जाधव मामले की जटिलताएं




पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव को फांसी दिये जाने की सजा पर रोक लगाकर और भारतीय दूतावास को उनसे संपर्क करने व उनकी सहायता करने के लिये अधिकृत करके हेग की अंतर्राष्ट्रीय अदालत के 16 जजों की पीठ ने 15-01 से इस बात की पुष्टि कर दी है कि पाकिस्तान ने इस मामले में वियना संधि का सीधे तौर पर सरासर उल्लंघन किया है। साथ ही पाकिस्तान ने इस पूरे मामले में हेग की अदालत के विशेषाधिकार पर सवाल उठाकर, वियना संधि को कुलभूषण के मामले में अप्रभावी बताकर, भारत की न्याय की अपील के लिये इस फोरम को असक्षम बताकर और कुलभूषण को दी गई मौत की सजा को जायज ठहराने का प्रयास करके जिस तरह से पूरे मामले को अटकाने, लटकाने और भटकाने की कोशिश की उसमें भी उसे कतई सफलता नहीं मिल सकी। पूरे मामले पर गौर करें तो मार्च 2016 में, भारतीय नागरिक कुलभूषण सुधीर जाधव को जासूसी तथा आतंकवाद के आरोप में पाकिस्तान ने हिरासत में लिया था। अप्रैल 2017 में, उन्हें पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने मृत्यु की सजा सुनाई थी। मई 2017 में, भारत ने हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) में पाकिस्तान के विरुद्ध एक मामला दर्ज कराया जिसमें पाकिस्तान पर यह आरोप लगाया गया कि वह 1963 के दूतावास संबंधों की विएना संधि के अंतर्गत बाध्यताओं का उल्लंघन कर रहा है। इस संधि के अनुच्छेद 36 के अनुसार, पाकिस्तान विशेष रूप से कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी को लेकर बिना किसी प्रकार की देर किए बगैर उनके अधिकारों की सूचना उन्हें दे, भारत को इस बारे में सूचित करे तथा कुलभूषण जाधव से संपर्क साधने की अनुमति भारतीय दूतावास के अधिकारियों को दे। आईसीजे में इस मामले की सुनवाई के दौरान पाकिस्तान ने कई तरह के कानूनी तर्कों से भारत की दावेदारी को खारिज करने की कोशिश की लेकिन आखिरकार आईसीजे ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “अदालत मानती है कि एक भारतीय नागरिक, कुलभूषण जाधव के मुकदमे तथा उनकी गिरफ्तारी के मामले में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान ने दूतावास संबंधों पर हुई वियना संधि के अनुच्छेद 36 के अंतर्गत निहित बाध्यताओं का उल्लंघन किया है।” इस ऐतिहासिक फैसले में, आईसीजे ने एकमत से बल दिया कि भारत तथा पाकिस्तान दोनों वियना संधि के हस्ताक्षरकर्ता हैं, इसलिए इस मामले पर न्याय करने का इसका अधिकार है। आईसीजे ने एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण या सुलह आयोग में इस मामले को ले जाने की पाकिस्तान की कोशिशों को खारिज किया और कहा कि इस मामले में भारत को आईसीजे से प्रत्यक्ष रूप से संपर्क स्थापित करने का अधिकार है। पाकिस्तान ने तर्क दिया कि वियना संधि का संबंध जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के मामलों से नहीं है, जिसे आईसीजे ने खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी के तीन सप्ताह बाद भी भारत को सूचित न करके तथा भारत को दूतावास के माध्यम से संपर्क साधने की अनुमति न देकर पाकिस्तान ने वियना संधि की बाध्यताओं का उल्लंघन किया है, जबकि इस अनुच्छेद में किसी प्रकार की देर किए बगैर इस प्रकार की कार्यवाही करने का प्रावधान है। अन्य