कम्युनिस्ट तानाशाही में जिंदगी क्यों बनती है कबाड़ ?






एक किलो चावल के लिए हत्या तक करने पर उतारू हो रही है जनता। एक किलो चिकन की कीमत 10277, रूपये,  एक लीटर दूध की कीमत  5 हजार रूपये, एक दर्जन अंडे की कीमत 6535 रूपये, एक किलो टमाटर की कीमत 11 हजार रूपये, मक्खन 17 हजार रूपये, रेड टेबल वाइन 95 हजार रूपये, एक लीटर कोका कोला की कीमत छह हजार है। 

             

     

                    (विष्णुगुप्त )     

अंतराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट ने कम्युनिस्ट तानाशाही वाले देश वेनेजुएला की जनता की दयनीय स्थिति और भूखमरी की बड़ी भयानक कहानी बतायी है। भूख से तड़पती जनता एक किलो चावल के लिए हत्या तक करने की उतारू हो रही है।कम्युनिस्ट तानाशाही वाले देश में जिंदगी कबाड बन जाती हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सैनिक पहरा निश्चित होता है, व्यक्तिगत आजादी की बात सोची नहीं जा सकती है। कम्युनिस्ट तानाशाही वाले लैटिन अमेरिकी देश वेनेजुएला भी इसके चपेट मे आ गया है। फिर वेनेजुएला की तानाशाही सत्ता विदेशी मदद से इनकार कर माओत्से तुंग के रास्ते पर चल निकली है। उल्लेखनीय है कि माओत्से तुंग की सत्ता के दौरान चीन में भूख से दस करोड लोगों की मौत हुई थी।

       कम्युनिस्ट तानाशाही वाले वेनेजुएला में जिंदगी कबाड़ बन गयी है। वेनेजुएला के लोग क्यों और कैसे अपने शरीर को बेचने के लिए बाध्य हैं, वेनेजुएला के लोग अपने देश छोडकर पडोसी ब्राजील और कोलंिबया में शरणार्थी बनने के लिए क्यों बाध्य हैं? क्या वेनेजुएला कम्युनिस्ट तानाशाही फिर भी दुनिया के अन्य देशों के साथ कदमताल मिला कर अपने नागरिकों की जिंदगी कबाड बनने से रोकने के लिए तैयार होगी? क्या वेनेजुएला के संकट और आर्थिक विध्वंस से पूरे लैटिन अमेरिकी देश भी संकटग्रस्त होंगे? क्या वेनेजुएला का घोर विरोधी अमेरिका इस स्थिति में मददगार की भूमिका निभाने के लिए तैयार होगा ? आखिर ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों होने दी गयी। 

      भूखमरी और महंगाई की स्थिति कितनी भयानक और खतरनाक है, यह भी देख लीजिये। एक किलो चिकन की कीमत 10277, रूपये,  एक लीटर दूध की कीमत  5 हजार रूपये, एक दर्जन अंडे की कीमत 6535 रूपये, एक किलो टमाटर की कीमत 11 हजार रूपये, मक्खन 17 हजार रूपये, रेड टेबल वाइन 95 हजार रूपये, एक लीटर कोका कोला की कीमत छह हजार है। 

    इतनी खतरनाक और भयानक महंगाई का अर्थ है कि वेनेजुएला के करेंसी का विध्वंस होना। वेनेजुएला की करेंसी कैसे मजबूत होगी? जब तक वेनेजुएला की करैंसी मजबूत नहीं होगी तब तक महंगाई कैसे रूकेगी और राजनीतिक स्थिरता कैसे आयेगी? राजनीतिक विद्रोह और राजनीतिक प्रदर्शनों के खिलाफ तानाशाही शासन हिंसा और सैनिक समाघान से कैसे बचेगी? क्या वेनेजुएला के लोकतांत्रिककरण से वर्तमान संकट का समाधान हो सकता है?

