सियासत का सुनहरा पक्ष






भारतीय राजनीति में प्रतिद्वन्द्वियों व प्रतिपक्षियों के बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा का जो सार्वजनिक तौर पर मुजाहिरा होता रहता है उसे सियासत का सम्पूर्ण चेहरा मान लेना बहुत बड़ी भूल होगी। यह तो सिर्फ एक पक्ष है जो सामने दिखाई पड़ता है। लेकिन इसके पीछे एक सुनहरा सच वह भी होता है जो आम तौर से सार्वजनिक तौर पर दिखाई नहीं पड़ता। पर्दे के पीछे दबा रहता है, छिपा रहता है। वह सुनहरा सच यह है कि भारत की राजनीति में दिखाई पड़ने वाला द्वन्द्व या टकराव आम तौर पर निजी नहीं होता। वह सिर्फ वैचारिक होता है और सैद्धांतिक होता है। व्यक्तिगत स्तर पर एक दूसरे के विरोधी माने जानेवाले नेताओं के बीच भी कई बार बेहद गहरे व दोस्ताना रिश्ते होते हैं जिसे आम तौर पर लोगों की निगाह से छिपा कर ही रखा जाता है। लेकिन कहते हैं कि सच्चाई को लाख पर्दे के पीछे छिपाकर क्यों ना रखा जाए लेकिन उसकी हकीकत कभी ना कभी सामने नुमाया हो ही जाती है। ऐसी ही हकीकत को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करने की पहल की है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। राजनीति में दो विपरीत ध्रुव माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आपसी रिश्ते निजी स्तर पर बेहद मधुर हैं। मोदी को लेकर ममता द्वारा दिये जाने वाले बयानों को सुनकर अगर कोई समझे कि वे मोदी से नफरत या घृणा करती हैं तो यह बिल्कुल ही गलत होगा बल्कि सच तो यह है कि राजनीतिक जीवन में भले ही दोनों एक दूसरे को कतई पसंद ना करते हों और एक दूसरे की कार्यशैली और रीति-नीति की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हों लेकिन निजी जीवन में इन दोनों के बीच अपार स्नेह है और यही वजह है कि ममता ना सिर्फ मोदी को अक्सर उपहार भेजती रहती हैं बल्कि उनके लिये अपनी पसंद के बेहतरीन कपड़े और स्वादिष्ट मिठाइयां भी भिजवाती रहती हैं। प्रधानमंत्री ने अक्षय कुमार को दिए एक 'पर्सनल' इंटरव्यू में अपनी धुर-विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा उन्हें हर साल कुर्ते गिफ्ट करने का दिलचस्प राज खोलते हुए कहा कि, ”ममता दीदी आज भी मुझे साल में एक-दो कुर्ते खुद सिलेक्ट कर भेजती हैं। कोई न कोई बंगाली नई मिठाई ढाका से मुझे वहां की पीएम शेख हसीना जी भेजती हैं, जब ममता दीदी को पता चला तब से वह भी मेरे लिए कोई मिठाई भेजती हैं।” इस साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने विरोधी पक्ष के कई अन्य नेताओं के साथ अपने मधुर रिश्तों का भी खुलासा किया। मोदी की मानें तो उन्हें विरोधियों के प्रति सख्त और खास तौर से मुस्लिम पक्ष का विरोधी दर्शाने की जो कोशिश होती रहती है वह बिल्कुल ही गलत है बल्कि निजी जिंदगी में विपक्षी नेताओं के साथ उनके ताल्लुकात बेहद ही सौम्य, मधुर व दोस्ताना हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,”मेरे कई दोस्त हैं विपक्षी पार्टी में और बहुत अच्छे दोस्त हैं, उनके साथ खाना भी खाते हैं। तब मैं गुजरात का सीएम नहीं था किसी काम से मैं संसद गया था और गुलाम नबी आजाद और मैं गप्पें मार रहे थे। एक मीडियाकर्मी ने कहा कि आरएसएस वाले हो और गुलाम नबी के साथ हो। गुलाम नबी जी ने कहा कि सभी दल के लोग फैमिली के तौर पर जुड़े हैं।” वाकई गुलाम नबी ने कोई गलत बात नहीं कही। सच्चाई यही है कि कई ऐसे दलों के नेताओं रिश्ते वास्तव में पारिवारिक या खून के संबंधों से भी अधिक पक्के हैं जो सार्वजनिक तौर पर कभी एक दूसरे के साथ हाथ मिलाना भी पसंद नहीं करते हैं। ऐसी ही दोस्ती निभाने के लिये भाजपा के अरूण जेटली भी मशहूर हैं और कांग्रेस के राजीव शुक्ला भी। बीते दिनों जब प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते हुए जदयू नेता नीतश कुमार ने भाजपा के साथ अपने सभी संबंध तोड़ लिये थे उन दिनों भी जब वे दिल्ली आते थे तो जेटली के घर पर ही भोजन किया करते थे। ऐसा ही रिश्ता निभाने की ताकीद बीते दिनों भाजपा के शीर्षतम मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी ने भी अपनी पार्टी के नेताओं से की थी और यह याद दिलाया था कि वैचारिक विरोधियों को कभी निजी दुश्मन नहीं मानना चाहिये। यह ऐसी सीख थी जिसका भारत के अधिकांश नेतागण अनुपालन करते हैं। मिसाल के तौर पर दक्षिण भारत की राजनीति में भाजपा का कांग्रेस के साथ भले ही छत्तीस का आंकड़ा हो लेकिन जब भाजपा के धुर विरोधी माने जानेवाले शशि थरूर का पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान एक्सीडेंट हुआ तो अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकाल कर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण भी उन्हें देखने अस्पताल पहुंची और उनसे मुलाकात करके उन्हें शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामनाएं दीं। ऐसे कई किस्से बीते दिनों के भी काफी मशहूर हैं और मौजूदा वक्त के भी। अक्सर एक ही क्षेत्र से चुनावी मुकाबला कर रहे नेतागण कई बार चुनाव प्रचार की आपाधापी व व्यस्तता में एक साथ ही भोजन जलपान करते हुए देखे जाते हैं। कई बार चुनाव प्रचार के लिये गए विरोधी पार्टी के नेता का भी अपने राज्य में दिल खोलकर स्वागत करते हुए ऐसे नेता दिखाई पड़ते हैं जिनके बीच आपसी संवाद होने की भी आम लोग कल्पना नहीं कर सकते। खास तौर से खुशी और गम के मौके पर तो दलगत भावनाओं का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। तभी तो संसद सत्र के अंतिम दिन भावनाओं में बह कर सपा के वरिष्ठतम नेता मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक तौर पर मोदी सरकार की वापसी की कामना की। उससे पहले जब यूपी में योगी सरकार ने सत्ता संभाली तब भी शपथ ग्रहण के मंच पर मुलायम और अखिलेश दिखाई पड़े जहां मुलायम ने अखिलेश को मोदी से आशीर्वाद भी दिलाया। यानि भारतीय राजनीति में किसी के भी स्थाई दोस्त या स्थाई दुश्मन नहीं होने की जो बात कही जाती है उसके पीछे नेताओं के आपसी निजी रिश्ते ही होते हैं जिसके तहत आंकड़ों के अनुसार सार्वजनिक संबंधों में हर चुनाव के बाद बदलाव आता रहता है। यही भारतीय राजनीति की खूबसूरती है कि लालू को मुख्यमंत्री रहते हुए जेल जाने से अटल बचा लेते हैं और शीला दीक्षित के खिलाफ मौजूद कथित सबूतों को केजरीवाल छिपा लेते हैं।