सकारात्मकता की आवश्यकता






रामचरितमानस में तुलसीदास ने लिखा है कि 'आपतकाल परखिये चारी, धीरज धर्म मित्र और नारी।' सच पूछा जाए तो मौजूदा वक्त कांग्रेस के लिये किसी आपतकाल से कम नहीं है। पार्टी में वह हो रहा है जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं होगी। एक तरफ संगठन के हर स्तर से लेकर कांग्रेस शासित सूबे की सरकारों में भी इस्तीफों का अंबार लग रहा है वहीं दूसरी ओर किसी को आगे की राह ही नहीं सूझ रही है। राहुल गांधी ने कोप भवन में डेरा डाल दिया है जबकि नवनिर्वाचित सांसदों की बैठक बुलाकर संसदीय दल के नेता का चयन करने की औपचारिकता निभाने के लिये भी कोई आगे नहीं आ रहा है। पार्टी के शीर्ष संचालक परिवार ने हताश और निराश होकर अपना हाथ पीछे खींचने की बात कह दी है जबकि किसी अन्य चेहरे को आगे करके संगठन को मजबूती से संचालित करने का हौसला दिखा पाना कांग्रेसियों के बूते में ही नहीं है। यानि चारों तरफ भारी अफरातफरी और अनिश्चितता का माहौल है और अब संगठन को किस दिशा में आगे ले जाना है इसकी कोई राह ही नहीं निकल रही है। वास्तव में देखा जाये तो ऐसे ही वक्त में आवश्यकता है श्रद्धा, सब्र, संतोष और विश्वास की। श्रद्धा- जनता जनार्दन के आदेश के प्रति, सब्र- कालचक्र के दोबारा घूमने के प्रति, संतोष- पिछली बार के मुकाबले आठ सीटें अधिक जीतने के प्रति और विश्वास- पुरूषार्थ के बल पर इस विषम परिस्थिति से उबर जाने के प्रति। लेकिन माया-मोह, लोभ और और अहंकार ने कांग्रेस को इस कदर जकड़ा हुआ है कि उसे सिर्फ आज, अभी और इसी वक्त की तस्वीर नजर आ रही है। उसे यह समझ नहीं आ रहा कि अगर अपनी कमियों, खामियों व गलतियों को सही तरीके पहचान कर उसमें सुधार कर लिया जाए और सकारात्मक सोच व रचनात्मक रणनीति के साथ आगे बढ़ा जाए तो एक बार फिर सफलता का सिलसिला शुरू करना कतई मुश्किल नहीं है। सच पूछा जाए तो इस बार की हार पार्टी के जीत के कई द्वार खोल सकती है बशर्ते इसकी तह में जाकर विस्तृत विवेचना करने और उसके अनुरूप आगे कदम बढ़ाने का प्रयास किया जाए। इसके लिये सबसे पहली आवश्यकता है सकारात्मक नजरिये की। यह मान लेना अधूरा सच ही होगा कि सिर्फ वंशवाद और वरिष्ठ नेताओं की निष्क्रियता के कारण ही पार्टी को इस कदर शर्मनाक शिकस्त का सामना करना पड़ा है। पूरा सच यह है कि इस हार के लिये कई कारण जिम्मेवार रहे हैं जिसमें मुख्य है व्यावहारिक हेकड़ी, नीतिगत असमंजस और रणनीतिक अनिश्चितता। व्यावहारिक हेकड़ी के कारण ही इस बार के लोकसभा चुनाव में अगर उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड सरीखे सूबों में कांग्रेस को अकेले दम पर चुनाव लड़ना पड़ा। इन तमाम सूबों में भाजपा विरोधी वोटों के बिखराव को टाला नहीं जा सका तो इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस की हेकड़ी ही रही। अपनी मौजूदा कमजोरी को स्वीकार करते हुए गैर-भाजपाई दलों को साथ लेकर आगे बढ़ने के बजाय उसने मनमानी राह पकड़ी जिसके कारण ना सिर्फ खुद को नुकसान हुआ बल्कि भाजपा के खिलाफ खड़ी ताकतों को भी नुकसान उठाना पड़ा। अकेले यूपी में ही 12 से 14 सीटों पर महागठबंधन को कांग्रेस के कारण हार का