नए तेवर, कलेवर और फ्लेवर की तलाश






मीडिया के सहारे प्रचार के शिखर को छूने की कोशिशों के लिये जिस तत्व की सर्वाधिक आवश्यकता है वह है, नयापन, पैनापन, ताजगी और विश्वसनीयता। यह सिर्फ मुद्दों, विचारों और सिद्धांतों में ही नहीं बल्कि चेहरे के चयन के लिये भी आवश्यक है। वर्ना बासी पड़ चुके घिसे-पिटे चेहरों को ना तो मीडिया तवज्जो देती है और ना ही जनता। नतीजन अच्छे से अच्छे विचारों को भी उतना प्रचार व प्रसार नहीं मिल पाता है जिसके वे हकदार होते हैं। वैसे भी पैकेजिंग और पैकेटिंग के इस दौर में नए, ताजा व ऊर्जावान चेहरों को आगे करने की तमाम पार्टियों में होड़ सी लगी हुई है जिनकी बातों से लोग जुड़ाव व अपनापन महसूस कर सकें। यही वजह है कि परंपरागत प्रचार तंत्र के सहारे मौजूदा वक्त की राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में पेश आ रही मुश्किलों को देखते हुए अब भाजपा ने नए सिरे से अपने लिये आक्रामक प्रचार तंत्र तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है। खास तौर से आगामी लोकसभा चुनाव के लिये सेट किये जा रहे प्रखर राष्ट्रवाद के एजेंडे को आक्रामकता के साथ आगे बढ़ाने और उसके शोर में विरोधियों की हर आवाज को पूरी तरह दबा देने की रणनीति बना रही भाजपा को सबसे अधिक परेशानी अपने मौजूदा प्रचार तंत्र के पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाने के कारण झेलनी पड़ रही है। स्थिति यह है कि पुलवामा का बालाकोट में हिसाब चुकता करने के बाद जिस तरह से विपक्ष के लिये मीडिया में जगह की किल्लत हो गई और पूरा माहौल सिर्फ सरकार व सत्ता पक्ष के साथ जुड़ता हुआ दिखाई पड़ने लगा उसे निरंतरता देने में भी भाजपा का प्रचार तंत्र बुरी तरह असफल रहा है जिसके नतीजे में बालाकोट हमले के बाद विंग कमांडर अभिनंदन बर्तमान की देश वापसी के साथ ही विपक्ष का प्रभाव मीडिया में दिखाई देने लगा और इस पूरे मामलो को गुजरे हुए महज एक सप्ताह का समय बीतने के साथ ही पूरा एजेंडा विपक्ष के मुताबिक सेट होता हुआ दिखने लगा है। इसकी सबसे बड़ी वजह के तौर पर देखा जाए तो पुराने पड़ चुके घिसे-पिटे चेहरों के सहारे इलेक्ट्राॅनिक व सोशल मीडिया में अपनी बात को मजबूती से रख पाने में पार्टी को उतनी कामयाबी नहीं मिल रही है जिसकी वह अपेक्षा करती है। ऐसे में अब पार्टी ने अपने प्रचार तंत्र को नए तेवर और नए कलेवर के साथ ही नए फ्लेवर के साथ आगे करने की नीति बनाई है जिसके तहत मोदी सरकार की उपलब्धियों को राष्ट्रवाद के सांचे में ढ़ाल कर लोगों के समक्ष परोसने की तैयारी की जा रही है। वहीं दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर प्रभावी ढ़ंग से अपनी बात रखने में माहिर लोगों को राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका देने का विचार किया जा रहा है। इसी सिलसिले में आज पार्टी मुख्यालय में लोकसभा चुनाव को लेकर गठित प्रचार समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिसमें रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर व जयंत सिन्हा सरीखे कई वरिष्ठ मंत्रियों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में