पाक पोषित आतंक पर सटीक वार







जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले का भारतीय वायुसेना ने जिस अदम्य शौर्य, साहस और पराक्रम के साथ करारा जवाब दिया है उसकी जितनी भी तारीफ की जाए वह कम ही है। लेकिन इसके लिये भारत के राजनीतिक नेतृत्व को श्रेय देने से परहेज बरतना भी उचित नहीं होगा। भारत पर आतंकी हमले तो आजादी के बाद से ही हो रहे हैं। बीते दशक में भी संसद हमले से लेकर मुंबई हमले तक कई बड़े आतंकी वारदातों के द्वारा पाकिस्तान ने भारत को उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन हर बार मामला कड़ी निंदा और पाकिस्तान से बातचीत का सिलसिला बंद करने तक ही मामला सीमित रहा। सेना ने तो मुंबई हमले के बाद भी वही प्लान मनमोहन सरकार के समक्ष भी पेश किया जिस पर इस बार अमल हुआ है। लेकिन तत्कालीन सरकार इतना साहस जुटाने में असमर्थ रही जिसका नतीजा हुआ कि पाकिस्तान के हौसले लगातार बुलंद होते चले गए। लेकिन इस बार मोदी सरकार के कार्यकाल में जिस तरह से पाकिस्तान को जवाब दिया गया है उसकी भी तहे दिल से तारीफ करनी ही होगी। उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और अब पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक ने पूरी दुनिया को यह साफ बता दिया है कि अब भारत किसी भी बदमाशी या खुराफात को चुपचाप सहने करने के लिये कतई तैयार नहीं है। खास तौर से  पुलवामा के शहीदों की ऐन तेरहवीं के दिन जिस तरह से भारतीय वायुसेना ने न सिर्फ नियंत्रण रेखा यानि एलओसी बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर यानि पीओके को भी लांघते हुए बालाकोट में संचालित हो रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को ध्वस्त किया है उस थप्पड़ की गूंज निश्चित ही पाकिस्तान को अब सदियों तक सुनाई देनेवाली है। हालांकि सैन्य कार्रवाई से पहले भारत ने पाकिस्तान पर आर्थिक और कूटनीतिक हमला भी कम जोरदार नहीं किया था। इसमें पाकिस्तान को एकतरफा तौर पर दिया गया ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेना, पाकिस्तान से आयात होने वाले सामनों पर दो सौ फीसदी तक का शुल्क लगा देना और पाकिस्तान को निर्यात किये जाने वाले सामानों पर रोक लगाना मुख्य तौर पर शामिल है। साथ ही वैश्विक स्तर पर भी भारत ने पाकिस्तान को इस कदर अलग-थलग कर दिया कि दक्षिण कोरिया से लेकर चीन सरीखे उन देशों को भी लोकलाज के कारण भारत के पक्ष को जायज मानने के लिये विवश होना पड़ा जिनके दम पर पाक का नेतृत्व विश्व राजनीति की दिशा मोड़ने के सपने देखा करता था। इतना ही नहीं बल्कि भारत की सबसे बड़ी एतिहासिक जीत संयुक्त राष्ट्र में हुई जहां सुरक्षा परिषद ने ना सिर्फ औपचारिक तौर पर पुलवामा हमले को लेकर निंदा प्रस्ताव पारित किया बल्कि आतंकवाद के खिलाफ सभी देशों से भारत का सहयोग करने की अपील भी की। यानि पुलवामा हमले के बाद के पूरे घटनाक्रमों को समग्रता में देखें तो भारत ना तो उकसावे में आया और ना ही जोश में आकर होश खोने की गलती की। बल्कि बेहद ठंडे दिमाग के साथ भारत ने अपना लक्ष्य तय किया और निर्धारित समयसीमा के भीतर उसे हासिल भी किया। अगर भारत ने पुलवामा हमले के बाद अचानक ही वह कार्रवाई कर दी होती जो आज की गई है तो ना विश्व में पाकिस्तान अकेला पड़ता और ना ही उसे हर तरह का नुकसान उठाना पड़ता। बल्कि संभव था कि उसके कथित मित्र देश उसके