विविधताओं में एकता की प्रतीक है हिंदी

(हर्ष शर्मा)


देश में जब जब हिंदी का विरोध हुआ है तब तब हिंदी अधिक सशक्त हो कर लोगों की जुबान पर चढ़ी है। दक्षिण के कतिपय राज्य राजनीतिक कारणों से हिंदी का विरोध करते रहते है। हमें क्षेत्रीय भाषा स्वीकार है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती मगर हिंदी का विरोध देश की अस्मिता से खिलवाड़ है जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हिन्दी भाषा को हम राष्ट्रभाषा के रूप में पहचानते हैं। हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। विश्व में 500 से 600 मिलियन लोग हिन्दी भाषी हैं। हिन्दी विश्व की तीसरी और भारत की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालाँकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है, क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।
31 मई को, केंद्र ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मसौदा जारी किया था, जिसमें एक खंड था जिसमें गैर-हिंदी भाषी राज्यों में स्कूलों में हिंदी का शिक्षण अनिवार्य था। इस मसौदे ने विभिन्न गैर-हिंदी भाषी राज्यों, खासकर तमिलनाडु में राजनीतिक हलकों में तीखी आलोचना की। इसके बाद सरकार क्षति नियंत्रण मोड में चली गई और नव नियुक्त कैबिनेट मंत्री एस जयशंकर और निर्मला सीतारमण ने कहा कि मसौदा सार्वजनिक सुनवाई के बाद ही मंजूर किया जाएगा। हाल ही सरकार ने एक संशोधित मसौदा जारी किया, जिसने विवादास्पद खंड को छोड़ दिया। मसौदे के अनुसार तीन भाषा सूत्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें अंग्रेजी को भी जोर देने की बात की गई है क्योंकि अंगेजी को सभी सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में उच्च गुणवत्ता के तरीके से उपलब्ध और पढ़ाया जाता है चूंकि अधिकांश उच्च स्तरीय वैज्ञानिक पत्रिकाएं मुख्य रूप से अंग्रेजी में हैं, इसलिए बच्चों के लिए विज्ञान में द्विभाषी बनना और विज्ञान का संचार करने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है
आज तक कोई भी सरकार दक्षिण में हिन्दी भाषा को प्रमुख भाषा का दर्जा दिलवा नहीं पाई है इसलिए वर्षों से यह विषय इतना विवादित रहा है। अगर किसी एक भाषा को अनिवार्य करके साथ ही छेत्रिय भाषा को महत्वत्ता दी जाय तो यह विवाद उतना ना हो, भाषा सिर्फ बोलने से नहीं बल्कि रहन सहन, संस्कृति से आती है इसे चाहे कितना भी बदलने का प्रयास करे संभव नहीं हो पाता।
इसलिए तो हमारे देश को विश्व में विवधताओ में भी एकता का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इतनी अलग भाषाएं , रहन-सहन, खान पान होते हुए भी सभी एक देश में साथ साथ रहते है।