पार्टी के सभी राष्ट्रीय प्रवक्ता, मीडिया पैनलिस्ट, मीडिया सेल व सोशल मीडिया सेल के प्रभारियों ने भी शिरकत की। उल्लेखनीय है कि बीते दिनों पार्टी ने सभी प्रदेश इकाइयों से तीन ऐसे नामों की सूची भेजने के लिये कहा था जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम हो, विचारधारा पर अडिग हों और अपनी बात प्रभावी ढ़ंग से कहने में सक्षम हों। वरिष्ठ नेताओं की मानें तो अब पार्टी ने प्रदेशों से आई तीन नामों की सूची में से एक नाम का चयन करके उसे राष्ट्रीय स्तर पर आगे लाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच देश के राजनीतिक माहौल पर प्रखर राष्ट्रवाद का रंग चढ़ा है उसी के अनुरूप अपने पूरे प्रचार तंत्र को ढ़ालने की कोशिश भी हो रही है। जिसके चलते पार्टी अपनी सभी प्रचार सामग्रियों व साहित्य को भी नए सिरे से तैयार कर रही है। पार्टी की प्रचार सामग्री व साहित्य को तैयार करने के लिये विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में गठित कमेटी की लगातार बैठकें हो रही हैं। इसके साथ ही पार्टी में लोगों की जुबान पर आसानी से चढ़ जानेवाले कुछ नए नारे व टैग लाइन को लेकर भी माथापच्ची चल रही है जिसके द्वारा मोदी सरकार की उपलब्धियों व प्रखर राष्ट्रवाद के मौजूदा माहौल को समग्रता में प्रस्तुत किया जा सके।  यानि पूरी कोशिश है कि पाकिस्तान के साथ बढ़ती तनातनी के बीच प्रखर राष्ट्रवाद का वातावरण बनने के कारण भाजपा को राजनीतिक तौर पर बढ़त लेने का जो सुनहरा मौका मिला है उसे किसी भी हालत में अपने हाथों से हर्गिज फिसलने नहीं दिया जाए। इसके लिये ताबड़तोड़ बैठकों का सिलसिला भी चल रहा है और पार्टी में तमाम स्तर पर भारी मगजमारी भी हो रही है। हालांकि माहौल अभी तक काफी हद तक सरकार के पक्ष में ही है और विपक्ष को मीडिया में जगह बनाने के लिये ऐसी बातें व हरकतें करने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है जिसके बारे में उन्हें भी पता है कि ऐसा कहना और करना कतई सही नहीं है। लेकिन रणनीति यही है कि किसी भी तरह से मीडिया में प्रचार के मामले में बढ़त ली जाए और सरकार के पक्ष में जनभावना के उभार को रोका जा सके। लेकिन विपक्ष की कमियों व खामियों को भुनाने के लिये भी संगठन को ऐसे मुद्दों व चेहरों की जरूरत है जिसे मीडिया भी तवज्जो दे और उसके साथ आम लोग भी जुड़ाव महसूस कर सकें। इसके लिये बेहद आवश्यक है कि प्रचार के लिये सरकार के चमकदार व बड़े चेहरों पर अपनी निर्भरता को न्यूनतम किया जाए। आज स्थिति यह है बालाकोट का सबूत मांगनेवालों को जब विदेश राज्यमंत्री ने अपने ट्विटर हैंडल से माकूल जवाब दिया तब जाकर आज के एजेंडे में सरकार का पक्ष मजबूती से शामिल हो सका। लेकिन ऐसा हमेशा तो नहीं चल सकता। आखिर संगठन की मजबूती के कारण ही तो दोबारा सरकार बनाने की उम्मीद की जा सकती है। सिर्फ सरकार की मजबूती से काम नहीं चलने वाला। अब तक यह काम भले चल रहा था लेकिन आगे के लिये भाजपा को समझ में आ गया है कि अपने प्रचार तंत्र को पुख्ता करना ही होगा वर्ना मीडिया में बढ़त लेने की उम्मीदों पर पानी भी फिर सकता है।