महा जीत के महानायक का महा शपथ






(देवानंद राय)

30 मई की शाम को जब घड़ी ने सात बजाए तो पूरे देश के कान में वह शब्द फिर से गूंजा "मैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी ईश्वर की शपथ लेता हूँँ" जिसे सुनने के लिए हर कोई बेताब था सबकी निगाहें टीवी स्क्रीन से लगाकर मोबाइल स्क्रीन पर लगी हुई थी।मानो नवभारत के नवनिर्माण के लिए पूरा देश खुद शपथ ले रहा हो।वैसे भी यह चुनाव तो मानो जनता ने खुद लड़ा, जनता ने खुद प्रचार किया और परिणाम भी जनता ने अपने आशाओं के अनुरूप ही दिया। जिस मोदी लहर को सियासी पंडित से लेकर बौद्धिक पंडितों द्वारा पिछले कुछ महीने पहले नकार दिया गया था वह इस लोकसभा चुनाव में अबकी बार मोदी सरकार से फिर एक बार मोदी सरकार के नारे के साथ प्रचंड जीत  की ऐसी सुनामी ले आया। जिससे सियासी पंडित से लेकर बौद्धिक पंडित भौंच्चक रह गये।कल तक एग्जिट पोल से लेकर ईवीएम पर सवाल उठाने वाले राजनेता हो या प्रवक्ता सबकी जुबान बंद हो चुकी है और कुछ पार्टियों ने तो अपने प्रवक्ताओं को टीवी पर बोलने से भी रोक लगा दिया है लगता है कि वे इस बार ईवीएम से नहीं टीवी से हारे हैं। पर कल जिस तरह का अभूतपूर्व शपथ ग्रहण समारोह आयोजित कर  भारत में पूरे विश्व को यह संदेश देना चाहा है की भारत ने वैश्विक शक्ति बनने का एक बड़ा कदम उठा चुका है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का शपथ ग्रहण समारोह दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रपति भवन देश के सबसे बड़े कार्यक्रम में संपन्न हुआ  राष्ट्रपति भवन में पहली बार कोई ऐसा कार्यक्रम आयोजित हुआ कि जिसमें देश के करीब 8000 लोग  एकत्रित हुए थे।राष्ट्रपति भवन में पहली बार कोई ऐसा कार्यक्रम आयोजित हुआ था जिसमें देश के सभी धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, कला और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने वाले लोगों का एक अभूतपूर्व समागम था। परंतु इस समारोह में जाने के लिए हर कोई आतुर होता है।जहां बड़ी मुश्किल से ही आमंत्रण आता है वहां ममता जी जैसे छोटी सोच रखने वाले राजनेता उस कार्यक्रम में न जाकर अपनी विनाश काले विपरीत बुद्धि के जीवंत तो होने का परिचय दे रहे हैं।वैसे यह समारोह पूरे देश विदेश अलग अलग संदेशों को और अलग-अलग नजरिए के साथ पहुंचा होगा। शपथ ग्रहण समारोह में सार्क के जगह पर बिम्सटेक देशों को बुलाना कई देशों को खटक रहा होगा जिसमें मुख्य रूप से चीन तथा पाकिस्तान है। पर यह नये भारत की तस्वीर है जो शपथ ग्रहण से ही एक्टिव मोड में रहने का संदेश दे रही है।शपथ ग्रहण समारोह मे बिम्सटेक देशों के अलावा दो अन्य देश किर्गिस्तान और मारीशस को भी आमंत्रित किया गया था सवाल यह है कि इन दो देशों को क्यों आमंत्रित किया गया। ऐसा कहा जाता है कि किर्गिस्तान प्राचीन सिल्क रूट का हिस्सा है प्राचीन सिल्क रूट कभी चीन मध्य एशिया और यूरोप के बीच व्यापार का सबसे प्रमुख रास्ता हुआ करता था। यह रास्ता भूमध्य सागर से होते हुए बंदरगाहों के द्वारा यूरोप और रोमन साम्राज्य तक पहुंचता था। बताते हैं कि कभी इसी सिल्क रूट से मार्कोपोलो