हेमंत करकरे उत्पीड़न और प्रताड़ना का अपराधी था

हेमंत करकरे को लेकर कोई एक नहीं बल्कि अनेकानेक प्रश्न खडे थे, पर अधिकतर लोग इस प्रश्न पर बात ही नहीं करना चाहते थे? हेमंत करकरे को लेकर उठे प्रश्नों पर आखिर लोग बात क्यों नहीं करना चाहते थे? पहला कारण यह था कि कांग्रेस हर हाल में हिन्दू -भगवा आतंकवाद को प्रत्यारोपित करना चाहती थी, इसके लिए कांग्रेस हर वह हथकंडा अपनाने के लिए तैयार बैठी थी जो हथकंडा अपना सकती थी, हथकंडे के तौर पर कांग्रेस के पास तीस्ता सीतलवाड, हर्ष मंदर, जॉन दयाल और शबनम हाशमी जैसे तमाम चेहरे थे जो भारत को एक खलनायक के तौर पर प्रस्तुत करते थे और हिन्दुओं को आतंकवादी, खतरनाक तथा अमानवीय मानुष साबित करने के लिए तुले रहते थे, इसी सोच से प्रस्तावित दंगा रोधी विधेयक सामने आया था, जिसमें प्रावधान यह था कि कहीं भी दंगा होगा तो बेगुनाह साबित करने की जिम्मेदारी हिन्दुओं को ही होगी, मुस्लिम पर आरोप होने पर भी उसे बेगुनाही के सबूत नहीं जुटाने होंगे, वह प्रस्तावित विधेयक सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रय सलाहकार परिषद ने लायी थी जिसके सदस्य तीस्ता सीतलवाल सहित अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग शामिल थे। सबसे बड़ी बात यह है कि उसी काल में राहुल गांधी हिन्दुओं से देश को खतरा मानते थे और इस खतरे के बयान कूटनीतिज्ञों से करते थे। दूसरा सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की वह दस साल की सरकार थी जो हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने के लिए तुली हुई थी और केन्द्रीय सत्ता का डर मीडिया और प्रश्न उठाने वाले बड़ी शख्सियतों पर हावी था।


 क्या यह सही नहीं है कि उस कांग्रेस की केन्द्रीय सत्ता के तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम, तत्कालीन गृह मंत्री सुशील शिंदे ने खुलेआम हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी परोसी थी। अब कांग्रेस खंडन क्यों कर रही है कि उसने हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी नहीं दी थी? दिग्विजय सिंह तो हिन्दू आतंकवाद के प्रोपगंडा सामने रखने में कोई कसर नहीं छेड़ी थी। सबसे बड़ी बात यह है कि उस काल में संघ के एक बड़े नेता इन्द्रेश कुमार को बार-बार सीबीआई और महाराष्ट एटीएस प्रताडित करती थी और हिन्दू आतंकवाद के आरोप में जेल भेजने की धमकियों से उत्पीड़न करती थी। यह अलग बात है कि तत्कालीन कांग्रेसी सत्ता इन्द्रेश कुमार को जेल भेजने में असफल साबित हुई थी। जब केन्द्रीय सत्ता और राज्य सत्ता किसी वाद, किसी तथ्य को स्थापित करने के लिए हथकंडे पर हथकंडे अपनाती है तो फिर शक की सुई घूमती है। केन्द्रीय और राज्य सत्ता द्वारा स्थापित सुरक्षा जांच एजेंसियों की ईमानदारी और विश्वसनीयता भी प्रश्नों के घेरे में होगी। खुद दिग्विजय सिंह ने एक पुस्तक के लोकार्पण में कहा था कि उसकी बातचीत हेमंत करकरे से होती थी। अब प्रश्न यह उठता है कि हेमंत करकरे और दिग्विजय सिंह में बात क्यों होती थी। हेमंत करकरे को यह मालूम जरूर होगा कि वह एक बडी जांच की अगुवाई कर रहे हैं और दिग्विजय सिंह सहित तत्कालीन केन्द्रीय व राज्य सत्ता राजनीतिक फयदे के लिए हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करना