माँ : एक सुखद अनुभूति






                                      (डॉ दीपा शुक्ला)

एकाक्षर शब्द " माँ " का नाम सुनते ही जेहन में एक ऐसी सुखद अनुभूति का एहसास होता है ; मानो जीवन इंद्रधनुषी छटा से सराबोर हो गया हो , कानों में सप्तसुरों की रागिनी बज उठी हो, मन -वीणा झंकृत हो उठी हो । माँ दुखों के आतप से बचाकर शीतलता प्रदान करने वाली होती है । माँ शक्तिस्वरूपा है जो हमें नित संघर्षों को सहन करने की शक्ति प्रदान करती है ।

 

  " माँ " शब्द जिसमें सारी सृष्टि समा जाती है ।सम्पूर्ण सृष्टि का कारक माँ ही है । उसके बिना तो किसी जीव के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती है ।संसार में अगर कोई व्यक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण है तो वह सिर्फ माँ होती है ।

 

  "माँ" जननी है, शक्तिस्वरूपा है, गुरु है, दया , करुणा, ममता, क्षमा और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति है। 'माँ'  शब्द को परिभाषित कर कर सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है।

 

 माँ की महिमा को जितना भी  बखाना जाये वो कम ही है । माँ के ऋण से आज तक कोई व्यक्ति उबर नहीं पाया । माँ की महिमा से सम्बंधित एक रोचक और प्रेरक प्रसंग है -" एक बार स्वामी विवेकानंद जी से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि - संसार में माँ की महिमा को इतना ज्यादा क्यों बखाना जाता है? स्वामी जी ने उससे कहा कि - जाओ ! पाँच किलो का वजन का पत्थर लाकर उसे किसी कपडे में लपेटकर अपने पेट पर बांध लो और कल इसी समय आना, तब मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा। स्वामी जी के आदेशानुसार उसने पत्थर पेट पर बांध लिया और चला गया । पेट पर पत्थर का बोझ संभाले - संभाले काम करना, चलना - फिरना दूभर हो गया। उसी दिन शाम को वह व्यक्ति थका हारा कराहता हुआ स्वामी जी के पास पहुंचा और बोला इस पत्थर को अब और अधिक देर तक मैं पेट पर नहीं बाँध सकता । प्रश्न का उत्तर पाने के लिए इतना श्रम मैं नहीं कर सकता ।स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले -- पेट पर बंधे इस पत्थर का बोझ तुमसे एक दिन न उठाया गया , जबकि माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को नौ माह तक ढोती है और साथ में घर गृहस्थी के सारे काम भी करती है । नौ माह पश्चात प्रसव की असहनीय पीड़ा सहती है , फिर उसकी परवरिश में सारा जीवन न्यौछावर कर देती है । इसलिए माँ से बढ़कर महान इस दुनिया में और कोई नहीं है । हमारे शास्त्रों में भी माँ की महिमा को गाया गया है ---- 

        " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । "

  माँ अनंत शक्तियों की धारिणी होती है ,इसीलिए उसे ईश्वरीय शक्ति का प्रतिरूप माना जाता है । जिस व्यक्ति को माँ के आशीष वचनों का सौभाग्य मिलता है उससे अधिक धनवान व्यक्ति संसार में कोई नहीं है ।माँ की ममता का वरदहस्त एक सुरक्षा कवच का काम करता है ।

     

  वर्तमान समय में व्यक्ति भौतिकता की चकाचौंध में माँ की ममता और त्याग को भूलता जा रहा है आज की संतानें माँ के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने से जी चुराती है । बुढापे में जब माँ को सहारे की जरूरत होती है तब संताने स्वार्थवश उसकी ममता के प्रति उदासीन हो जाता है  । वह माँ द्वारा किये गए उपकारों को एक पल में भुला देता है । जो व्यक्ति अपनी माँ के प्रति अपने कर्तव्यों का वहन करता है  वह माँ की स्नेह और ममता पाकर सुखी और धनवान बनता है जीवन लक्ष्यों की ऊंचाइयां प्राप्त करता है । दूसरी ओर , जो व्यक्ति माँ की उपेक्षा कर उन्नति का मार्ग ढूंढने का प्रयास करते हैं वे हमेशा निराशा के गर्त में जाते हैं और हाथ मलते हैं ।

 

   किसी शायर ने कहा भी है ----- " किसीं भी मुश्किल का अब किसी को हल नहीं मिलता ,

                                               शायद , अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नहीं निकलता ।" 

 

  सभी संतानों को चाहिए कि अपनी माँ की कद्र करें । माँ की कद्र तो उन बच्चों से पूँछिए जिनकी माँ नहीं होती । हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी माँ को कभी दुःख न दें । माँ के मुख से निकला एक - एक आशीर्वचन बच्चों को प्रगति पथ पर अग्रसर करता है । शास्त्रों में भी कहा गया है --- "  मातृ देवो भव  । "