नयी दिशा की ओर नड्डा का इशारा

भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किये जाने के बाद जगत प्रकाश नड्डा ने पहली बार पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जो बाते कही हैं वह वाकई महत्वपूर्ण भी हैं और सारगर्भित भी। दिल्ली प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने जिस दिशा में भाजपा को ले जाने का इशारा किया है उस झरोखे से झांकने का प्रयास करें तो भविष्य में भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे का तेवर व कलेवर कैसा होगा इसकी एक हल्की सी झलक अवश्य दिखाई पड़ रही है। हालांकि अभी जिन हालातोेें में नड्डा को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर बिठाया गया है उसे देखते हुए यह उम्मीद करना भी गलत ही होगा कि वे पार्टी को अपने मनमुताबिक दिशा में आगे ले जाने और अपने सपनों के सांचे में ढ़ालने का प्रयास करने की खुलकर कोशिश करेंगे। बल्कि ना तो वे ऐसा करेंगे और ना ऐसा करने की जरूरत है। ऐसा करना उनके राजनीतिक भविष्य की उम्मीदों को मटियामेट कर सकता है। लिहाजा बेहतर यही है फिलहाल वे उसी राह को अपनाएं जिस पर पार्टी बीते वर्षों से चल रही है। एक छोटा सा विवाद मामूली सी गलती भाजपा में कितनी महंगी साबित होती है इसकी सबसे बड़ी मिसाल मनोहर पर्रिकर के मामले में बीते दशक में ही दिख गयी थी जब पार्टी का नेतृत्व संभालने से ऐन पहले उनके मुंह से निकल गया था कि लालकृष्ण आडवाणी तो 'सड़ा अचार' हैं। उस एक शब्द की मारकता इतनी प्रबल रही कि भाजपा अध्यक्ष के पद की दावेदारी और राष्ट्रीय राजनीति में आगे आने की उनकी तमाम उम्मीदों का पत्ता ही कट गया। वह भी तब जबकि यह सबको मालूम था कि गैर हिन्दी भाषी पर्रिकर ने जिस भाव के साथ अपनी बात कही थी उसका सड़ा अचार से कोई लेना देना ही नहीं था बल्कि आडवाणी की शान में गुस्ताखी करने के बारे में तो पर्रिकर सोच भी नहीं सकते थे। लेकिन चुंकि उदाहरण के तौर पर गलत शब्दों का चयन कर लिया जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा। इस लिहाज से नड्डा के लिये बेहतर यही रहेगा कि फिलहाल वे पूरी तरह सजग रहें और नाप-तौल कर ही अपनी बात रखें। लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद चुंकि वे अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे आ गए हैं और अध्यक्ष बनने तक के समय में उनकी हर कथनी और करनी पर हर स्तर पर बारीकी से विवेचना होना स्वाभाविक है लिहाजा उनके समक्ष यह चुनौती भी है कि उनके पास खामोशी का लबादा ओढ़ लेने का विकल्प ही उपलब्ध नहीं है। बल्कि उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष के कार्यकाल को इस खूबसूरती से निभाना होगा ताकि जमीनी स्तर तक कार्यकर्ताओं को यह संदेश व संकेत प्रसारित किया जा सके कि आखिर आगामी बदलावों के बाद पार्टी की दिशा क्या रहनेवाली है और यह बदलाव करना क्यों आवश्यक है। इस लिहाज से देखा जाये तो एक मंझे हुए राजनेता के रूप में नड्डा ने आज जिस खूबसूरती के साथ बिना साफ व स्पष्ट शब्दों में कुछ कहे ही सांकेतिक लहजे में सबकुछ कह दिया वह वाकई काबिले तारीफ है। कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर पहली