राजस्थान में प्रेस को नियंत्रित करने का तुगलकी फरमान

(बाल मुकुन्द ओझा)


सियासत में कोई किसी का सगा नहीं है। सत्ता का अहंकार कई बार स्वतंत्र प्रेस के मार्ग में बाधा बन जाता है। राजस्थान इसका जीता जागता उदहारण है। यहाँ आपातकाल की बरसी पर प्रेस को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस बार यह तुगलकी फरमान राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष ने जारी किया है। पत्रकारों को अपने बाड़े से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गई है। विधानसभा ने प्रेस को जो पास जारी किये है उनमें प्रेस दीर्घा के अलावा कहीं भी जाने की इजाजत नहीं दी गयी है। वर्षों से प्रेस के प्रतिनिधि विधान सभा में अपने कवरेज के लिए इधर उधर जाते थे मगर इस बार ऐसा नहीं होगा। विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर मीडियाकर्मियों को सिर्फ पत्रकार दीर्घा तक सीमित रखा गया है। अभी की वर्षों से चली आ रही विधानसभा परम्पराओं के अंतर्गत मीडियाकर्मी हां पक्ष और ना पक्ष लॉबी तथा नेता प्रतिपक्ष, मुख्य सचेतक और मंत्रियों से उनके कक्ष में भी मिलने जाते रहे हैं। लेकिन कांग्रेस सरकार के पहले बजट सत्र के दौरान मीडियाकर्मी न मंत्री से मिल सकते हैं और न ही नेता प्रतिपक्ष सहित विपक्ष के किसी नेता से मिल सकते हैं।. उनके पास पर साफ तौर पर मनाही की मुहर लगा दी गयी है। इसके अलावा स्वतंत्र पत्रकार के रूप में मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों को भी विधानसभा पास से मरहूम कर दिया गया है। इनमें से बहुत से स्वतंत्र पत्रकार राष्ट्रीय स्तर पर स्तम्भकार के रूप में चर्चित है। पत्रकारों ने इस तुगलकी आदेश के विरोध में एकजुट होकर आंदोलन का एलान कर दिया है। धरना , बहिष्कार और प्रदर्शन कर पत्रकार अपना विरोध जता रहे है।
राजस्थान में यह पहली बार नहीं हो रहा है जब प्रेस को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया हो। पिछली भाजपा की वसुंधरा सरकार ने भी पत्रकारों को बेड़ियों में जकड़ने का प्रयास किया था। प्रदेश के एक प्रमुख समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका ने इसका मुखर विरोध किया था। भारी विरोध के फलस्वरूप सरकार को अपना आदेश वापिस लेने को मजबूर होना पड़ा।
उस दौरान राजस्थान में वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगा दी थी । सरकार ने एक तुगलकी फरमान जारी कर कहा है कि अगर किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी ने सरकार की किसी भी नीति या फैसले की आलोचना की तो उसकी खैर नहीं। इस सिलसिले में बाकायदा एक सर्कुलर जारी कर दिया गया है। सर्कुलर में कहा गया है कि कुछ अधिकारी ध् कर्मचारियों के द्वारा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है और प्रेस और सोशल मीडिया के माध्यम से अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मनगढ़ंत और अनर्गल आरोप प्रचारित और प्रसारित किए जा रहे हैं। उनके इस अनुचित और अशोभनीय आचरण से कार्यालय की छवि धूमिल होती है। इस सर्कुलर में चेतावनी दी गयी है कि सभी अधिकारी और कर्मचारी सुनिश्चति करें कि वे सार्वजनिक तौर पर किसी व्यक्ति विशेष या किसी पार्टी अथवा संस्थान के खिलाफ तथ्यहीन, निराधार, असत्यापित, गरिमा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणियां न प्रसारित या प्रचारित करें। ऐसा न करने पर कठोर अनुशास्नात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गयी है।
वसुंधरा के बाद अब एक बार फिर विधानसभा के माध्यम से प्रेस को घेरने का प्रयास किया गया है जिसके विरोध में समूची प्रेस जमात लामबंद हो रही है। विधानसभा अध्यक्ष ने यह पाबंदी ऐसे समय जारी की है जब देश आपातकाल की बरसी मना रहा था। इससे एकबार फिर लोगों को आपातकाल के काले दिनों की याद ताजा करा दी। बहरहाल पत्रकारों का आंदोलन अनवरत चालू है और जब तक यह आदेश वापिस नहीं होगा तब तक आंदोलन जारी रहेगा।