीके को लेकर मुंबई कांग्रेस के नेता कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत भी कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने इन शिकायतों को तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा है।  केन्द्र से मिल रही शह ने निरूपम को और अधिक मनमानी के लिये प्ररित किया जिसके नतीजे में पहले प्रिया दत्त ने निजी कारणों का हवाला देते हुए संगठन की राजनीति से किनारा किया और अब मिलिंद देवड़ा को सार्वजनिक तौर पर अपनी बात रखने के लिये विवश होना पड़ा है। हालांकि मिलिंद को कमतर आंकना सही नहीं होगा क्योंकि मुंबई कांग्रेस का काफी बड़ा धड़ा मिलिंद देवड़ा के साथ है जिनके पिता मुरली देवड़ा ने दशकों तक मुंबई कांग्रेस का नेतृत्व किया है। ऐसे में अगर निरूपम की मनमानी को इसी प्रकार शह दी जाती रही और बाकियों की अनदेखी का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा तो कांग्रेस को आगामी निश्चित ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ऐसा ही हाल कर्नाटक में भी है जहां कहने को भले ही भाजपा पर यह इल्जाम लगा दिया जाए कि वह कांग्रेस के विधायकों को तोड़ रही है लेकिन सच तो यह है कि स्थानीय नेताओं की बातों को अनसुना करते हुए जिस मनमाने तरीके से कर्नाटक में कांग्रेसियों को हांकने की कोशिश की जा रही है उसका ही नतीजा है कि कांग्रेस के विधायक दल में टूट की खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं। दिल्ली में भी ऐसा ही माहौल है जहां अंदरूनी असंतोष को थामने के लिये अजय माकन को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शीला दीक्षित को आगे लाना पड़ा है। यानि समग्रता में देखें तो अगर सभी प्रदेशों में बीमारी एक जैसी ही दिख रही है तो इसकी वजह कैसे अलग-अलग हो सकती है?