बिजली की खेती






केन्द्र की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के बाद मोदी सरकार एक बार फिर उसकी लगन के साथ नये भारत के निर्माण में जुट गई है जिसका भरोसा दिलाते हुए चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था उनकी पहली सरकार का लक्ष्य था आवश्यकताओं को पूरा करना और दूसरी सरकार का लक्ष्य होगा जनता की आकांक्षाओं को पूरा करना। इन्ही आकांक्षाओं में शामिल है ऊर्जा की किल्लत से निजात हासिल करना, किसानों की आय दोगुनी करना और रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना। इन तीनों आकांक्षाओं को समग्रता में समेटते हुए एक साथ हल करने के लिये अब सरकार ने एक नयी योजना का खाका बनाया है जिसके तहत बंजर जमीन पर किसान लगायेंगे सोलर पैनल और करेंगे बिजली की खेती। इससे एक साथ निकलेगा बिजली, रोजगार और किसानों की आय की आकांक्षाओं से जुड़ चुनौतियों का हल। दरअसल सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व के किसी भी देश के मुकाबले सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहे भारत ने अब वैकल्पिक ऊर्जा पर देश की निर्भरता में इजाफा करने के लिये बड़ी छलांग लगाने की तैयारी कर ली है। इसके लिये केन्द्र की मोदी सरकार ने एक विस्तृत योजना बनाई है जिसके तहत देश के तमाम किसानों को ऊर्जा उत्पादक के रूप में सरकार का साझीदार बनने का मौका दिया जाएगा और जिन ऊसर, बंजर व पहाड़ी-पठारी खेतों में घास उगाना भी संभव नहीं हो रहा है वहां देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये अब किसान ही बिजली का उत्पादन करेंगे। किसानों से वह बिजली सरकार ही खरीदेगी और उसके एवज में साढ़े तीन रूपए प्रति यूनिट की दर से उन्हें भुगतान किया जाएगा। यहां तक कि जो किसान अपनी जमीन पर सौर ऊर्जा उत्पादन करनेवाले संसाधन यानि सोलर पैनल लगाने का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होंगे उनके लिये यह प्रावधान किया जा रहा है कि सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये वे अपनी अपनी जमीन निजी डेवलपर को दे सकते हैं और इसके एवज में किसानों को कम से कम तीस से चालीस पैसा प्रति यूनिट की दर से कमाई अवश्य होग जिससे वे प्रति एकड़ कम से कम एक लाख रूपया सालाना की कमाई निश्चित ही कर पाएंगे। इसके अलावा सरकार की योजना लाखों की तादाद में युवाओं को प्रशिक्षण देकर 'सौर मित्र' बनाने की भी है और अगले पखवाड़े से आरंभ की जा रही मोदी सरकार की इस बहुआयामी व बेहद महत्वाकांक्षी योजना का असली मकसद बिजली की कमी दूर करने, रोजगार के अवसरों में इजाफा करने और किसानों की आय में वायदे से अधिक वृद्धि करने से जुड़ी तमाम चुनौतियों को एक साथ ही समग्रता में हल करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना है। केन्द्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान उक्त बातों की घोषणा करते हुए बताया कि अगले पखवाडे से मोदी सरकार किसानों के लिए एक योजना शुरू करने जा रही है जिसके तहत वे अपने खेतों में दो मेगावाट अक्षय ऊर्जा के उत्पादन के लिए सोलर पैनल लगा सकते हैं और सरकार इस बिजली को खरीदेगी। सिंह ने बताया कि इस समय दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में ही सबसे अधिक तेज गति से सौर व अन्य वैकल्पिक ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि हो रही है। वास्तव में देखा जाये तो जिस तरह से ऊर्जा के परंपरागत श्रोत सिमटते जा रहे हैं और ऊर्जा की मांग व पूर्ति के बीच असंतुलन बढतरा जा रहा है उसे देखते हुए वैकल्पिक ऊर्जा का इंतजाम करना आवश्यक हो गया है। इसके लिये भारत ने जो पहल की है वह वाकई सराहनीय है जिसके तहत विश्व स्तर पर सौर गठबंधन की रूपरेखा बनाई गई है और उसे अमली जामा पहनाया गया है। भारत की इस पहल का समूची दुनिया में गुणबान हो रहा है लेकिन बेहद दुखद है कि देश की कई राज्य सरकारें इसके प्रति जरा भी गंभीर नहीं हैं। उसमें भी बेहद चिंताजनक बात यह है कि केन्द्र की इस पहल के प्रति जितनी उदासीनता विरोधी दलों की सरकारें नहीं दिखा रही हैं उससे कहीं अधिक भाजपानीत राजग के घटक दलों की सरकारें उदासीन हैं। तभी तो लोकसभा में औपचारिक तौर पर केन्द्रीय मंत्री को राज्य सरकारों की ओर से इस दिशा में समुचित सहयोग नहीं मिलने पर दुख प्रकट करना पड़ा है और खास तौर से बिहार सरकार का नाम लेते हुए उन्हें बताने के लिये मजबूर होना पड़ा है कि कई बार अनुरोध किये जाने के बावजूद अभी तक बिहार सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के लिये मांगे गए प्रस्ताव को लेकर कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा है। बिहार के औरंगाबाद से सांसद सुशील कुमार सिंह द्वारा पूछे गए पूरक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने बिहार के सभी सांसदों से अपील की कि वे एक साथ मिलकर प्रदेश सरकार पर दबाव बनाएं ताकि उसे सौर ऊर्जा के क्षेत्र में केन्द्र का सहयोग करने के लिये मजबूर किया जा सके। हालांकि इन चुनौतियों को अगर अलग कर दें तो इस क्षेत्र में बदल रही तस्वीर बेहद ही उत्साहवर्धक है। भले ही मोदी सरकार ने 2022 तक अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों से ग्रिड संबंद्ध अक्षय ऊर्जा की 175 गीगा वाट क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगा वाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगा वाट, जैव ऊर्जा से 10 गीगा वाट और लघु पन बिजली से 5 गीगा वाट क्षमता हासिल करने की बात कही गई है। लेकिन जिस तेज गति से इस पर काम हो रहा है उसे देखते हुए यह तय है कि आगामी दिनों में लक्ष्य के मुकाबले काफी अधिक उत्पादन आरंभ होने जा रहा है। खास तौर से किसानों को अपने खेत में दो मेगावाट तक बिजली उत्पादन के लिये सोलर पैनल लगाने की जो इजाजत दी जाने वाली है उसके बाद किसानों की आय दो गुना ही नहीं बल्कि कई गुना बढ़ जाएगी। किसानों द्वारा पैदा की गई बिजली को खरीदने के लिये अभी जो दर तय की जा रही है उसमें न्यूनतम एक लाख रूपया प्रति एकड़ की आय तो उन किसानों की भी हो जाएगी जो अपने पैसे से सोलर पैनल लगवाने में सक्षम नहीं होंगे। निश्चित ही यह बेहद सराहनीय व दूरगामी पहल है जिसका व्यापक, दूरगामी व चहुंमुखी असर अवश्य दिखेगा।