यातायात प्रदूषण का बच्चों पर कहर

(बाल मुकुन्द ओझा)


भारत में बच्चे से बुजुर्ग तक हर समय किसी न किसी सेहत के खतरे से घिरे रहते है। यहाँ एक खतरा कम होने का नाम नहीं लेता की दूसरे की आहट सुनाई देने लगती है। इस बार मीडिया ने यातायात प्रदूषण के खतरे से बच्चों को सचेत किया है।
प्रदूषण कितने प्रकार का है यह हर कोई नहीं जानता है मगर यह बात सब जानते है की प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इससे न सिर्फ हमारे फेफड़ों और दिल को नुकसान पहुंचता है बल्कि अस्थमा जैसी कई बीमारियां भी घेर लेती हैं। हाल ही में की गई एक स्टडी में सामने आया है कि यातायात प्रदूषण से भारत में साढ़े तीन लाख बच्चों को अस्थमा हो गया है। चीन के बाद इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला दूसरा देश भारत है।
भारत में सरकारी और निजी स्तर पर जागरूकता के आभाव का कारण बच्चे से बुजुर्ग तक प्रदूषण के चपेट में है और इससे पीड़ित लोगों का आंकड़ा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। बच्चे मासूम है और इस खतरे से नावाकिफ है। बच्चों की सेहत की रक्षा करना हर व्यक्ति का कर्त्तव्य है। हमारे नौनिहाल यदि आँख खोलते ही इसकी चपेट में आ गए तो भविष्य पर सवाल उठाना लाजमी है। यातायात प्रदूषण के अनेक कारण है जिन पर लम्बी बहस की जा सकती है मगर जरुरत इस बात की है की हम उन कारणों को दूर करें जिनकी बदौलत बच्चो की सेहत पर बुरा असर पढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण वे वाहन है जो निरंतर धुंवा छोड़कर बच्चों को आहत कर रहे है। भारत में किसी भी यातायात चैराहे पर खड़े होकर हम देखे तो पाएंगे जहरीली गैस हमारे पर्यावरण को खराब कर रही है। इसके लिए कोई दूसरा नहीं बल्कि हम खुद जिम्मेदार है। आने वाले खतरे को हम खुद आमंत्रित कर रहे है और इसका दोष सरकार पर मंड देते है। पहले हमें खुद को सुधारना होगा फिर यह सीख दूसरों को देनी होंगी तभी सुधारात्मक उपाय सार्थक होंगे और प्रदूषण से बचा जा सकेगा।
लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, यातायात प्रदूषण से अस्थमा की बीमारी सबसे ज्यादा चीन में पाई गई। वहां इससे 7 लाख 60 हजार बच्चों को अस्थमा हो गया। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि चीन बच्चों की सबसे अधिक आबादी वाला दूसरा देश है। इसके अलावा यहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा सबसे अधिक है। इस ऑक्साइड की मात्रा ही यातायात प्रदूषण की ओर इशारा करती है।
अमेरिका स्थित जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, भारत में अस्थमा की बीमारी के सबसे ज्यादा मामले यानी साढ़े तीन लाख मामले इसलिए थे क्योंकि यहां बच्चों की आबादी अधिक है। वहीं अमेरिका में अस्थमा से पीड़ित बच्चों की संख्या 2 लाख 40 हजार, इंडोनेशिया में 1 लाख 60 हजार और ब्राजील में 1 लाख 40 हजार थी। अगर वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए सख्त कदम उठाए जाएं तो फिर अस्थमा की बीमारी को रोका जा सकता है। वैश्विक स्तर पर देखें, तो इस स्टडी के मुताबिक, हर साल प्रति एक लाख बच्चों में अस्थमा के 170 नए मामले सामने आते हैं और इनमें से बचपन में होने वाले अस्थमा के 13 फीसदी मामले यातायात प्रदूषण से जुड़े होते हैं। इस स्टडी में लांसेट जर्नल ने 194 देशों और दुनियाभर के 125 प्रमुख शहरों को विश्लेषण किया और बताया कि इस लिस्ट में संयुक्त राष्ट्र 24वें स्थान पर, अमेरिका 25वें स्थान पर, चीन 19वें और भारत 58वें स्थान पर है।