जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा के कड़क फैसले से जोनल प्रवर्तन अनुभाग में पसरा मातम












गाजियाबाद। जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा की सख्ती से नोटिस, सीलिंग और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से जुड़े और इस पूरे खेल में शामिल कतिपय तेज़तर्रार अभियंताओं और उनके शागिर्द समझे जाने वाले सुपरवाइजरों में मातम पसर चुका है। क्योंकि उपाध्यक्ष ने गत दो साल में अवैध निर्माणों के विरुद्ध की गई तमाम कार्रवाइयों का एकीकृत ब्यौरा तैयार करने के निर्देश दिए हैं, जिसमें अवैध निर्माण को लेकर दी गई नोटिस, फिर की गई सीलिंग और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से जुड़ी तमाम जानकारियां क्रमबद्ध रूप से शामिल होंगी। 

 

ऐसा इसलिए कि जीडीए की अनधिकृत कॉलोनियों के अलावा अधिकृत कॉलोनियों में भी न केवल नक्शे के विपरीत मकान बनाये जा रहे हैं, बल्कि वहां अवैध निर्माण भी धड़ल्ले से किये जा रहे हैं। इसके अलावा, आवासीय कॉलोनियों में भी व्यवसायिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। यूं तो समय समय पर ऐसे अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है जिसका जोनवार डाटा तैयार किया जाता है, किन्तु उन्हें एकीकृत नहीं किया जाता। जिससे यह पता नहीं चल पाता है कि पूरे जीडीए क्षेत्र में अवैध निर्माणों के खिलाफ कितनी कार्रवाई की गई और अब क्या स्थिति है? क्योंकि

इन सबसे सम्बन्धित शिकायतें भी उच्चाधिकारियों तक पहुंच रही हैं, लेकिन पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में वो कोई ठोस कार्रवाई कर नहीं पाते हैं।

 

सूत्रों ने बताया कि ऐसे मामलों में सम्बन्धित लोगों को जो नोटिस दी जाती थी, उसका अद्यतन ब्यौरा जोनल कार्यालय में रखा जाता था, लेकिन जीडीए मुख्यालय को इस बाबत कोई एकीकृत रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करवाया जाता था। जिससे प्रत्येक जोन में प्रवर्तन विभाग के अभियंताओं और उनके चहेते सुपरवाइजरों का अघोषित वसूली राज चलता था। वजह यह कि इस पूरी तकनीकी प्रक्रिया से प्रभावित होने वाले लोग प्रवर्तन विभाग के तेजतर्रार अभियंताओं और उनके चहेते सुपरवाइजरों से सांठगांठ करके अपने-अपने मामले से जुड़ी फाइलों को ही रफा-दफा करवा देते या फिर दबा देते थे, जिसकी भनक ऊपर के अधिकारियों को तो लगती थी, लेकिन ठोस रिकॉर्ड और उपयुक्त साक्ष्य के अभाव में उनके स्तर से समुचित कार्रवाई नहीं हो पाती थी।

 

यही वजह है कि इस बात की भनक जब उपाध्यक्ष कंचन वर्मा को लगी तो उन्होंने बेहद पेशेवर रुख अपनाते हुए  इस पूरे खेल से जुड़े लोगों को कागजी रूप से इस कदर बांध दिया कि किसी भी प्रकार के अवैध निर्माण को नजरअंदाज करना भविष्य में किसी भी तकनीकी अधिकारी के लिए सम्भव नहीं होगा। और यदि किसी ने दुस्साहस किया भी तो ऐसी किसी भी सांठगांठ को पकड़ना आसान हो जाएगा। क्योंकि उपाध्यक्ष कंचन वर्मा अवैध निर्माणों के मामले में बेहद सख्त हो चुकी हैं। इस बाबत पूछे जाने पर श्री मती वर्मा ने बताया कि प्रवर्तन अनुभाग को अवैध निर्माणों पर होने वाली कार्रवाई की विस्तृत और अद्यतन सूची तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं, जिसकी सूची वह जल्द ही तैयार करके दे देंगे। उसके बाद यह ऑनलाइन रूप में भी अपडेट किया जाता रहेगा।

 

बता दें कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण क्षेत्र में कुल 321 अवैध कॉलोनियां हैं, जिसमें सबसे ज्यादा 124 अवैध कॉलोनी जोन आठ में हैं। इसी प्रकार जोन 2 में 74 और जोन 3 में 38 अवैध कॉलोनियां अस्तित्व में हैं। हालांकि सबसे कम अवैध कॉलोनी जोन 6 में है। खास बात यह है कि ये सभी अवैध कॉलोनियां पिछले कुछ वर्षों में ही बढ़ी हैं, क्योंकि जीडीए की अधिकृत कॉलोनियों में जमीन की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। इसका फायदा उठाते हुए निजी डेवलपरों ने सस्ती कीमतों पर कहीं अवैध कॉलोनियां काट दीं तो कहीं अवैध और बिना नक्शा पास कराए फ्लैट्स खड़े करके बेच दिए। हालांकि जब कोई बड़ी घटना घटती है तो जीडीए अधिकारियों पर निरोधक और एहतियाती कार्रवाई करने का दबाव स्थानीय लोगों और राज्य सरकार दोनों तरफ से पड़ता है, जिससे उनका चिंतित होना स्वाभाविक है। 

 

गौरतलब है कि किसी भी अवैध निर्माण के खिलाफ जीडीए पहले तीन बार नोटिस प्रदान करता है। फिर सीलिंग या ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाती है। लिहाजा, अब जो एकीकृत सूची तैयार की जाएगी, उसमें यह जानकारी होगी कि सम्बन्धित सम्पत्ति धारक को कितनी बार नोटिस दी गई है और उसके बाद क्या कार्रवाई की गई है? स्पष्ट है कि जब ऐसे मामले की एकीकृत सूची तैयार हो जाएगी और ऑनलाईन प्लेटफार्म पर सबके संज्ञान में रहेगी तो मनमाफिक उलटफेर करना मुश्किल होगा। इसलिए जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा की इस युगांतकारी फैसले को लेकर लोगों के बीच हर तरफ तारीफ हो रही है। ये वही अधिकारी हैं जिन्होंने सिंगल विंडो सिस्टम लागू करके जीडीए में पहले बाबू राज खत्म किया, फिर अभियंता-सुपरवाइजर राज पर चोट पहुंचाई।