स्वस्थ समाज का निर्माण सांप्रदायिक भेदभाव से हटकर

देश और दुनिया में किसी भी प्रकार के भेदभाव की इजाजत नहीं है। सांप्रदायिक भेदभाव को समाप्त कर हम प्रगति और विकास का मार्ग प्रशस्त करते है। हमें सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखना चाहिए। यही देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है और सभी समुदायों के लोग एक-दूसरे के साथ हिल-मिल कर रहते हैं। हमें धर्म, जाति की सीमा से परे राष्ट्र हित में कार्य व्यवहार करते हुए राष्ट्रीय एकता व अखंडता बनाये रखने का भरसक प्रयास करना चाहिए। इसी में सम्पूर्ण मानवता का हित है। पहले दुनिया के अनेक देश धार्मिक और नस्लीय भेद भाव के शिकार थे। मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ भेदभाव को भी तिलांजलि देने पर वे देश आज चहुमुखी प्रगति कर रहे है। दुनिया में सांप्रदायिक भेदभाव बहुत आम है और यह कोई नई बात नहीं है, इसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं। आज की दुनिया में सांप्रदायिक भेदभाव को न केवल एक समुदाय से दूसरे समुदाय की तुलना करके देखा जाता है, बल्कि यह जाति, जाति, लिंग, और रंग आदि से भी पहचाना जाता है। सांप्रदायिक भेदभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए विनाशकारी है।
संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास समाधान नेटवर्क के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत विश्व खुशी सूचकांक में 156 देशों में से 140 वें स्थान पर पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश से पीछे है। वे इसे विभिन्न कारकों के अनुसार मापते हैं जो जीवन प्रत्याशा, सामाजिक समर्थन, आय, स्वतंत्रता, विश्वास, स्वास्थ्य और दूसरों के बीच उदारता निर्धारित करते हैं।
हमारे देश में राजनीतिक दल इस एजेंडे का उपयोग अपने लाभ के साधन के रूप में या वोट बैंक के लिए 5 साल की सरकार बनाने के लिए कर रहे हैं, लेकिन वे यह नहीं सोच रहे हैं कि हम एक लोकतांत्रिक देश के रूप में विश्व स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा खो रहे हैं।
आज की दुनिया में लोग धर्म और समुदाय की गलत व्याख्या करते हैं, उन्हें लगता है कि समुदाय उनका धर्म है लेकिन यहां अंतर है। अगर कहीं 100 नकारात्मक सोच है तो वहा 1 सकारात्मक जरूर होगी। 2500 साल पहले गौतम बुद्ध ने हमें सिखाया था धर्म के बारे में, उन्होंने कहा था, ष्धर्म जो सबका है, सभी के लिए है, प्रकृति किसी भी जीवित और निर्जीव चीजों में पक्षपात नहीं करती है, उदाहरण के लिए- आग का काम जलना है और जलाना और बर्फ का स्वभाव ठंडा करना अगर कुछ भी इनके संपर्क में आता है तो वे अपनी प्रवृति के अनुकूल कार्य करेगी।
तो क्यों हम इंसान साम्यवाद में इतने असहिष्णु हैं।
हमें इस बात पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि, हम अपने समाज में इस सांप्रदायिक असंतुलन को कैसे सुधार सकते हैं, क्योंकि सब कुछ हमारे हाथ में है, अब यह सोचने की बारी है कि किसका समर्थन करना है, क्या हम समर्थन करने जा रहे हैं, हमारे कुछ राजनीतिक पंडितों का या महान गौतम बुद्ध के विचार का। समाज में चल रही बुराइयों से बचने के लिए हमें हर जाति व धर्म के लोगों के साथ मिल जुलकर रहना चाहिए। हमारे देश में विभिन्न जाति, धर्म व संप्रदायों के लोग रहते हैं। सभी को एक माला की तरह पिरो कर रखने के लिए कौमी एकता सप्ताह मनाया जाता है ताकि भाईचारे को बढ़ावा मिले। देश के विकास के लिए सांप्रदायिक सौहार्द को जरुरी है। भारत का संविधान स्पष्ट रूप से धर्म, जाति या लिंग के बावजूद समान नागरिक के रूप में व्यवहार किए जाने के अधिकार को रेखांकित करता है।
अपनी वाणी और तेज से दुनिया को चकित करने वाले विवेकानंद ने सभी मनुष्यों और उनके विश्वासों को महत्व देते हुए धार्मिक जड़ सिद्धांतों और सांप्रदायिक भेदभाव को मिटाने का संदेश दिया। हमें अपने महापुरुषों के सन्देश को आत्मसात कर स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए कार्य करना चाहिए जो किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक भेदभाव से सर्वथा दूर हो। मानव जाती का कल्याण इसी में निहित है।