आग का यह तांडव आखिर कब तक


         (डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा)


सूरत में अभी आग के तांडव की लपटे बुझी ही नहीं है कि देश के कोने-कोने खासतौर से खेत खलिहानों और कल-कारखानों से लगभग प्रतिदिन आगजनी के समाचार सामने आ रहे हैं। हांलाकि इस साल बड़ा हादसा सूरत का रहा हैं जिसमें नौनिहालों की जीवन लीला समाप्त हो गई और जिन परिवार वालों ने अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के सपने संझोये कुछ सीखने के लिए कोचिंग संस्थान मेें भेजा था उन्हें क्या पता था कि उनमें से कई बच्चें आग के तांडव के शिकार हो जाएंगे। यह केवल उदाहरण और इस मौसम में आग के तांडव की गंभीरता को समझने के लिए है कि जयपुर में ही एक समाचार पत्र के अनुसार शहर में प्रतिदिन ओसतन चार आग लगने की घटनाएं सामने आ रही है। यह सही है कि आग की घटनाएं गरमी के मौसम में अधिक होती है। यह भी सही है कि आग लगने का प्रमुख कारण जो बताया जाता है या सामने आता है वह बिजली के शार्टसर्किट को बताया जाता है। शहरों में घरों या संस्थानों में या कल कारखानों में अधिकांश आग की घटनाओं का प्रमुख कारण शार्ट सर्किट उभर कर आता है और फिर कुछ छोटे बड़े कारण ऐसे हो जाते हैं जिससे जन हानि नहीं भी हो तो अरबों रुपए की संपत्ति स्वाहा हो जाती है। आखिर आग के कारण और उनके समाधान के प्रति आपदा प्रबंधन संस्थानोें व नगरीय निकायों को गंभीर होना ही पड़ेगा।
दरअसल आज घर हो या बाहर निर्माण सामग्री में ज्वलंनशील पदार्थों का अधिक उपयोग होना है। फाल सिलिंग व साउण्ड पू्रफ के नाम पर लकड़ी का बेतहासा उपयोग होता है। पानी की लाइन तक अब प्लास्टिक की डाली जाने लगी है। इसके अलावा जो अन्य चीजें उपयोग में आती है उनकी ज्वलनशीलता अधिक होती है। इसके साथ ही घरों या संस्थानों में कबाड़ होना आम है और कई बात तो यह कबाड़ की आग ही विकराल रुप ले लेती है और ऐसे में छोटी सी ंिचंगारी तांडव का रुप ले लेती है। अरबों रुपयों की संपत्ति जल के राख हो जाती है। आसपड़ोस और जब तक आग पर काबू नहीं पा लिया जाता तब तक लोगों की सांस सांसत में फंसी रहती है वह अलग। गरमी के मौसम में हवा की तीव्रता के साथ ही तापमान में अधिकता के कारण आग बहुत जल्दी फैलती है और उस पर काबू पाना आसान नहीं रहता।
आखिर आधुनिकता और अधिक साधन संपन्न होने की ड़ीग भरते समाज में इस तरह की आए दिन होने वाली आगजनी शर्मनाक नहीं तो और क्या है? जब कोई भी मल्टी स्टोरी या कल कारखाना तैयार होता है तो साफ तौर से फायर एनओसी लिए जाने के सरकारी आदेश होने के बाद इस तरह की घटनाएं क्यों होती है? आखिर इसके पीछे कोई ना कोई लापरवाही तो साफ दिखाई देती है। शार्टसर्किट होने का मतलब साफ है कि बिजली के जो तार या उपकरण उपयोग में लाए जा रहे हैं वह सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं है। ऐसे में अमानक उत्पादों को बाजार में आने देने और चंद लाभ के लिए लोगों की जान में सांसत ड़ालने वालों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं होती। सूरत की घटना में तो साफ हो जाता है कि इमरजेंसी रास्तें का वैधानिक प्रावधान होने के बावजूद उस इमारत में इमरजेंसी सीढ़ियां ही नहीं थी। आखिर इस तरह की बिल्डिंग को बिना देखे कैसे एनओसी जारी हुई यह विचारणीय व व्यवस्था को चुनौती देता सवाल है। देश भर में शार्ट सर्किट से होने वाली आग की घटनाओं के बावजूद अमानक या सुरक्षा मानकों पर खरे होने के दावों के साथ उपलब्ध कराए गए वायर व अन्य उपकरण निर्माताओं के खिलाफ कोई कार्यवाही सामने नहीं आई है। इसी तरह से आग बुझाने के साधनों का होना अनिवार्यता होते हुए भी इस तरह के साधन उपलब्ध नहीं होते, ऐसे में सरकारी मशीनरी पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इसी तरह से स्थानीय निकायों में आग पर काबू पाने या गगनचुंबी इमारतों से सुरक्षित बाहर निकालने की साधनों का अभाव भी दुर्भाग्यपूर्ण माना जाएगा। बिलकुल साफ होना चाहिए कि किसी शहर या कस्बे में स्थानीय प्रशासन द्वारा सबसे अधिक उंचाई वाली बिल्डिंग की अनुमति दी जाती है तो उतनी उंचाई से लोगों को निकालने का साधन होना अनिवार्य होना चाहिए। इसके अलावा अन्य साधनों का होना भी जरुरी है। मण्डियों में खुले में अनाज पड़ा रहता है। और छोटी सी चिंगारी हजारो टन अनाज को स्वाहा कर देती है तो इसके लिए प्रशासन दोषमुक्त नहीं हो सकता। पानी की कमी से पूरा देश जूझ रहा है ऐसे में आग बुझाने के साधनों में खासतौर से दमकल के लिए भी पानी की कमी होना स्वाभाविक है। ऐसे में अग्नि शमन के साधनों और सुरक्षा उपायों की व्यवस्था पहले ही हो तो बर्बादी से रोका जा सकता है।
दरअसल गगनचुंबी इमारतों, माॅल्स आदि को मंजूरी देते समय सुरक्षा मानकों पर ध्यान देना जरुरी है। वहीं अमानक वस्तुओं के उपयोग पर रोक लगाने के साथ ही कोई भी उत्पाद यदि अमानक पाया जाता है तो प्रशासन को निर्माताओं पर भी सख्त कार्यवाही सुनिश्तिच करें ताकि इस तरह की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकें। इसी तरह से इस तरह की बिल्डिंगों में वैकल्पिक रास्ते होना जरुरी होना चाहिए ताकि अचानक होने वाली घटना की स्थिति में उस पर आसानी से काबू भी पाया जा सके और और जन-धन की हानि को रोका जा सके। सूरत की घटना से साफ हो जाता है कि बहुमंजिली इमारत होने के बावजूद बच्चों को बचाव के लिए कोई रास्ता नहीं मिला और छत की और भागने और वहां से कूदने को मजबूर होना पड़ा आखिर यह स्थिति कैसे आई यह अपने आपमें विचारणीय है। दरअसल इस तरह की घटनाओं के लिए सरकार या प्रशासन को ही दोष देना ठीक नहीं माना जा सकता अपितु सुरक्षा साधनों की व्यवस्था के लिए संस्था प्रबंधन की भी जिम्मेदारी तय करनी होगी। कोई उत्पाद खासतौर से बिजली का उपकरण अपने दावें के विपरीत अमानक निकलता है तो ऐसे उत्पाद निर्माताओं पर भी कड़ी सजा का प्रावधान होना चािहए। आखिर कब तक दूसरों की गलती या शार्ट सर्किट के नाम पर जन-धन हानि को देखा जाता रहेगा।