चाहती है, खुद दिग्विजय सिंह हिन्दू आतंकवाद के प्रोपगंडा के बदबूदार चेहरा हैं, अगर ऐसे चेहरों से दोस्ती बनने दिया था? उन्होंने दिग्विजय सिंह से दूरी क्यों नहीं बनायी थी। एक तथ्य यह है कि दिग्विजय सिंह ने पाकिस्तान द्वारा मुबंई हमले को ही नकार दिया था, दिग्विजय सिंह ने हेमंत करकरे की मौत आतंकवादी कसाब की टीम की गोली से होने की बात भी नकार दी थी और अप्रत्यक्ष तौर पर कहा था कि हेमंत करकरे की मौत के पीछे गहरी साजिश है, इस साजिश के पीछे संघ का हाथ है। दिग्विजय सिंह ने मुस्लिम पक्षधर एक ऐसे पत्रकार की पुस्तक का विमोचन किया था जिसमें मुबंई हमले की साजिश के पीछे आरएसएस का हाथ बताया गया था। कांग्रेस की राजनीतिक योजना क्या थी? कांग्रेस की राजनीतिक योजना हिन्दू आतंकवाद का प्रोपगंडा खुडा कर भाजपा की शक्ति कमजोर करना और पूरे संघ परिवार को आतंकवाद का प्रतीक बना देना था। जिस समय प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी हुई थी उस समय प्रज्ञा ठाकुर विधार्थी परिषद की पुर्नकालिक थी। विद्यार्थी परिषद में रहने के दौरान ही प्रज्ञा ठाकुर ने साध्वी का रूप धारण किया था और उनकी गिनती एक तेजतर्रार साध्वी के तौर पर थी, पूरे मध्य प्रदेश में प्रज्ञा ठाकुर की सक्रियता थी। उसी दौरान मालेगांव बम बलास्ट में उनकी गिरफ्तारी हुई, गिरफ्तारी एक तरह से अपहरण जैसा कार्य था। लगभग आधे महीने तक किसी को सूचना तक नहीं मिली, आधे महीने तक प्रज्ञा ठाकुर को गैर कानूनी तौर पर हिरासत में रखा गया, मध्य प्रदेश पुलिस तकको प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी की सूचना नहीं दी गयी थी। अगर हेमंत करकरे ईमानदार थे और निष्पक्ष थे तो यह बताया जाना चाहिए कि उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी की सार्वजनिक सूचना क्यों नहीं दी थी, हेमंत करकरे ने करीब आधे महीने तक गैर कानूनी तौर पर प्रज्ञा ठाकुर को हिरासत में क्यों रखा था। कानून के जानकार यह जानते हैं कि पुलिस हिरासत में किसी को भी चौबीस घंटे से ज्यादा नहीं रखा जा सकता है, इस दौरान गिराफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित करना अनिवार्य तौर पर जरूरी है। प्रज्ञा की गिरफ्तारी एक आश्चर्यजनक घटना थी। प्रज्ञा की गिरफ्तारी ने कई प्रश्न खड़े कर दिये थे, जिसके जवाब उस समय नहीं थे। हर जगह हिन्दू आतंकवाद की चर्चा थी, एक ऐसा वातावरण बना दिया गया था कि सही में सभी हिन्दू आतंकवादी हैं, और दुनिया में आतंकवाद का पर्याय बन चुकी आयातित संस्कृति से जुड़ी हुई आबादी शांति और सदभाव की प्रतीक है। पर लालकृष्ण आडवाणी ने कांग्रेस की मंशा भाप ली थीआडवाणी अपनी टीम के साथ मिलने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास गये थे और उन्होंने कहा था कि प्रज्ञा ठाकुर के बहाने कांग्रेस हिन्दू आतंकवाद को स्थापित और प्रायोजित करना चाहती है, इस कांग्रेसी राजनीतिक योजना का दुष्परिणाम भयंकर होगा। उस समय आडवाणी से मनमोहन सिंह ने प्रज्ञा दिखायीकर आयोजित करको स्थापित ठाकुर और हिन्दू आतंकवाद के प्रोपगंडा से अनभिज्ञता जाहिर की थी। आडवाणी की चेतावनी कितनी सही हुई, यह भी देख लिया जाना चाहिएआडवाणी की चेतावनी पर कांग्रेस ने अगर विचार की होती तो फिर कांग्रेस की छवि एक हिन्दू विरोधी पार्टी की नहीं होती। 