बार कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के क्रम में उन्होंने जो बातें कहीं है उसे सतही तौर पर देखें तो इसमें कुछ भी नया नहीं है, बल्कि सब कुछ सहज व सामान्य है। बल्कि सरसरी तौर पर तो यही समझ में आता है कि अगर नड्डा की जगह अमित शाह होते तो ये भी वही बातें कहते। लेकिन यह सच नहीं है। सच तो यह है कि शाह की सोच मोदी तक ही सिमटी हुई है और उनकी बातों में आज तक मोदी से आगे का कभी कोई संकेत भी नहीं मिला है। जबकि नड्डा ने कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर अपने पहले ही संबोधन में पार्टी के कार्यकर्ताओं की नजर और नजरिये को मोदी से आगे की सोच की ओर मोड़ने का संकेत दे दिया है। जब उन्होंने कहा कि- '' प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश की तस्वीर ही नहीं बदली बल्कि उन्होंने राजनीति की संस्कृति भी बदल दी। आने वाले समय में आगे चलकर इतिहास में यह प्रश्न आने वाला है कि श्री नरेन्द्र मोदी कैसे भारत में बदलाव लाने में सफल हुए?'' यह बात कहना एक संकेत ही है कि मोदी के आगे भी एक दुनिया है और उसमें भी भाजपा अपने लिये वैसी ही मजबूत जगह बना सकती है जैसी मौजूदा वक्त में मोदी कार्यकाल में पार्टी ने बनाई है। हालांकि नड्डा ने यह संकेत भी दिया कि मौजूदा वक्त में भाजपा जहां तक पहुंची है उस रास्ते पर ही आगे बढ़ना श्रेयस्कर है लेकिन उनकी बातों से यह स्पष्ट है कि जिस तरह शाह के कार्यकाल में मोदी और भाजपा एक दूसरे के पूरक बन गये और मोदी के आगे भाजपा का कोई भविष्य ही नहीं दिख रहा था वह तस्वीर नड्डा की बातों में नहीं दिखी है। बल्कि उन्होंने मोदी के बाद की तस्वीर दिखाई है जिसमें मोदी को थाती के तौर पर संभालते हुए उस मुकाम तक जाने की सोच दिखती है जहां मोदी के इतिहास बन जाने के बाद भी भाजपा का वर्तमान ही मजबूत नहीं रहेगा बल्कि उससे आगे का भविष्य भी निष्कंटक ही रहेगा। इसके लिये एक नयी धारा के तौर पर पार्टी के उस वर्ग को नड्डा ने सीधे तौर पर संबोधित करने से गुरेज नहीं किया जिसके दिल में इस बात की कसक है कि मौजूदा निजाम के दौर में उसे पार्टी से कुछ नहीं मिला है। नड्डा ने उस वर्ग को सीधे संबोधित करते हुए कहा कि- '' कई लोग भीड़ में इस बात के लिए चिंतित रहते हैं कि हम कहां हैं, हमारा क्या? हम कहां है - इसे छोड़ दीजिये, ये सोचना शुरू कीजिये कि पार्टी कहां है? पार्टी आगे बढ़ेगी तो हम अपने-आप आगे बढ़ जायेंगे। हम संगठन के काम में केवल रस्म अदायगी न करें, बल्कि अपना योगदान दें। पार्टी के हर कार्यकर्ता अपना विश्लेषण करें और खुद को परखें कि हम कितने रेलेवेंट हैं और हम कितना प्रॉडक्टिविटी दे सकते हैं।'' हालांकि अपने पहले संबोधन में नड्डा से इस बात की कोई उम्मीद नहीं थी कि वे साफगोई से नई दिशा में भाजपा को आगे ले जाने का स्पष्ट रोडमैप सामने रखेंगे, लेकिन तलवार की धार पर चलने के समान मौजूदा कठिन दौर में भी जिस तरह से उन्होंने पार्टी के असंतुष्ट व उपेक्षित तबके की भावनाओं को सहलाने और उसमें आशाओं व उम्मीदों का संचार करने के अलावा भाजपा को मोदी युग से आगे ले जाने की ओर संकेत किया है उससे एक सकारात्मक व दूरगामी तस्वीर उभरती हुई तो दिख ही रही है।