पाक के पापों का भरता घड़ा






पाकिस्तान को प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रित किये जाने के मसले पर भले ही वहां के नेताओं और बुद्धिजीवियों से लेकर मीडिया तक में भारत के खिलाफ भारी आक्रोश का माहौल हो लेकिन वास्तव में देखा जाये तो पाकिस्तान में जिस तरह के हालात हैं उसे देखते हुए उसका पूर्ण बहिष्कार करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है। खास तौर से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच कड़ी का काम करनेवाली वहां की गैर-मुस्लिम आबादी को जिस तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है उससे अगर वहां या फिर यहां के लोगों को लगता हो कि भारत इससे नैतिक दबाव में आ जाएगा तो यह उनकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। ऐसे कुकृत्यों को अंजाम दिला कर भारत की पाक नीति में बदलाव कराने की जो रणनीति अपनाई जा रही है उससे इधर के रणनीतिकारों के कानों पर जूं भी नहीं रेंगने वाली। आखिर क्यों रेंगे? जबकि बेहतर पता है कि ऐसी हरकतों को अंजाम देने वालों को कौन, क्यों व किस वजह से प्रोत्साहित कर रहा है। भारत में आम चुनाव के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लगातार यह भरोसा दिलाते रहे कि वहां के अल्पसंख्यकों यानि गैर-मुस्लिमों के हितों की रक्षा करने में उनकी सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उनका यह बयान इस संदर्भ में समझने की जरूरत है कि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस बार भारत में निजाम परिवर्तन हो जाएगा और इसी वजह से नए हुक्मरानों को पाकिस्तान नीति में परिवर्तन करने के लिये ठोस वजह देने की कोशिशों के तहत ही ऐसा कहा भी जा रहा था और इस दिशा में दिखावे के लिये कुछ कदम भी उठाए जा रहे थे। लेकिन मतगणना के पहले ही एग्जिट पोल का नतीजा सामने आने के बाद बाद जब यह साफ हो गया कि मोदी सरकार की दोबारा वापसी हो रही है तब हताश-निराश होकर पाकिस्तान ने वहां के अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी वही पुरानी नीति पकड़ ली जिसमें बदलाव का दिखावा किया जा रहा था। उसके बाद अल्पसंख्यकों खिलाफ ताबड़तोड़ कई मामले सामने आए हैं। उदाहरण के तौर पर सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक समुदाय के एक डॉक्टर के ऊपर धर्मग्रंथ को अपमानित करने का आरोप लगाकर कार्रवाई की गई है। पंजाब प्रांत में अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक जोड़े को यह आरोप लगाकर गिरफ्तार किया कर लिया गया कि उन्होंने किसी व्यक्ति को अनुचित मैसेज भेजकर ईश्वर की निंदा की है। इस सबसे बढ़कर लाहौर में स्थित सिखों के तीर्थ गुरू नानक स्थल का विध्वंस किया जाना, पाकिस्तान में पहले से ही डर के साए में घुट-घुट कर जी रहे अल्पसंख्यकों के लिए विचलित कर देने वाली घटना है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल लंबे समय से पाकिस्तान के दक्षिण-पंथी समूहों के निशाने पर हैं। नोरवाल में गुरु नानक स्थल का विध्वंस इस सूची में एक ताजा उदाहरण है। हकीकत यह है कि इस बार गुरु नानक स्थल को उन स्थानीय लोगों ने तोड़ा है जिन्हें शासन और प्रशासन का पूरा संरक्षण हासिल है। यह वजह है कि पाकिस्तान में किसी ने भी इस शर्मनाक घटना पर सवाल उठाना जरूरी नहीं समझा है। बताया जाता है कि गुरु नानक स्थल पर हमले के दौरान 15वीं शताब्दी के इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे की कीमती खिड़कियों, दरवाजों और जरूरी सामानों की चोरी भी की गई। जब इस बारे में संबंधित विभागों से सवाल किए गए तो उन्होंने चुप्पी साध ली। इस घटना ने