घुमड़ घुमड़ कर आये बादल

                घुमड़ घुमड़ कर आये बादल


नभ में देखो आये बादल
निर्मल जल भर लाये बादल
कभी साथ में कभी अकेले
घनघोर गगन में आये बादल।
बरसे बिन न कभी निकलते
जमकर कभी बरसने लगते
कभी निरंतर बढ़ते जाते
कभी कहीं पर रुक भी जाते।
ऐसे ये मस्ताने बादल
सबके दोस्त बन इठलाते
सूखे से राहत दिलवाते
जन जन में खुशियां लाते बादल।
नभ के आँचल में नित खेले
सूरज से अठखेली करते
भारती गजब खिलाडी बादल
खेल अनेक खिलाते बादल।


 



मंगल व्यास भारती
गढ़ के पास , चूरू राजस्थान