विपक्ष ने अपनी संभावित हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा

(बाल मुकुन्द ओझा)


चुनाव नतीजे आने से पहले ही ईवीएम को लेकर घमासान मचा हुआ है। विपक्ष ने अपनी संभावित हार का ठीकरा आखिर ईवीएम पर फोड़ना शुरू कर दिया जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही थी। 22 विपक्षी दलों ने एग्जिट पोल के अनुमानित परिणामों में फिर एक बार मोदी सरकार की भविष्यवाणी को लेकर अपना सारा गुस्सा ईवीएम मशीनों पर उत्तार दिया है। अभी लोकसभा चुनाव के सिर्फ एग्जिट पोल आएं हैं लेकिन ईवीएम पर सवालों का जिन्न फिर बाहर निकल आया है. कांग्रेस सहित विपक्षी दल ईवीएम पर शोर मचा रही है। कुछ नेताओं ने खून खराबे की धमकी देना भी शुरू कर दिया है। एग्जिट पोल के बाद और लोकसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले विपक्षी दलों ने एक बार फिर चुनाव आयोग की कार्रवाई और ईवीएम पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं
मंगलवार को विपक्षी दलों ने एक बैठक कर अपनी नीति तैयार की और चुनाव आयोग जाकर अपना विरोध व्यक्त किया। भले ही एग्जिट पोल्स में बीजेपी की सरकार बताई गई है, लेकिन विपक्षी दल इसे खारिज करते हुए गैर-एनडीए सरकार के गठन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। विपक्षी नेताओं ने एग्जिट पोल्स को गलत करार देते हुए बीते दौर के कई उदाहरणों को गिनाया है। इसके अलावा हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के चुनावों की भी चर्चा की जा रही है, जहां एग्जिट पोल्स पूरी तरह से गलत साबित हुए। चुनाव नतीजे आने से पहले ही ईवीएम को लेकर घमासान मचा हुआ है। इस मामले में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में 22 विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात की। उन्होंने माँग की हर बूथ पर रखे गए 5 वीवीपैट के वोटों की गिनती पहले की जाए और उनका मिलान ईवीएम मशीनोें के नतीजों से किया जाए। इसके ठीक पाए जाने के बाद ही आगे की गिनती हो।
दूसरी तरफ भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फिर एक याचिका खारिज कर ईवीएम पर आरोपों को सिरे से नकार दिया है। वहीँ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुकर्जी ने चुनाव आयोग की प्रशंसा कर उसकी कार्यप्रणाली को संदेह से परे बताया है। लगता है अपनी आसन्न हार से बोखला कर विपक्ष ने सम्पूर्ण चुनाव प्रणाली को ही अपने लपेटे में ले लिया है। दूसरी तरह भाजपा का कहना है पिछले साल जिन राज्यों में कांग्रेस जीती वहां ईवीएम पर संदेह जारी नहीं किया यह विपक्ष का डबल स्टैण्डर्ड है जो लोकतंत्र के लिए किसी भी हालत में शुभ नहीं है।
भारत में पहली बार ईवीएम का प्रयोग 1982 में केरल से शुरू हुआ था। भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न होती है। पुराने कागजी मतपत्र प्रणाली की तुलना में ईवीएम के द्वारा वोट डालने और परिणामों की घोषणा करने में कम समय लगता है। भारत में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के 70-पारुर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न होती है। एक पायलट परियोजना के तौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में 543 में से 8 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता-सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपीएटी) प्रणाली वाले ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। ईवीएम का आविष्कार 1980 में एम.वी. हनीफा ने किया था। इसे सबसे पहले 1990 में तमिलनाडु के 6 शहरों में आयोजित सरकारी प्रदर्शनी में जनता ने देखा. फिर चुनाव आयोग ने इसके उपयोग पर विचार किया। पहली बार इसका उपयोग 1998 में केरल के नार्थ पारावूर विधानसभा क्षेत्र के लिए होने वाले उपचुनाव के कुछ मतदान केंद्रों पर किया गया. केंद्र में कांग्रेस सरकारों के दौरान भी ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल बढ़ा. 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से देश में प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ईवीएम का उपयोग होने लगा। 1989 में “इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड” के सहयोग से भारत में ईवीएम बनाने की शुरूआत की गई थी।
एक ईवीएम में दो भाग होते हैं- नियंत्रण इकाई और मतदान इकाई। दोनों भाग एक पांच मीटर लंबे केबल से जुड़े होते हैं। नियंत्रण इकाई, “पीठासीन अधिकारी” या “मतदान अधिकारी” के पास रहता है जबकि मतदान इकाई को मतदान कक्ष के अंदर रखा जाता है। मतदाता को मतपत्र जारी करने के बजाय नियंत्रण इकाई के पास बैठा अधिकारी मतदान बटन को दबाता है। जिसके बाद मतदाता “मतदान इकाई” पर अपने पसन्द के उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के सामने अंकित नीले बटन को दबाकर मतदान करता है। ईवीएम में नियंत्रक के रूप में स्थायी रूप से सिलिकन से बने “ऑपरेटिंग प्रोग्राम” का इस्तेमाल किया जाता है। एक बार नियंत्रक का निर्माण हो जाने के बाद निर्माता सहित कोई भी इसमें बदलाव नहीं कर सकता है।