        इन सभी प्रश्नों का उत्तर दुनिया की कम्युनिस्ट तानाशाही के इतिहास और उनकी हिंसा की कहानी में ही मिल सकते हैं। अब प्रश्न यहां यह उठता है कि कम्युनिस्ट तानाशाही की दुनिया कैसी रही है, कम्युनिस्ट दुनिया की हिंसक और वीभत्स कहानी कैसी रही है? आपको याद होगा कि माओत्से तुंग ने कहा था कि सत्ता बन्दूक की गोली से निकलती है। माओत्से तुंग की लाल ब्रिगेड ने चीन में कम्युनिस्ट तानाशाही कायम करने के लिए लाखों लोगों को मौत का घाट उतार दिया था। माओत्से तंुग ने कम्युनिस्ट तानाशाही कायम करने के बाद भी अपने प्रयोगों के सनक में अपने नागरिकों को भूखे मारने से परहेज नहीं किया था। दुनिया के इतिहासकारों और कम्युनिस्ट विरोधी दुनिया का आकलन है कि सनकी तानाशाह माओत्से तुंग के सनक में चीन के अंदर में दस करोड से अधिक नागरिक भूख से मरे थे। सामूहिक खेती और संसाधनों का सरकारीकरण से उत्पन्न अकाल और बेरोजगारी काल बन जाती है।माओत्से तुंग की मौत के बाद आज चीन पूंजीवादी व्यवस्था में गतिमान है। लेनिन और स्तालिन ने सोवियत संघ में कैसी तानाशाही कायम कर रखी थी, यह भी जगजाहिर है,  सोवियत संघ की तानाशाही ने अपने लाखों विरोधियेां की हत्या करवायी  थी, नागरिकों को कम्युनिस्ट तानाशाही स्वीकार करने के लिए हत्याएं हुई थी। सोवियत संघ का पतन भी भूख और बेकारी की समस्या से हुई थी। उत्तर कोरिया का हाल देख लीजिये। उत्तर कोरिया परमाणु शक्ति हासिल करने के सनक में अपनी अर्थव्यवस्था का बुरा हाल कर चुका है। भोजन की खोज में चीन जाने वाले नागरिकों को उत्तर कोरिया की बर्बर और हिंसक सैनिक पीछे से गोलियां मार देते हैं। उत्तर कोरिया की भूख और बेकारी की बात शेष दुनिया को पता ही नहीं चलता है। इसलिए कि कम्युनिस्ट तानाशाही वाले देश में मीडिया पर सैनिक पहरा होता है, मीडिया कम्युनिस्ट तानाशाही का गुलाम होता है। स्वतंत्र मीडिया की कल्पना भी नहीं होती है। स्वतंत्र मीडिया के कर्णधारों को सरेआम फांसी पर लटका दिया जाता है।

