आतंक की आग में झुलसता पाकिस्तान






इस समय जब रमजान का पवित्र महीना चल रहा है, इस्लाम को माननेवाले रोजे और इबादत में मशगूल हैं, तब पूरा पाकिस्तान आतंक की उस आग में झुलस रहा है जो उसने खुद ही लगाई हुई है। क्या सिंध, क्या बलूचिस्तान, क्या खैबर पख्तूनवा और क्या पंजाब। हर तरफ आग ही आग है। यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है और ना ही सरहदी मतभेदों के कारण है। बल्कि वहां के लोग अपने ही हम-मजहब और हम-वतन लोगों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। बीते कुछ दिनों से लगातार बड़े आतंकी वारदातों की खबरें पाकिस्तान से आ रही हैं जिससे यह साफ पता चल रहा है कि वह मुल्क काफी हद तक गृहयुद्ध की स्थिति से गुजर रहा है। इसमें बेहद दर्दनाक बात यह है कि आतंकी वारदातों में निशाना उन्हें बनाने का प्रयास किया जा रहा है जो या तो धार्मिक उपासना में मशगूल हैं या फिर देश की आर्थिक बदहाली को दूर करने के लिये संघर्षरत हैं। इस समय मसूद अजहर जब वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जा चुका है और पाकिस्तान, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की काली सूची से बचने के लिए आतंकी ठिकानों को बंद करने की मुहिम चला रहा है, ऐसे में रमजान के पवित्र महीने के दौरान हो रहे सिलसिलेवार व लगातार आतंकी हमलों को लेकर पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति की जो कलई उतर रही है वह निश्चित ही इमरान सरकार के लिये ना सिर्फ निराशाजनक बल्कि फजीहत का सबब भी बन गई है। इन दिनों पाकिस्तान में आतंकी वारदात कितनी सहजता और बेखौफ तरीके से अंजाम दिये जा रहे हैं इसकी बानगी है कि जब बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में लोग एक मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए इकट्ठा हुए, तभी यहां एक बम ब्लास्ट कर दिया गया। इस बड़े आतंकी हमले में 4 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई, जबकि 11 लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। इससे पहले शनिवार को ग्वादर में आतंकियों ने एक पांच सितारा होटल को अपना निशाना बनाया जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई। मृतकों में पाकिस्तानी जल सेना का एक सैनिक और तीन आतंकी शामिल थे। इससे पहले रमजान शुरू होने के दूसरे दिन लाहौर के लोकप्रिय सूफी दरगाह दाता दरबार पर आत्मघाती हमला हुआ जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई और 25 लोग घायल भी हुए। यह हमला इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान अभी भी आतंकी संगठनों की पनाहगाह बना हुआ है, जो अब पाकिस्तान के लिए ही घातक बनते जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बीते दो वर्षों में कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ था। लेकिन दाता दरबार दरगाह में हुए हमले ने पंजाब के सुरक्षित होने का भ्रम भी तोड़ दिया है। दाता दरबार पर हुए आत्मघाती हमले में पाकिस्तान के एलीट सुरक्षा दस्ते को निशाना बनाया गया, जो रमजान महीने में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ के मद्देनजर दरबार की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही थी। इससे पहले सेहवान की लाल शाहबाज कलंदर की मजार, पक्पट्टन में बाबा फरीद की मजार और कराची में अब्दुल्ला शाह गाजी की मजार पर भी बीते समय में हमले हुए हैं। यानि निशाने पर सुरक्षाकर्मियों को भी लिया जा रहा है और अल्पसंख्यक शियाओं के अलावा सूफियों को भी। आतंकी हर उस नागरिक को अपने निशाने पर ले रहे हैं जो समाज को जोड़ने या सुरक्षित रखने के लिये आगे आने की मंशा रखता हो। सूफियों और शियाओं पर हमले तो आए दिन होते ही रहते हैं। सूफी दरगाह पर सूफी विचारधारा के कारण आतंकी समूह इन्हें निशाना बनाते हैं। ज्यादातर कट्टरपंथी गुट सूफी संतों को विधर्मी मानते हैं। पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन पाकिस्तान तालिबान, लश्कर ए झांगवी और स्थानीय तालिबान से अलग हुआ गुट हिजबुल अहरार ने दाता दरबार में हुए ताजा बम हमले की जिम्मेदारी ली है। यह सभी गुट सूफी संतों को बहुदेववादी मानते हैं और यही वजह है कि सूफी दरगाह के प्रति इन आतंकी गुटों के मन में नफरत की भावना है, जो उन्हें इस्लाम धर्म से जोड़ कर नहीं देखते हैं। रमजान के दूसरे दिन जिस दाता दरबार पर आतंकी हमला हुआ वह दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा सूफी दरगाह है, जहां साल के आखिर में होने वाले तीन दिनों के सालाना उर्स में पाकिस्तान के सभी क्षेत्रों से शिया और सुन्नी दोनों समुदायों के लोग भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं। यह पहली बार नहीं है जब दाता दरबार में पूजा पद्धति को निशाना बनाया गया हो। इससे पहले 2010 में सूफी दरगाह में दो भीषण आत्मघाती हमले हुए थे जिसमें 50 लोग मारे गए थे और 200 से ज्यादा घायल हुए थे। दाता दरबार के बड़ी संख्या में अनुयायी होने और इसके एक धार्मिक प्रतीक होने के कारण यह ना पाकिस्तान के लोगों में बल्कि पाकिस्तान के नेताओं के लिए भी काफी अहमियत रखता है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ एक हफ्ते के लिए जमानत पर थे और इस दौरान उन्होंने हमले के महज दो दिन पहले दाता दरबार जाकर प्रार्थना की थी। यही वजह है कि इस सूफी दरगाह की सुरक्षा सरकार के लिए अहम हो जाती है। यही वजह है कि सुरक्षाबलों और अन्य कानूनी एजेंसियों ने इसे राज्य के प्रतीक के तौर पर मानते हुए सुरक्षा बढ़ाई। इस प्रसिद्ध सूफी दरगाह की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे एलिट फोर्स को निशाना बनाया जाना बेहद अहम है। आत्मघाती बम हमले इस बात के संकेत हैं कि पाकिस्तान में आतंकवादी अभी भी सक्रिय हैं और अपने मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं। यह भी मुमकिन है कि सूफी दरगाह पर आने वाले समय में भी हमले इसी तरह होते रहेंगे जो अपनी इस्लाम से अलग पूजा पद्धति का उपदेश देते हैं। दाता दरबार दरगाह इसलिए भी लोकप्रिय है क्योंकि यहां आयोजित होने वाले पर्व विविध रंगों और संगीत से सजे होते हैं जिसमें भक्त वाद्य यंत्रों की थाप पर झूमते हैं जिसे अधिकांश कट्टरपंथी गुट गैर इस्लामी मानते हैं। पाकिस्तान के लिए यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय होना चाहिए कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन पवित्र तीर्थ स्थलों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने के लिए युवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रांतीय अधिकारियों ने खुलासा किया है कि इस बार दरगाह पर हुए हमले को एक पंद्रह वर्षीय युवा ने अंजाम दिया। यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि अतिवादी संगठन के खिलाफ पाकिस्तान की आतंकरोधी नीति और कार्रवाई महज एक छलावा और दिखावा है वर्ना आतंक की कमर तोड़ने के लिये जिस शिद्दत से कार्रवाई की जरूरत है वह करने की ना तो पाक की नीति है और ना ही नीयत।