चीन से इटली पहुंचा था। किर्गिस्तान शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) का भी सदस्य हैं तथा चीन के करीबी दोस्तों में शामिल है| भारत की रणनीति यह है कि भारत चीन के करीबी मित्रों को अपना मित्र बना कर चीन को मात देना चाहता है| हाल ही में किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में 21 और 22 मई को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन परिषद के विदेश मंत्रियों की बैठक में सुषमा स्वराज जी ने भी भाग लिया था यहां पर पाकिस्तान भारत के साथ शांति प्रस्ताव के लिए गिड़गिड़ा रहा था| किर्गिस्तान में ही शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का शिखर सम्मेलन आयोजित हो रहा है जिसमें प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के बाद अपनी प्रथम विदेश यात्रा के लिए जाएंगे|किर्गिस्तान बेल्ट एंड रोड फॉर्म फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (बीआरआई) में भी शामिल है| वर्ष 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस फोरम के माध्यम से पुराने सिल्क रूट को फिर से जीवित करने का एक बड़ा प्रयास किया था। जिसमें परिवहन के चार प्रमुख मार्गो में से तीन प्रमुख मार्ग बंदरगाह,हाईवे और रेल के माध्यम से चीन के तटीय इलाकों के सामानों को खाड़ी देशों में पहुंचाने से लेकर मिडिल ईस्ट और एशिया तक पहुंचाने का एक सुनियोजित प्लान था। चीन ने बीआरआई में भारत को भी निमंत्रित किया था परंतु भारत ने वर्ष 2017 तथा 2018 दोनों सम्मेलनों का बहिष्कार किया। भारत का कहना था कि यह प्रोजेक्ट भारत के संप्रभुता का उल्लंघन है। चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर(सीपेक) इसी का हिस्सा है|जो कश्मीर से होकर गुजरता है भारत को इस पर आपत्ति है| चीन हमेशा कहता है कि बीआरआई का मुख्य उद्देश्य कारोबार बढ़ाने तथा परिवहन की लागत कम करना है पर वास्तविकता कुछ अलग है बल्कि यह चीन की 21वीं सदी में पूरे एशिया में महासागर से लेकर धरती तक बादशाह बनने की एक सोची समझी चाल है।चीन ने बीआरआई के माध्यम से जियोपोलिटिक्स छेड़ रखा है। श्रीलंका, मलेशिया, थाईलैंड,पाकिस्तान, चीन की जाल में पूरी तरीके से फंस चुके हैं। जैसे श्रीलंका को विकास के नाम पर उसे इतना अरबों डालर का कर्ज़ दिया कि वह अब लौटने की स्थिति में नहीं है।उसका परिणाम उसने श्रीलंका के प्रमुख बंदरगाह पर  आधिपत्य जमा लिया है। ठीक वैसे ही दक्षिण अफ्रीका में रेलवे लाइनों को बिछाने की आड़ में यही खेल खेला जा रहा है।पाकिस्तान तो चीन के हाथों पूरी तरह बिक चुका है। हालात यह है कि चीनी मुद्रा वहां की दूसरी वैध मुद्रा बन चुकी है। चीनी भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ाई और सिखाई जा रही है। वन बेल्ट वन रोड पर चीन का दबाव पाकिस्तान पर पूरी दुनिया देख रही है। चीन के इस चाल को जवाब देने के लिए म्यांमार भारत और थाईलैंड ने मिलकर एक ट्राईलेटरल हाईवे प्रोजेक्ट किया जो चीन के आर्थिक साम्राज्यवादी बनने के कदम को रोकने और विभिन्न देशों की संप्रभुता को खत्म होने से बचाने में मददगार होगा। वर्ष 2000 में भारत ने इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर(आईएनएसटीसी) का प्रस्ताव दिया| 2002 में इस पर हस्ताक्षर हुए यह करीब 7200 किलोमीटर लंबा एक व्यापार नेटवर्क है जिसमें जल परिवहन,रेल परिवहन और हाईवे के द्वारा भारत, ईरान, रूस, अफगानिस्तान,अज़रबैजान और आर्मेनिया से होते हुए सेंट्रल एशिया तथा यूरोप को जोड़ेगा।