             जगजाहिर तौर पर वेनेजुएला एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है, जहां तानाशाह चावेज का लंबा शासन रहा था। चावेज उसी तरह की बयानबाजी करता है जैसा कि आज उत्तर कोरिया का हिंसक तानाशाह करता है। उत्तर कोरिया के तानाशाह की तरह चावेज भी अमेरिका को बर्बाद करने की कसमें खाता था, वेनेजुएला को अमरिका की शक्ति से अधिक शक्ति होने का दंभ भरता था और कहता था कि वह अमेरिका को तबाह कर देगा। पूंजीवाद का अगुवा अमेरिका का वेनेजुएला से कई प्रश्नों पर भिन्नता थी और कई प्रश्नों पर खतरनाक ढंग से विवाद गतिशील था। अमेरिका के विरोधी होने की वजह से पूरा यूरोप भी वेनेजुएला के खिलाफ था। लैटिन अमेरिकी देश भी वेनेजुएला से दूरी बना कर चले थे। ऐसे में वेनेजुएला अपने निवासियों के लिए कोई अच्छी अर्थव्यवस्था तैयार नहीं कर सका था। जहां पर कम्युनिस्ट तानाशाही होती है वहां पर किसान, उद्योगपति और व्यापारी तानाशाही के खूनी पंजों के शिकार होते हैं, कम्युनिस्ट तानाशाही वाले देशों में किसानों की बूरी स्थिति होती है, व्यापारी अपने व्यापार को बढाने में असमर्थ होता है, उद्याोग धंधे भी चैपट हो जाते हैं। प्रतिस्पर्द्धाए वर्जित होती हैं। ऐसा उदाहरण आप सिर्फ माओत्से तुंग कालीन चीन, सोवियत संघ, उत्तर कोरिया ही क्यों बल्कि भारत में भी देख सकते हैं। भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में 30 सालो तक कम्युनिस्ट शासन रहा था। इन तीस सालों में पश्चिम बंगाल कौन सा विकास किया? पश्चिम बंगाल की उन्नत कृषि चैपट हुई, किसानों की भूमि टूकडों में विभाजित हो गयी, इसका दुष्परिणाम यह निकला कि किसान अपनी बदहाली को रोक नहीं पाये। एक समय पश्चिम बंगाल उद्योगपतियों और बडे व्यापारियों की पहली पसंद था। बिडला सहित कई व्यापारियों और उद्योगपतियेां ने पश्चिम बंगाल और अपना केन्द्र बनाया था। कई छोटी और बडी औद्योगिक इंकाइयां भी थी।जैसे ही पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट शासन कायम हुआ वैसे ही मजदूर यूनियन खतरनाक तौर पर सक्रिय हो गयी, दुनिया के मजदूर एक हो के नाम पर किसानों, व्यापारियों और उद्योगपतियों का दमन हुआ, उन्हें पश्चिम बंगाल छोड कर भागने के लिए विवश किया गया। आज पश्चिम बंगाल में कौन सा उद्योग हैं, पश्चिम बंगाल बीमार प्रदेशों की श्रेणी में खडा है। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट हाशिये पर जाने के पहले पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था को तबाह कर गये।

                 वेनेजुएला के संकट ने खासकर लैटिन अमेरिकी देशों को भी संकट में डाल दिया है। वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था के विध्वंस का दंश लैटिन अमेरिकी देश भी झेलेंगे और झेलने शुरू कर दिये हैं। कई लैटिन देशों ने अपनी सीमाएं सील कर दी है और वेनेजुएला की तरफ से हो रहे हैं पलायन को रोकने की सुरक्षा व्यवस्था कडी कर दी है। पर जान की परवाह किये बिना वेनेजुएला के लोग पलायन करने के लिए विवश हैं, उनके सामने मौत भी है तब भी वे पलायन करने के लिए बाध्य हैं। इसलिए कि भूख बडी आग होती है। भूख से काहिल लोग आखिर क्या करेंगे? भूख दूर करने के लिए वेनेजुएला में कोई शक्ति नहीं है, बढती महंगाई रोकने के लिए भी कोई नीति और संसाधन नहीं है। इसलिए अब तब दस लाख लोग ब्राजील और कोलंिबया में पलायन कर गये हैं। ब्राजील और कोलबिंया में पलायन कर गये वेनेजुएला के लोगों को नरकीय जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड रहा है। ब्राजील और का कहना है कि वह अत्यधिक शरणार्थियों का बोझ सहन नहीं कर सकता है। पेरू जैसे देश ने भी शरणार्थी समस्या के लिए कम्युनिस्ट तानाशाही को जिम्मेदार ठहराया है।

            वेनेजुएला का राजनीतिक विवाद में कम होने वाला नहीं है। कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ विपक्ष आंदोलन पर उतारू है, कम्युनिस्ट रूझान वाली वर्तमान सरकार समझौता करने के लिए राजी नहीं है। ऐसे में वेनेजुएला के नागरिकों के सामने संकट खतरनाक है। वेनेजुएला को दुनिया की मदद तभी मिल सकती है जब वेनेजुएला की कम्युनिस्ट तानाशाही अपनी तानाशाही समाप्त करने के लिए तैयार होगी और वेनेजुएला एक लोकतांत्रिक देश के रूप में खडा होगा। फिर भी वेनेजुएला के लोगों को मदद की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की पहल जरूरी है।