पूरे सिख समुदाय की भावनाओं को आहत किया है, और इससे निश्चित रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच करतारपुर गलियारे की परियोजना के कारण दोनों मुल्कों के बीच कायम हो रही सांस्कृतिक सद्भावना को इससे करारा झटका लगेगा। स्थानीय लोग इस गुरुद्वारे के विध्वंस के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या पहले कभी इस तरह की घटना में पाकिस्तानी सरकार की ओर से कोई कार्रवाई की गई है? बेशक पाकिस्तान में इस घटना को लेकर सबने चुप्पी ओढ़ ली हो और शासन व प्रशासन के स्तर पर पीड़ितों को ही मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने का प्रयास किया जा रहा हो लेकिन भारत में इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। खास तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि इस मामले में पाकिस्तान के साथ सख्त लहजे में बात की जाए और उस पर इस धार्मिक स्थल को दोबारा बनवाने और इसे तोड़ने वालों को सख्त सजा देने के लिये दबाव बनाया जाए। लेकिन ऐसी मांग करने से पहले कैप्टन को यह समझना चाहिये कि अगर उनकी बात मान कर भारत सरकार ने पहलकदमी की तो इससे पाकिस्तान की वह मंशा ही पूरी होगी जिसके लिये उसने बकायदा संरक्षण देकर ऐसा कुकृत्य कराया है। वह तो चाह ही रहा है कि भारत किसी भी तरह बातचीत आरंभ करे। भले मुद्दा कश्मीर का हो या कुछ और ही क्यों ना हो। लेकिन भारत की नीति साफ है कि बोल और गोली का सिलसिला एक साथ नहीं चल सकता। जब तक पाकिस्तान से आतंक का समूल सफाया नहीं होता तब तक उससे कोई बातचीत नहीं की जाएगी। भारत के इस रूख से पाकिस्तान का निजाम तिलमिलाया भी है और घबराया भी क्योंकि इसके कारण ना सिर्फ दुनिया भर में उसकी फजीहत हो रही है बल्कि भारत द्वारा पूर्ण बहिष्कार की नीति अपनाए जाने के कारण वह पूरी तरह अकेला पड़ गया है और भीख का कटोरा हाथ में लेकर दर-दर भटकने की नौबत आ गई है। इसलिये जब किसी भी तरह भारत से बातचीत का सिलसिला आरंभ नहीं हो रहा तब उसने वहां के अल्पसंख्यकों पर कहर बरपाना आरंभ कर दिया है ताकि संवेदना का दबाव भारत पर बनाया जा सके। पाकिस्तान सरकार की इन्ही नीतियों की वजह से वहां अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही पाकिस्तान के बहुसंख्यक लोग भी अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का कोई मौका नहीं चूक रहे। दरअसल पाकिस्तान की कुल आबादी में करीब तीन मिलियन की हिस्सेदारी रखने वाले हिन्दु, क्रिश्चियन और सिख समुदायों के लिए अपनी रीति-रिवाज, कर्मकाण्ड, आस्था और विश्वास को मानना दिनोंदिन लगातार मुश्किल होता जा रहा है। अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने के लिए पाकिस्तान के पास सबसे जरूरी उपकरण 'ईश निंदा कानून' है, जिसके तहत इस्लाम के सिद्धान्तों या शिक्षाओं का अपमान करने का आरोप लगाकर अल्पसंख्यकों पर कार्रवाई करना बेहद सामान्य है। बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों पर ईश-निंदा कानून लगाकर कार्रवाई की जा चुकी है। काफी आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद पाकिस्तान इस कठोर और भेदभावपपूर्ण कानून के तहत अल्पसंख्यकों पर लगातार कार्रवाई कर रहा है। लेकिन भारत पर भावनात्मक दबाव बनाने की उसकी कोई भी रणनीति सफल नहीं हो सकती बल्कि इससे वह अपने प्रति गुस्से और नफरत में ही इजाफा कर रहा है। उसके पापों का घड़ा वास्तव में भरता जा रहा है लेकिन वह सचेत होने का नाम ही नहीं ले रहा। लिहाजा इंतजार अब इस घड़े के फूटने का ही है जिसके विस्फोटक प्रवाह को झेल पाना उसके लिये मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा।