भावी सरकार के लिये कूटनीतिक कवायदें






सत्रहवीं लोकसभा के लिये हो रहे चुनाव के अंतिम सांतवें चरण के लिये प्रचार अभियान पर औपचारिक तौर पर विराम लग गया है और इतवार को मतदान भी समाप्त हो जाएगा। उसके बाद अंतिम परिणाम किसके पक्ष में जाएगा और किसे मायूसी हाथ आएगी इसके बारे में पक्के तौर पर कहना तो किसी के लिये भी मुश्किल है। लेकिन मौजूदा हालातों में इतना तो स्पष्ट नजर आ रहा है कि मोदी के मुकाबिल कोई खड़ा नहीं दिख रहा है। रेस में मोदी ही दौड़ रहे हैं और उनकी रफ्तार का मुकबला करने से लिये विरोधियों के पास ना तो कोई स्पष्ट नीति है और ना ही कोई नेता। हालांकि इस बार का चुनाव सीधी दौड़ के तौर पर नहीं होता दिख रहा है। भाग हर कोई रहा है लेकिन सबकी दिशा अलग है। दावा सबका यही है कि मंजिल की दिशा में वही बढ़ रहा है लेकिन किसी की दौड़ मंजिल पर पहुंचेगी और कौन राजनीति की राहों में गुम होकर रह जाएगा इसका वास्तविक निर्णय तो 23 मई को होनेवाली मतगणना के परिणामों से ही होगा। लेकिन अभी तो सभी जीते हुए हैं। कोई हारा हुआ तो तब माना जाएगा जब वह हार को स्वीकार कर ले। ऐसा तो किसी ने किया नहीं है। ना तो उस दल ने हार को स्वीकार किया है जो महज 38 या 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है और ना ही उस दल ने खुद को हारा हुआ माना है जो 400 से ज्यादा सीटों पर जीत के लिये जूझ रहा है। ऐसे में किसी को हारा हुआ करार देना तो ज्यादती होगी। लिहाजा टटोलना होगा उन संभावनाओं को जिसके आधार पर सभी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो सिर्फ भाजपा ही ऐसी पार्टी है जो सीना ठोंक कर यह दावा कर रही है कि उसे इस बार 300 से अधिक सीटों पर जीत हासिल होगी और वह अपने साथियों के साथ मिलकर केन्द्र में दोबारा सरकार बनाएगी। हालांकि भाजपा के इस दावे पर उसके उन सहयोगियों को भी यकीन नहीं है जिन्हें अपने दम पर बहुमत होने के बाद भी वह सत्ता में साझेदारी का मौका देने का वायदा कर रही है। मसलन शिवसेना का भी यही मानना है कि भाजपा की दौड़ अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल करने से पहले ही दम तोड़ देगी और जदयू भी यह मान कर चल रही है कि इस बार बहुमत के आंकड़े को पार करने में भाजपा कतई कामयाब नहीं हो पाएगी। हालांकि राजग के जो घटक यह दावा कर रहे हैं कि भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं हो पाएगा वह भी इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि एक बार फिर आएगा तो मोदी ही। उनको विश्वास है कि भाजपा अकेले तो बहुमत नहीं जुटा पाएगी लेकिन राजग की संयुक्त ताकत सरकार बनाने के लिये आवश्यक जादूई आंकड़े यानि 272 से अधिक सीटों पर अपनी जीत अवश्य दर्ज कराएगी। खैर यह तो बात हुई राजग के खेमे की। अगर विरोधी दलों की बात करें तो बेशक उस ओर से कोई भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि वह अपने दम पर सरकार बनाने के लिये आवश्यक सीटें हासिल कर लेगा लेकिन उस खेमे को उम्मीद है कि ना तो भाजपा और ना ही उसके सहयोगी दलों की संयुक्त ताकत इतनी बड़ी होने जा रही है कि वे अपनी सरकार बना सकें। लिहाजा विरोधी दलों का मानना है कि इस बार संसद की त्रिशंकु छवि सामने आनेवाली है जिसमें विभिन्न दलों की मिली जुली ताकत को एक मंच पर लाकर ही बहुमत का आंकड़ा जुटाना संभव हो पाएगा। इसी उम्मीद में सब यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार केन्द्र में कांग्रेस और भाजपा से अलग तीसरी ताकतों को भी सरकार बनाने का मौका मिल सकता है। इसी उम्मीद में हर कोई टेढ़ा दिखाई पड़ रहा है। तभी तो चुनाव पूरा होने से पहले ही गैर भाजपाई दलों को एक मंच पर लाने की कोई भी कोशिश परवान नहीं चढ़ पा रही है। इसके लिये टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू ने दिल्ली में आकर डेरा भी डाला और सभी दलों से प्रत्यक्ष या टेलीफोनिक वार्ता भी की। उनकी कोशिश थी कि अंतिम दौर का मतदान समाप्त होने के फौरन बाद ही गैर-भाजपाई दलों की एक बैठक बुलाई जाए जिसमें भविष्य के लिये एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने का प्रयास किया जाए ताकि चुनाव परिणाम सामने आने के बाद नई सरकार के गठन में अधिक मशक्कत ना करनी पड़े। लेकिन जिन दलों को इस बात का गुमान है कि खंडित जनादेश सामने आने पर उनको अलग रखकर सरकार बनाना मुश्किल होगा वे अभी से ऐसे किसी पचड़े में पड़ कर अपनी कीमत और मोल भाव की ताकत को कम करने के लिये कतई तैयार नहीं हैं। अलबत्ता सभी विकल्प खुले रखने में ही उन्हें अधिकतम लाभ की संभावना दिखाई पड़ रही है। लिहाजा उन्होंने नायडू की कोशिशों को समर्थन देने के बजाय उनकी कोशिशों में सहभागी बनने से किनारा कर लेना ही बेहतर समझा है। लेकिन अंदरखाने इस बात का प्रयास जोरों पर जारी है कि विरोधी पक्ष के किसी भी दल को भाजपा के साथ जुड़ने के विकल्प पर विचार करने का भी मौका ना दिया जाए। इसके लिये नैतिक दबाव बनाने का काम कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी भी कर रही हैं और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भी। इसका मकसद भी साफ है कि अव्वल तो इससे अंतिम चरण के मतदान में जनता को इस बात का भ्रम दिया जा सके कि इस बार तीसरी ताकतें ही निर्णायक रहने वाली हैं और लगे हाथों सरकार गठन के लिये आवश्यक विचार-विमर्श का सिलसिला भी चलता रहे। लेकिन इसमें भाजपा ने ऐसा चारा फेंक दिया है जिसमें अब मतगणना से पहले विपपक्षी एकता की रही सही उम्मीदें भी हवा हो गई हैं। भाजपा अध्यक्ष ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत लाने और राजग के बैनर तले सरकार बनाने का दावा करने के साथ ही यह शगूफा भी छोड़ दिया है कि सरकार बनाने के क्रम में अगर समान विचारधारा वाले अन्य विपक्षी दल भी राजग के साथ जुड़ना चाहेंगे तो उन्हें भी सत्ता में साझेदार बनाने में भाजपा को कोई ऐतराज नहीं होगा। यानि विरोधी दलों को एक नया विकल्प देकर भाजपा ने अपनी जीत की हवा को अंतिम चरण तक जोरदार तरीके से आगे बढ़ाने का इंतजाम कर लिया है।