बच्चों को छलनी करती बुलिंग

(भूपेश दीक्षित)


बच्चा अचानक से डिप्रेशन में रहने लग गया है, गुमसुम रहता या फिर छोटी -2 बात पर बहुत रोता है तो ये बुलिंग के लक्षण है। हाल ही केंद्रीय मंत्री समृति ईरानी की बेटी बुलिंग की शिकार हुई हुई जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई। स्मृति ईरानी द्वारा इन्स्टाग्राम पर अपनी बेटी के लिए लिखी गयी एक पोस्ट खूब वायरल हुई जिसमें उन्होंने अपनी बेटी के साथ पढने वाले एक लड़के को जमकर डांट पिलाई है । यह पूरा मामला बुल्लिंग से जुड़ा हुआ है और एक जागरूक अभिभावक होने के नाते स्मृति ईरानी ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है जिसके लिए वे शाबाशी के पात्र है । किन्तु क्या सभी अभिभावक अपने बच्चों के साथ स्कूल में होने वाली विभिन्न प्रकार की बदमाशी या छेड़छाड़ को लेकर जागरूक है ? शायद नहीं, तभी तो कुछ दिनों पहले लखनऊ, गुरुग्राम से लेकर यमुनानगर में घटित होने वाली घटनाओं से पूरा देश हिल गया था किन्तु शायद इन घटनाओं से किसी ने सबक नहीं लिया । भागदौड़ वाली जिंदगी में खूब रुपये कमाकर बच्चों का स्कूलों में दाखिला तो करवा दिया किन्तु क्या किसी भी अभिभावक ने ये जानने की कोशिश की जिन स्कूलों में उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े का दाखिला करवाया है उन स्कूलों में एंटी-बुल्लिंग गाइडलाइन्स अपनाई जा रही है या नहीं ? क्या इससे सम्बंधित स्कूलों में कोई कमिटी गठित है या नहीं ?
जुलाई माह से नए शैक्षणिक सत्र चालू हो रहे है । स्कूलों में बच्चे नए दोस्त बनायेंगे, अपने साथ वालों के साथ बातचीत करेंगे, घुलेंगे-मिलेंगे जिसका असर उनके आने वाले जीवन पर पड़ने वाला है । सहपाठियों द्वारा की गयी बदमाशी का असर किसी भी बच्चे के कोमल मन को छलनी कर सकता है । चाहे लड़का हो या लड़की दोनों ही बुल्लिंग के मामलों में बराबरी पर है । जहाँ लड़के एकदूसरे के साथ शारीरिक हिंसा और धमकी के शिकार हो रहे है वहीँ लड़कियां अपने शरीर और रंग-रूप पर कसने वाली फब्तियां, छेड़खानी, अफवाहों व भावुकता का शिकार हो रही है । यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हर वर्ष 13 करोड़ बच्चे बुल्लिंग का अनुभव करते है । रिपोर्ट के अनुसार 13 से 15 वर्ष के बीच के 3 छात्रों में से 1 यानी कि 33 प्रतिशत बच्चों को बुल्लिंग का कड़ा अनुभव है । रिपोर्ट में इथोपिया, भारत, पेरू और विएतनाम की स्कूलों में जाने वाले बच्चों ने बताया कि उनके साथ स्कूल में उनके शिक्षक व साथियों द्वारा उन्हें पीटा जाता है व उनके साथ गाली-गलौच की जाती है, जिसके कारण उन्हें स्कूल जाना पसंद नहीं है । बुल्लिंग चाहे किसी भी रूप में हो इसका सीधा असर बच्चे की पढाई, शरीर, दिमाग और आत्मसम्मान पर पड़ता है । कोम्पेरीटेक रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में सबसे अधिक भारतीय बच्चे साइबर बुल्लिंग का शिकार होते है ।
बच्चे इस नई दुनिया से अनजान है । उन्हें नहीं पता की उनके साथ बुल्लिंग की घटना घटित होने पर उन्हें क्या करना चाहिए ? ऐसे में अभिभावकों, शिक्षकों, सरकारों, गैर-सरकारी संगठनो और समाज का कर्त्तव्य बन जाता है कि वे बच्चों को हिंसा से दूर रखे, उन्हें सुरक्षित वातावरण प्रदान करें, उनके साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताये, उनकी मन की बातें बिना किसी भेदभाव के सुने, उन्हें जीवन कौशल शिक्षा और नैतिक शिक्षा से अवगत करवाएं, उन्हें साहित्य और संस्कारों से जोड़े । किन्तु इतना ध्यान रहे कि हमें बच्चों को कुछ सिखाने की जरुरत नहीं है सिर्फ उन्हें सही मार्ग दिखलाने की जरुरत है, रस्ता उन्हें स्वयं तय करना और अगर कहीं बदलाव और सीखने की जरुरत है तो वो हमें है क्यूंकि बच्चें हमारा ही दर्पण है । यदि समय रहते यह सब नहीं किया गया तो आने वाले समय में हमें और अधिक कुंठित, हिंसक, भयभीत और मेला-कुचेला बचपन देखने को मिलेगा जिसे देखने से बेहतर है हम सभी अंधे हो जाए ।