मामलों में भारत की कार्यवाहियों पर निर्भर वियना संधि के अनुच्छेद 36 के अंतर्गत एक सशर्त तरीके से इसकी बाध्यताओं को लागू करने संबंधी पाकिस्तान के प्रयासों को आईसीजे ने खारिज कर दिया। आईसीजे के फैसले का केंद्र सेक्शन 6 पर आधारित है, जो पाकिस्तान द्वारा वियना संधि के इस उल्लंघन का उपचार तलाशने के तरीकों की सिफारिश करता है। दूतावासों की पहुंच के अधिकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय रूप से एक ही तरह के दोषपूर्ण कार्यों समेत कुलभूषण जाधव के अधिकारों को कायम रखने संबंधी इसकी बाध्यताओं के प्रति पाकिस्तान की अस्वीकृति का हवाला देते हुए, आईसीजे ने पाकिस्तान से दोनों ही बाध्यताओं का पालन करने को कहा है। ऐसी राय है कि जाधव की सजा तथा दोषसिद्धि पर पुनर्विचार और प्रभावशाली समीक्षा ही इस मामले का उपयुक्त उपचार है, जिसे बिना किसी शर्त के पाकिस्तान को करना चाहिए। अगर न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता हुई, तो इसमें पाकिस्तान द्वारा “उपयुक्त कानून बनाया जाना” भी शामिल होगा। तब तक, आईसीजे ने “जाधव की सजा तथा दोषसिद्धि पर पुनर्विचार तथा प्रभावशाली समीक्षा के लिए एक अपरिहार्य शर्त के तौर पर” “मौत की सजा पर रोक” लगाने का आदेश दिया है। इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि ''सत्य और न्याय की जीत हुई है। तथ्यों के विस्तृत अध्ययन पर आधारित इस फैसले के लिए आईसीजे को बधाई। मैं आश्वस्त हूं कि कुलभूषण जाधव को न्याय मिलेगा। हमारी सरकार प्रत्येक भारतीय के कल्याण तथा सुरक्षा के लिए सदा काम करेगी।'' आईसीजे का फैसला कई कारणों से महत्वपूर्ण है। आईसीजे कानून के अनुच्छेद 59 के अनुसार यह फैसला “पार्टी तथा इस विशेष केस के मामले में” बाध्यकारी है। यह फैसला अपने नागरिकों को विधिसम्मत न्याय सुनिश्चित करने तथा राज्यों के बीच विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे में भारत के समर्थन तथा सतत विश्वास को भी साबित करता है। इस फैसले का क्रियान्वयन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धान्त के लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह काम करेगा, जिस पर कानून के साथ-साथ वर्तमान बहुपक्षीय व्यवस्था टिकी हुई है। हालांकि हेग से आये फैसले के बाद इतना तो तय हो गया है कि कुलभूषण को भारतीय दूतावास का सहयोग भी मिलेगा और उनके मामले की दोबारा समीक्षा भी होगी। साथ ही अब कुलभूषण के मसले पर पूरी दुनिया की निगाह भी टिकी होगी और पाकिस्तान के लिये न्याय के सिद्धांतों, गवाहों, सबूतों व साक्ष्यों की अनदेखी करना कतई संभव नहीं होगा। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि जाधव के मसले की जटिलताएं पूरी तरह दूर हो गई हैं। सच तो यह है कि अभी उन्हें राॅ का एजेंट साबित करने के लिये पाक द्वारा गढ़े गये फर्जी सबूतों की काट भी निकालनी होगी और उन्हें जासूसी के आरोप में फंसाने के लिये जिन कागजी व झूठे साक्ष्यों का सहारा लिया जा रहा है उसकी हकीकत को भी अदालत में प्रस्तुत करना होगा। साथ ही इंसाफ पाक की अदालत को ही करना है और कानून भी वहीं का लागू होगा। लेकिन उम्मीद इस बात पर टिकी है कि सत्य परेशान तो हो सकता है लेकिन पराजित नहीं हो सकता। लिहाजा जाधव के लिये इंसाफ की आस तो हेग के फैसले से जग ही गई है।