साथ खड़े हो जाते और विश्व मंच पर परंपरागत प्रोपेगेंडा की कूटनीति अमल में लाकर वह दुनिया के कई देशों की सहानुभूति भी अर्जित कर सकता था। लेकिन भारत ने इस बार उसे इतने फंदों में उलझाया कि वह अपनी होनेवाली दुर्दशा के बारे में सब कुछ पहले से जानते हुए भी उससे बचने के लिये कुछ नहीं कर पाया। इस बार ना सिर्फ विश्व मंच पर उसके साथ सभी देशों ने आतंकी राष्ट्र सरीखा अछूतों जैसा व्यवहार किया है बल्कि आर्थिक तौर पर उसकी कमर तोड़ने की भारत की पहल से बचाने के लिये आगे आए सऊदी अरब के युवराज को भी संतुलन बनाने के लिये भारत में बड़े निवेश के समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा। यानि पाकिस्तान की आर्थिक दयनीय स्थिति भी उजागर हो गई और उसकी वैश्विक कूटनीति भी पूरी तरह ध्वस्त हो गई। उसके बाद रही-सही कसर भारत की तीनों सेनाओं ने पूरी कर दी जिससे यह साफ हो गया कि पाकिस्तान के पास मौजूद तमाम सैन्य साजो-सामान सिर्फ दिखावे के ही हैं जिनका समुचित उपयोग करके अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में भी वह समक्ष नहीं है। हालांकि पिछली बार एबटाबाद में अमेरिकी सील कमांडो द्वारा ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिये किये गये आॅपरेशन में ही पाकिस्तानी सेना की क्षमता व दक्षता के अलावा वहां के रक्षातंत्र की कथित अभेद्यता की भी कलई खुल गई थी। लेकिन उस घटना से उसे इस वजह से शर्मसार नहीं होना पड़ा क्योंकि वह कार्रवाई विश्व की सबसे ताकतवर महाशक्ति ने की थी। लेकिन इस बार तो पाकिस्तान की सेना खुद से नजर मिलाने की स्थिति में भी नहीं बची है क्योंकि उसे ऐसे देश की सेना के हाथों पिटाई खानी पड़ी है जिससे खुद को कमतर मानने से बेहतर उसके लिये डूब मरना है। आज कहने को भले ही भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ नहीं बल्कि आतंकवादियों के खिलाफ ‘एयर स्ट्राइक’ किया है लेकिन बीते बारह दिनों से हाई अलर्ट पर होने के बावजूद अगर पाकिस्तानी फौज ना तो कराची बंदरगाह पर तैनात भारतीय पनडुब्बी को छू पाने में कामयाब हो पाई और ना ही एक दर्जन लड़ाकू विमानों के सरहद के भीतर घुसकर लक्ष्य को भेदने में सफल होने के बाद सुरक्षित वापस लौटने तक उसे इस कार्रवाई की कोई भनक लग सकी, तो इसका साफ मतलब यही है कि पाकिस्तान की आवाम के हिस्से की रोटी छीनकर जिस सेना को अब तक मलाई खिलाकर पाला गया है वह सिर्फ सफेद हाथी से अधिक और कुछ नहीं है। यानि पाकिस्तान को पुलवामा हमले के बाद हर तरह से सिर्फ नुकसान ही उठाना पड़ा है जिसकी भरपाई कर पाना उसके लिये अब नामुमकिन की हद तक मुश्किल है। जबकि भारत के नजरिये से देखें तो बेशक हमें अपने चालीस जवानों की शहादत का अतुलनीय नुकसान उठाना पड़ा है लेकिन उसके बदले में हर तरफ से सिर्फ जीत ही जीत मिली है। चाहे संयुक्त राष्ट में मिली ऐतिहासिक जीत की बात हो या ‘एयर स्ट्राइक’ करके दुश्मन पर हासिल जीत की। यहां तक कि इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीति समीकरणों को भी नकारात्मक चुनावी मुद्दों से हटाकर सकारात्मक राष्ट्रवादी मसले पर केन्द्रित कर दिया है। यानि इस पूरे घटनाक्रम की हर पहलू से परिणति भारत के लिये सकारात्मक ही रही है और पाकिस्तान को हर लिहाज से सिर्फ नुकसान ही हुआ है। लेकिन अब भी अगर पाक ने सबक नहीं सीखा तो उसकी दुर्गति के सिलसिले की तो यह सिर्फ शुरूआत ही है।