2014 में केन्दीय सत्ता से कांग्रेस की विदाई भी हिन्दू विरोधी राजनीतिक छवि के कारण हुई है, कांग्रेस की रिपोर्ट यह स्वीकार करती दुष्परिणाम भी देख लीजिये। महराष्ट्र की पूरी एटीएस की टीम प्रज्ञा ठाकुर को आतंकवादी घोषित करने में लगी रही, देश और राज्य की सुरक्षा का प्रश्न गौण हो गया था। इसका दुष्परिणाम मुबंई पर पाकिस्तानी आतंकवादी हमला था। आतंकवादी हमले के समय महाराष्ट एटीएस के पास कोई सुरक्षा योजना नहीं थी। खुद हेमंत करकरे ने सुरक्षा मानकों की अवहेलना की थीउनके पास बुलेट प्रुफसुरक्षा जैकट था पर वे पहने हुए नहीं थे, उनके पास आतंकवादियों से लौहा लेने के लिए जरूरी और मारक क्षमता वाले हथियार नहीं थे। इस लापरवाही में हेमंत करकरे कसाब की आतंकवादी टीम की गोलियों के शिकार हो गये थे। हेमंत करकरे अगर बहादुर होते और उनके पास युद्ध कौशल होता तो फिर वे मारक क्षमता वाले हथियारों के साथ आतंकवादियों के सामने होते। हेमंत करकरे की गोलियों से कोई आतंकवादी नहीं मरा था, आतंकवादियों की गोलियों से अन्य पुलिस वाले भी मारे गये थे। पर वीरता के लिए अशोक चक्र सम्मान हेमंत करकरे को ही क्यों मिला था? मुबंई आतंकवादी हमले के दौरान हेमंत करकरे ने कौन सी वीरता दिखायी थी? उस समय भी यह प्रश्न उठा था कि हेमंत करकरे को वीरता का अशोक चक्र पुरस्कार क्यों मिला? चूंकि हेमंत करकरे हिन्दू दिखायीकर ने कौन इसी लिए कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने हेमंत करकरे को यह पुरस्कार दी थी। अशोक चक्र पुरस्कार पर उस समय भी उंगली उठी थी। प्रज्ञा कहती है कि जांच के दौरान सुरक्षा आयोग के एक सदस्य ने हेमंत करकरे से सबूत नहीं होने की बात की थी। करकरे से कहा था कि जब सबूत ही नहीं है तो फि साध्वी को हिरासत में क्यों रखना? तब सुरक्षा आयोग के सदस्य के सामने करकरे ने कहा था कि मै सबूत जुटाने के लिए वह हर कार्य करूंगा जो कर सकता हूं। अगर प्रज्ञा ठाकुर की यह बात सही है तो हेमंत करकरे की ईमानदारी और विश्वसनीयता पर चर्चा कैसे नहीं होगी। एटीएस और जेल में प्रज्ञा ठाकुर का उत्पीडन हुआ, प्रताडना हुई है, यह सिद्ध बात है। प्रज्ञा ठाकुर के शरीर पर कई नकरात्मक रसायानों को प्रयोग हुआ था। जेल में ही प्रज्ञा ठाकुर को कैंसर की बीमारी हुई थी, कैंसर की बीमारी प्रताड़ना और उत्पीड़न का परिणाम थी। हेमंत करकरे को मेजर लीतुल गोगई की कसौटी पर देखा जाना चाहिएपत्थरबाजों के खिलाफ मानव ढाल बना कर मेजर लीतुल गोगई सुर्खियों में आये थे और सेना के वीर अफसरों में उनकी गिनती थी। पर एक अमान्य कार्य ने उनकी छवि धुमिल कर दिया, मेजर लीतुल गोगई को कोर्ट मार्शल हुआ और उन्हें सजा देने की प्रक्रिया भी जारी है। अगर हेमंत करकरे ने उत्पीडन और प्रताड़ना सहित तथ्यारोपण के दोषी हैंतो फिर उनकी आलोचना जरूरी है। उनकी ईमानदारी और विश्वसनीयता पर उंगली उठेगी ही।हेमंत करकरे आतंकवादी की गोली के शिकार हुए थे। इसलिए वे सम्मान के अधिकार जरूर रखते हैं। पर प्रज्ञा ठाकुर के प्रसंग पर उनकी जिम्मेदारी का स्वतंत्र और न्यायपूर्ण परीक्षण क्यों नहीं होनी चाहिए? प्रज्ञा की पीड़ा पर भी राजनीतिक विचारण जरूरी है। प्रज्ञा ठाकुर की पीड़ा और प्रज्ञा ठाकुर का उत्पीडन अब भी कांग्रेस को लहूलुहान करती रहेगी।