"अव्यक्त प्रीत "






(डाॅ० अतिराज सिंह)

                 "अव्यक्त प्रीत " 

 

रुको, नैनों को तृप्त कर लूँ तो चले जाना!

लगन के रंग सम निखर लूँ तो चले जाना! 

 

उभरते आस की तुम आज खीच दो रेखा! 

समझ लूँ  मैं भी उसे स्वप्न जो तुमने देखा। 

उसी के साथ जब सँवर लूँ  तो चले जाना! 

रुको, नैनों को तृप्त कर लूँ तो चले जाना! 

 

तुम्हें  छूकर मगन पवन भी आज लहराए, 

तनिक कहो वहाँ से चल के वो यहाँ आए! 

सुगंध श्वाँस में जब भर लूँ तो  चले जाना! 

रुको, नैनों को तृप्त कर लूँ तो चले जाना! 

 

रूपहले भावों की अव्यक्त प्रीत परिभाषा, 

सुनहरे  सूत्र  से बँधी जो  स्नेह  की भाषा, 

उसी बंधन को दृढ़ कर लूँ  तो चले  जाना! 

रुको, नैनों को तृप्त कर लूँ तो चले जाना! 

 

अति धीरे से  मैने खोल कर नयन पट को, 

तुम्हें देखा  ज़रा  सरका  करके  घूँघट को,

हृदय- पिंजर में कैद कर लूँ तो चले जाना! 

रुको, नैनों को तृप्त कर लूँ तो चले जाना!