सामना करना पड़ा जबकि अन्य सूबों में कांग्रेस को नुकसान हुआ। इसी प्रकार नीतिगत अनिश्चितता का आलम यह रहा कि एक मंच से निश्चित आय योजना का हवाला देकर भरोसा दिया जा रहा था कि अब होगा न्याय और दूसरी ओर इसके लिये पैसे का जुगाड़ करने की बात पर कभी मध्यम वर्ग को दुहने की बात कही जा रही थी तो कभी उच्च वर्ग को चूसने की। कभी मंदिर जाने, जनेऊ दिखाने और गोत्र बताकर ब्राह्मण दिखने की कोशिश की जा रही थी तो कभी चुपके से अल्पसंख्यक बुद्धिजीवियों को बुलाकर कान में फूंका जा रहा था कि मुसलमानों की पार्टी तो कांग्रेस ही है। एक तरफ राफेल सौदे के मामले को तूल देकर चैकीदार को चोर बताया जा रहा था तो दूसरी तरफ इसी मामले में अदालत से माफी भी मांगी जा रही थी और यह भी कहा जा रहा था कि मामले से संबंधित पूरी तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है। एक तरफ सन् 1984 में हुए दंगे के आरोपी कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया और दूसरी तरफ सैम पित्रोदा के 'हुआ तो हुआ' बयान से हो रहे नुकसान को रोकने के लिये सिख विरोधी दंगे की भत्र्सना की जा रही थी। इस तरह की नतिगत अनिश्चितता ने मतदाताओं के मन में कांग्रेस के लिये अविश्वास का भाव भर दिया और जमीन पर पार्टी को लेकर गंभीरता का अभाव रहा। इसके अलावा रणनीतिक अनिश्चितता का आलम यह रहा कि कांग्रेस किसी भी मसले पर सरकार को घेरने की गंभीर कोशिश करती नजर ही नहीं आई। उल्टे हुआ यह कि मुद्दे भाजपा देती रही और उसमें उलझकर रह गई कांग्रेस। जब राष्ट्रवाद का ज्वार उठा हो तब घोषणापत्र में पाकिस्तान से रिश्ते सामान्य करने की बात कहना, देशद्रोह की धारा को ही समाप्त करने का वायदा करना और अलगाववादियों को मुख्यधारा में लाने का भरोसा देना तो आत्मघाती ही माना जाएगा। अपने घोषणापत्र की सकारात्मक बातों और न्याय योजना की घोषणा को मजबूती से सामने रखने के बजाय मोदी पर निजी हमले करना और नकारात्मक मुद्दों में उलझकर रह जाना भी कांग्रेस के लिये घातक रहा। बहरहाल जो हुआ वह हो गया। अब भविष्य के लिये जरूरी है कि सही, सकारात्मक व रचनात्मक राह पकड़ी जाए ताकि मतदाताओं के विश्वास और भरोसे को जीता जा सके। कांग्रेस की वरिष्ठतम मार्गदर्शक और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानि संप्रग की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने मतदाताओं, समर्थकों व शुभचिंतकों को लिखे सार्वजनिक पत्र में बेलाग शब्दों में कहा भी है कि आने वाला समय कांग्रेस के लिये बेहद चुनौतीपूर्ण है लेकिन मतदाताओं के समर्थन और विश्वास की शक्ति के सहारे कांग्रेस हर चुनौती को पार करेगी। जरूरत है इसी सोच और जज्बे पर अमल करने की। वर्ना चेहरे में बदलाव और नकारात्मक आरोप-प्रत्यारोप से कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला है। आखिर इन्हीं चेहरों ने बीते दिनों विधानसभा चुनावों में जीत दिलाई थी और इन्ही चेहरों के दम पर कांग्रेस ने 2004 से 2014 तक के कालखंड में लगातार दस साल तक केन्द्र में सरकार भी चलाई है। सफलता की यही गाथा दोहराने की पूरी क्षमता इन चेहरों में है बशर्ते नीतियों में आवश्यक तब्दीली कर ली जाए।