संप्रग सरकार की नीतिपंगुता






आज वाकई भारत के लिये बहुत बड़ी कामयाबी का दिन है। जिस तरह से एंटी सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण करके अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने अमेरिका, रूस और चीन की बराबरी की है वह उपलब्धि वाकई बेमिसाल है। अब भारत का अंतरिक्ष भी सुरक्षित हो गया है और अंतरिक्ष में मौजूद हमारे संसाधनों की ओर भी कोई नजर उठाकर देखने की हिमाकत नहीं कर सकता। ना तो कोई अंतरिक्ष से हमारे हितों के साथ खिलवाड़ कर पाएगा और ना ही अतंरमहाद्वीपीय मिसाइलों से हमें नुकसान पहुंचा पाएगा। दुश्मनों की हर हिमाकत का अंतरिक्ष में माकूल जवाब देने में भारत पूरी तरह सक्षम हो गया है। निश्चित ही इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद हर भारतवासी को गर्व करने का मौका मिला है। लेकिन इस बात का दुख भी है कि इस उपलब्धि को हासिल करने के लिये जिस कदर लंबा इंतजार करना पड़ा उसे टाला भी जा सकता था और भारत का झंडा अंतरिक्ष में काफी पहले ही बुलंद किया जा सकता था। एंटी सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण ‘मिशन शक्ति’ को लेकर अब यह बात सामने आ रही है कि भारतीय वैज्ञानिक कई साल पहले ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल बनाने में सक्षम थे लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेसनीत संप्रग की पिछली सरकार ने उन्हें कभी ऐसा करने की अनुमति ही नहीं दी। डीआरडीओ के तत्कालीन प्रमुख वीके सारस्वत के मुताबिक केन्द्र की पिछली सरकार से मंजूरी नहीं मिलने के कारण डीआरडीओ ने इसके परीक्षण के फैसले को टाल दिया था। वर्ना अगर 2012-13 में ही इस तकनीक के परीक्षण की इजाजत दे दी गई होती तो 2014-15 में इसे लॉन्च किया जा सकता था। अगर कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने इस परीक्षण की इजाजत दे दी होती तो इस तकनीक के दम पर अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत से आगे निकलने का चीन को मौका ही नहीं मिलता क्योंकि तब तक उसके पास यह तकनीक उपलब्ध नहीं थी। चीन ने तो वर्ष 2017 में एंटी सैटेलाइट मिसाइल बनाने में कामयाबी हासिल की और उसका परीक्षण करने के लिये उसने अपने निष्क्रिय हो चुके मौसम उपग्रह को ध्वस्त किया था। यहां तक कि अगर मनमोहन सरकार ने डीआरडीओ को यह परीक्षण करने की इजाजत दे दी होती तो आज भारत की सैन्य क्षमता कई गुना अधिक बढ़ चुकी होती। लेकिन जब अग्नि 5 लॉन्च हुआ था तो 21 अप्रैल 2012 को प्रकाशित इंटरव्यू में प्रसिद्ध वैज्ञानिक व तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख वी के सारस्वत ने कहा था कि हमारे पास ऐसी इच्छा और क्षमता है, लेकिन सरकार अनुमति नहीं दे रही। इसकी पूरी प्रक्रिया 2014 के बाद शुरू हुई जब प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी अनुमति दी। ऐसे में अब यह बात केवल तत्कालीन सरकार के शीर्ष संचालक ही बता सकते हैं कि आखिर उन्होंने भारत की सुरक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ क्यों किया। हालांकि लगातार दस साल तक देश पर शासन करने के दौरान यूं तो डाॅ मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार ने कई गलतियां कीं जिसका खामियाजा ना सिर्फ देश और देशवासियों को बल्कि कांग्रेस को भी भुगतना पड़ा है और उसे अपने इतिहास के सबसे दयनीय व कमजोर दौर से गुजरना पड़ रहा है। लेकिन खास तौर से सेना व देश की सुरक्षा से जुड़े मसले को जिस लापरवाही से संचालित किया गया वह निश्चित तौर पर अक्षम्य अपराध ही कहा जाएगा जिसके लिये मनमोहन सरकार को ना तो मौजूदा वक्त माफ कर सकता है और ना ही इतिहास में उन्हें माफी मिल पाएगी। वह मनमोहन सरकार ही थी जिसके दौर में सेना को बुलेट प्रूफ जैकेट तक के लिये गिड़गिड़ाना पड़ा लेकिन उसकी मांग को पूरा करने की जहमत नहीं उठाई गई। वायु सेना द्वारा राफेल की मांग किये जाने के बावजूद उसकी खरीद को इस कदर फाइलों में उलझाया गया कि मौजूदा सरकार द्वारा की गई त्वरित खरीद के समझौते के बाद भी अभी तक देश को राफेल विमानों की खेप नहीं मिल पाई है। यहां तक कि सेना को ना तो पाकिस्तान के खिलाफ आत्मरक्षा के लिये आगे बढ़कर वार करने की इजाजत दी गई और ना ही सैन्य सामग्रियों व संसाधनों की मांग को पूरा करना जरूरी समझा गया। वह तो गनीमत रही कि उन दिनों भारत को कोई युद्ध नहीं झेलना पड़ा वर्ना कैग की रिपोर्टों की मानें तो हमारे पास लंबा युद्ध झेलने के लिये पर्याप्त गोली-बारूद भी उपलब्ध नहीं था। लेकिन इस सबके बावजूद रक्षा खरीद में भ्रष्टाचार का आलम यह रहा कि आज भी कांग्रेस को इस बात पर भरोसा नहीं हो पा रहा है कि बिना भ्रष्टाचार और दलाली के भी कोई रक्षा सौदा किया जा सकता है। तभी तो राफेल खरीद के मामले को तूल देकर कांग्रेस लगातार मोदी सरकार के खिलाफ हमलावर रही है और चैकीदार को चोर बताने की कोशिश की जा रही है। वह भी तब जबकि ना सिर्फ सरकार ने संसद में राफेल खरीद को लेकर विपक्ष के तमाम सवालों का औपचारिक तौर पर जवाब दे दिया है बल्कि सेना व फ्रांस की सरकार से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने इस खरीद में सरकार की नीति व नीयत को लेकर अपना पूरा विश्वास जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके बावजूद अगर चैकीदार चोर है के नारे को लगातार बुलंद करने से परहेज नहीं बरता जा रहा है तो निश्चित तौर पर इसके पीछे वह बुनियादी सोच ही छिपी हुई है जिसके तहत यह माना ही नहीं जा सकता कि बिना भ्रष्टाचार किये भी कोई रक्षा खरीद संभव है। पिछली सरकार के कार्यकाल तक हालत यह थी कि सेना का जूता खरीदने के लिये इजरायल को ठेका दिया जाता था और इजरायल की कंपनी भारत से ही सस्ते में जूता खरीद कर महंगी कीमत पर भारत सरकार को बेच देती थी। जाहिर तौर पर इस लंबी प्रक्रिया की जरूरत के पीछे भ्रष्टाचार के होने की आशंका को कतई दरकिनार नहीं किया जा सकता है। लेकिन अब वक्त भी बदला है और नेतृत्व के साथ ही रक्षा नीति में तब्दीली आई है। तभी तो रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में स्वदेशी को बढ़ावा देने की राह अपनाई गई है और आज अपनी स्वदेशी तकनीक व संसाधन के दम पर ही भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसालइ का सफल परीक्षण करके हर भारतवासी का सीना गर्व से छप्पन ईंच तक फुला दिया है।