यह भारत का एक बहुत बड़ा दूरदर्शी कदम था।शायद भारत ने पहले ही भांप लिया था कि चीन इस प्रकार के दूसरे देशों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला कोई व्यापारिक कदम उठाएगा। परंतु चीन जिस मुस्तैदी के साथ है जिस प्रकार से बीआरआई पर काम कर रहा है उसका ठीक उलट आईएनएसटीसी में हो रहा है। 2002 में हस्ताक्षरित प्रस्ताव अभी तक अमल में नहीं आ पाए।इसी कारण भारत ने नेटवर्किंग रिलेशनशिप को बढ़ावा देते हुए किर्गिस्तान से जुड़ा जो कि चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का सबसे अहम देश है। यही कारण था किर्गिस्तान को बिम्सटेक के अलावा अन्य देशों के साथ आमंत्रित करने को और मारीशस को आमंत्रित करने का सबसे बड़ा कारण है चीन के हिंद महासागर पर बढ़ते हुए प्रभाव को कम करना तथा भारत का वहां पर दखल देकर यह बतलाना की भारत की भी नजरें हिंद महासागर पर है। यही कारण है कि भारत अब हिंद महासागर के सभी द्वीपीय देशों के साथ मित्रता बढ़ाने में लगा है और इसी कारण राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2018 में मेगाडास्कर जाने वाले पहली बार राष्ट्रपति है। इसके साथ ही भारत मालदीव और सेशल्स साथ ही अपनी मित्रता बड़ा रहा है। विश्व के सभी देश सड़क परिवहन के बाद जल परिवहन को वरीयता देते हैं इसका कारण यह है कि कारोबार के लिहाज से सड़क परिवहन के बाद यह सबसे सस्ता परिवहन का माध्यम है जहां सार्क की स्थापना 1985 में हुई थी वही बिम्सटेक की स्थापना 1997 में हुई थी शुरुआत में बांग्लादेश भारत और थाईलैंड शुरुआत में नाम BIST बाद में  2004 में नेपाल और भूटान भी जुड़े बिम्सटेक की स्थापना का मुख्य कारण यह था कि एक ऐसा पड़ोसी देशों का संगठन बने जिसमें पाकिस्तान ना हो क्योंकि पाकिस्तान के कारण ही भारत के तरफ अपना व्यापार नहीं आ रहा है पाकिस्तान के कारण ही आज भारत और अफगानिस्तान सीधी सड़क परिवहन नहीं जबकि भारत पाकिस्तान और अफगानिस्तान एक साथ जुड़े हुए हैं शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान विहीन सार्क संगठन के द्वारा भारत पाक को सीधा संदेश यह देना चाहता है कि भारत के हितों की अनदेखी करना अब पाकिस्तान के लिए अच्छा नहीं होगा वही किर्गिस्तान के माध्यम से भारत चीन को प्रभाव कम करने तथा मध्य एशिया शक्ति संतुलन बनाने और शिव के एक आधिपत्य को रोकने की एक कूटनीतिक चाल को आगे बढ़ाया है एक बात तो स्पष्ट है कि एशिया में अगर चीन का दबदबा खत्म करना है तो भारत को सभी एशियाई देशों तक अपनी मित्रता और पहुंच बढ़ानी होगी यही कारण है कि भारत को अगली महाशक्ति के रूप में बनाने और विकसित रूप के रूप में आगे बढ़ने के लिए मोदी सरकार 2.0 शपथ ग्रहण समारोह से ही खुला और स्पष्ट विजन और मिशन के साथ निकल पड़ी है|