मन के जीते जीत





                                   लघुकथा

(रंजना सिन्हा सैराहा)

शिवानी एस.डी.एम .!.. समाचार पत्र में देख कर चलचित्र की भांति फ्लैशबैक में एक पांच वर्षीय नन्ही बच्ची का चेहरा सामने आगया...हां दूध देने वाले भैया की बिटिया...शहर से लगा गांव अक्सर मेरे पास अपने पिता के साथ आजाती थी.... खेलती तो मेरी बिटिया के संग थी ..उसकी लाल साइकिल, रंग बिरंगी गुड़िया ,बार्बी का किचेन सेट की वह दीवानी थी ।अहाना को भी उसका साथ अच्छा लगता था.... खासबात ये की दोनों में कभी झगड़ा नहीं हुआ ।

दोनों का साथ साथ दो थालियों में खाना ,दिनभर बरांडे में साइकिल चलाना ,बिस्कुट तोड़ कर खाना बनाना मुझे अभीभूत करता था।

     ‌‌ वोभी मुझे मम्मी पुकारती थी। रविवार का दिन तो बहुत मस्त होता था।पापा भी जोघर पर होते थे ।

कक्षा पांच का परिणाम वो फेल और अंग्रेजी स्कूल की अहाना अव्वल कैसे शेयर करती अपनी खुशी । शिवानी रो रही थी और अहाना उसका मुंह देख रही थी। 

      मैंने उसे समझाया कोई बात नहीं अब थोडा और पढ़ोगी तो बहुत अच्छे नंबर से पास होजाओगी...

     वो मुझसे चिपकी जारही थी"मम्मी पढनै का समय नहीं मिलता, अम्मा काम पर चली जाती है ।भैंस को चारा पानी और रिंकी को भी देखना..

 है"। भीग गयी अंदर से मै नन्ही सी बच्ची और इतने दायित्व ।

       मैंने उसका दाखिला घर के पास के प्राइमरीस्कूल में करवा दिया...रिंकी भी थोड़ी बड़ी हो रही थी । दोनों बहनें स्कूल जाती थी । फिर शिवानी के जीवन में दूसरा बडा झटका जब लगा जब पढ्ने वाली शिवानी की हाई स्कूल मेंद्वितीय श्रेणी...

      वो बहुत असंतुष्ट थी ।मैंने उसे स्वंयम पढ़ाया था । मैं उसकी विद्वता से परिचित थी । दूध वाले भैया उसकी शादी के बारे में सोचने लगे। ..."भैया तुम्हारी बिटिया धमाल मचाएंगी । मैं जानती हूं"

      ‌" परेशानी से समस्या हल नहीं होती देखो नन्ही सी चींटी बार-बार गिरती है फिर उठती है  फिर चढ़ती है।

तुम पन्द्रह बरस की हो..और लगन से पढ़ो ।एक दिन पुराना अखबार और पत्रिकाएं यहां सेलेजाया करो ।" फिर उसने साइकिल सेआना शुरू किया ।रोज अखबार लेजाती... मैं आश्चर्य चकित थी कि उसने अखबार से नोट्स भी बना लिए थे।

      उसने मेरे घर आना नहीं छोड़ा  अंग्रेजी में एम ए किया ।पति महाशय उसको गाइड करते थे ।एम ए के बाद घर पर ही एकवर्ष के अथक परिश्रम का प्रसाद उसको मिल गया ।

         आज वो मेरी बेटी मेरे सामने खड़ी है । हताशा नहीं आगे बढ़ने की तमन्ना के साथ ।

   "शाबाश बिटिया..".. दूध वाले भैयाकी  सफेद दाढ़ी हो गयी है .. आंखों में आंसू भरे कभी मुझे और कभी शिवानी को देखते हैं।

           मेरी तंद्रा भंग हुई .....आज हम सब मिलकर मुंह मीठा करेंगे ...फट आटे का बना लड्डू मैंने शिवानी के मुंह में भर दिया।